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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir वायुहा ( ३०४ ) वाष्र्णेय वायुठा-मङ्कणक मुनिके कलशमें रखे हुए वीर्यसे उत्पन्न किनारेतक फैला हुआ था। यह इन्द्रके अमरावतीपुरीके एक ऋषि (शल्य० ३८ । ३२-३७)। समान जान पड़ती थी (अनु.३०। १६-१८)। वारण-एक प्रदेश, जो कौरवसेनासे घिर गया था ( उद्योग. पूर्वकालमें यहाँ भगवान् शङ्करके दर्शनके लिये संवर्त मुनि १९ । ३.)। प्रतिदिन आया करते थे। यहीं राजा मरुत्तने नारदजीके बताये वारणावत-एक प्राचीन नगर, जहाँ दुर्योधनने पाण्डवोंको अनुसार संवर्तको पहचानकर उन्हें अपने पुरोहितके पदपर प्रतिष्ठित किया था ( आश्व०६।२२ से आश्व. मरवाने के लिये पुरोचनकी सहायतासे लाक्षागृहका निर्माण करवाया था ( आदि. ६५।१७)। (आधुनिक ७।१० तक)। मतके अनुसार वर्नवा' जो मेरठसे उत्तर-पश्चिम उन्नीस वाराह कुरुक्षेत्रकी सीमाके अन्तर्गत स्थित एक उत्तम तीर्थ, मील दूर है। ) पाण्डवोंने यहाँ एक वर्षतक निवास किया जहाँ भगवान् विष्णु पहले वाराहरूपसे स्थित हुए थे। था ( आदि० ६१ । २१-२२ ) । धृतराष्ट्रके मन्त्रियों- वहाँ स्नान करनेसे अग्निष्टोम यज्ञका फल मिलता है द्वारा इस नगरकी प्रशंसा तथा वहाँके मेलेकी चर्चा (वन० ८३ । १८-१९)। ( आदि० १४२ । ३-४ ) । पाण्डवोंने संधिके समय वारिसेन-एक राजा, जो यमसभामें रहकर सूर्यपुत्र यमकी जिन पाँच गाँवोंको माँगा था, उसमें वारणावत भी था उपासना करते हैं (सभा० । । २०)। ( उद्योग० ३१ । १९-२० ) । धृतराष्ट्रपुत्र युयुत्सुने वारुणतीर्थ-दक्षिण भारतमें पाण्डयदेशके अन्तर्गत एक यहाँ बहुत-से राजाओंके साथ छः मासतक अपराजित तीर्थ (वन. ८८ । १३)। रहकर युद्ध किया था (द्रोण. १०। ५८-५९)। वारुणहद-वरुणदेवताका एक सरोवर, जिसमें महातेजस्वी वारवत्या-एक नदी, जो वरुणसभामें रहकर वरुणदेवकी अग्निदेव प्रकाशित होते हैं (उद्योग० ९८ । १८)। उपासना करती है (सभा०९।२२)। वारुणी-जो क्षीरसागरके मन्थन करनेपर उत्पन्न हुई थी वारवास्य-एक भारतीय जनपद (भीष्म०९ । ४५)। (उद्योग० १०२।१२)। वाराणसी-भीष्मजी माताकी आज्ञासे काशिराजकी कन्याओं वार्भी-कण्डु मुनिकी पुत्री, जो दस प्रचेताओंकी पत्नी के स्वयंवरमें वाराणसीपुरीको गये और वहाँ आये हुए हुई थी ( आदि. १९५।१५)। समस्त राजाओंको चुनौती देकर उन्हें युद्ध में परास्त वार्त-एक राजा, जो यमसभामें रहकर सूर्यपुत्र यमकी करके काशिराजकी तीनों कन्याओंको हर लाये (भादि० उपासना करते हैं (सभा० ८।५०)। १०२ । ३-५३ ) । यह एक प्रमुख तीर्थ है । यहाँ वार्धक्षेमि-पाण्डवपक्षके एक महारथी योद्धा, जो वृष्णिजाकर कपिलाहदमें स्नान करके भगवान् शङ्करकी पूजा वंशी क्षत्रिय थे ( उद्योग० १७१ । १७)। इन्होंने करनेसे राजसूय यज्ञका फल मिलता है ( वन० ८४.७४)। द्रौपदीके स्वयंवरमें पदार्पण किया था ( आदि. १८५ । वाराणसीका मध्यभाग अविमुक्तक्षेत्र कहलाता है, यहाँ ९)। इनके घोड़ोंका वर्णन (द्रोण. २३ । ३५)। प्राणोत्सर्ग करनेवालेको मोक्ष प्राप्त होता है (वन० ८४।। कृपाचार्यके साथ इनका युद्ध (द्रोण० २५ । ५१-५२)। ७९)। (यह सात मोक्षदायिनी पुरियों से एक है। ) इसे युद्धमें इनके मारे जानेकी चर्चा ( कर्ण० ६ । २०. भगवान् श्रीकृष्णने जलाया था (उद्योग० ४८ । ७६ )। २९)। काशीपुरीमें काशिराजके पुत्रको धृष्टद्युम्नने मारा था (द्रोण० १०। ६०-६२ ) । इसी पुरीमें महाज्ञानी वागण्य-एक प्राचीन ऋषि, जिनसे गन्धर्वराज विश्वातुलाधार वैश्य रहते थे (शान्ति. २६ । ४२-४३)। वसुने कभी जीवात्म-परमात्मतत्त्वका विवेचन सुना था पूर्वकालमें भगवान् शिवने वाराणसीपुरीमें मुनिवर (शान्त (शान्ति० ३१८ । ५९)। जैगीषव्यको उनकी सबल साधनासे संतुष्ट हो अणिमा वार्ष्णेय-(१) एक प्राचीन देश, जहाँके राजा युधिष्ठिरके आदि आठ सिद्धियाँ प्रदान की थीं (अनु०१८।३७)। राजसूय यज्ञमें भेंट लेकर आये थे (सभा०५१ । २४)। तेजस्वी राजा दिवोदासने इन्द्रकी आज्ञासे वाराणसी (२) राजा नलका सारथि ( वन० ६०।१०)। मवाली नगरीका निर्माण किया था । यह पुरी ब्राह्मण, इसका राजा नलके कुमार-कुमारी इन्द्रसेन और इन्द्रक्षत्रिय, वैश्य और शूद्रोंसे भरी हुई थी। नाना प्रकारके सेनाको कुण्डिनपुर छोड़कर अयोध्या जाना ( वन. द्रव्योसे सम्पन्न थी। उसके बाजार-हाट और दुकानें ६० । २१-२४)। ऋतुपर्णका सारथि होना (वन. धन-वैभवसे भरपूर थीं। इस नगरीके घेरेका एक छोर ६० । २५) ऋतुपर्णका इसे बाहुककी सेवामें नियुक्त गङ्गाजीके उत्तर तटतक और दूसरा छोर गोमतीके दक्षिण करना (वन० ६७७)। ऋतुपर्णके साथ विदर्भ For Private And Personal Use Only
SR No.020461
Book TitleMahabharat Ki Namanukramanika Parichay Sahit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVasudevsharan Agarwal
PublisherVasudevsharan Agarwal
Publication Year1959
Total Pages414
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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