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वालखिल्य ( बालखिल्य )
जाते समय मार्ग में इसके भीतर बाहुकके नल होनेका संदेह होना ( वन० ७१ । २६-३४ ) | ( ३ ) भगवान् श्रीकृष्णका एक नाम ( भीष्म० २७ । ३६ ) । वालखिल्य ( बालखिल्य ) - ब्रह्माजी के शक्तिशाली पुत्र महर्षि क्रतुसे उत्पन्न हुए ऋषि, जिनकी संख्या साठ हजार है । ये क्रतुके समान ही पवित्र, तीनों लोकों में विख्यात, सत्यवादी, व्रतपरायण तथा भगवान् सूर्यके आगे चलनेवाले हैं ( आदि० ६६ । ४ - ९ ) । कश्यपकी प्रार्थना गरुडद्वारा तोड़ी हुई वटशाखाको छोड़कर इन लोगोंका तपके लिये प्रस्थान ( आदि० ३० | १८ ) । देवराज इन्द्रके अपराध और प्रमादसे तथा महात्मा वालखिल्य महर्षियोंके तपके प्रभावसे पक्षिराज गरुडके उत्पन्न होनेकी बृहस्पतिद्वारा चर्चा ( आदि० ३० । ४० ) । पुत्रकी कामना से किये जानेवाले महर्षि कश्यपके यशमें सहायताके लिये एक छोटी-सी पलाशकी टहनी लेकर आते हुए अङ्गुष्ठके मध्यभागके बराबर शरीरवाले बालखिल्य ऋषियोंका बलोन्मत्त इन्द्रद्वारा उपहास, अपमान और लङ्घन ( आदि० ३१ ।५-१० ) । रोमें भरे हुए वालखिल्योंका देवराजके लिये भयदायक दूसरे इन्द्रकी उत्पत्तिके निमित्त अग्निमें विधिवत् होम करना ( आदि० ३१ । ११–१४ ) | महर्षि कश्यपका अनुनयपूर्वक बालखिल्योंको समझाना, इनके संकल्पके अनुसार होनेवाले पुत्रको पक्षियोंका इन्द्र बनानेके लिये इनकी सम्मति लेना और याचक बनकर आये हुए देवराज इन्द्रपर अनुग्रह करनेके लिये अनुरोध करना । वालखिल्योंका इनके अनुरोधको स्वीकार करना ( आदि० ३१ । १६ - २३ ) । ये सूर्य किरणोंका पान करनेवाले ऋषि हैं और ब्रह्माजीकी सभा में विराजमान होते हैं ( सभा० ११ । २० ) । इन्होंने सरस्वतीके तटपर यज्ञ किया था ( वन० ९० । १० ) । द्रोणाचार्यके पास आकर उनसे युद्ध बंद करने को कहना ( द्रोण० १९० । ३३ -४० ) । ये राजा पृथुके मन्त्री बने थे ( शान्ति० ५९ । ११० ) । अगस्त्यजीके कमलोंकी चोरी होनेपर इनका शपथ खाना ( अनु० ९४ । ३९ ) । बालखिल्यगण तपस्यासे सिद्ध हुए मुनि हैं। ये सब भ्रर्मोंके ज्ञाता हैं और सूर्यमण्डलमें निवास करते हैं । वहाँ ये उञ्छवृत्तिका आश्रय ले पक्षियोंकी भाँति एक-एक दाना बीनकर उसीसे जीबननिर्वाह करते हैं । मृगछाला, चीर और वल्कल ——ये ही इनके वस्त्र हैं। ये बालखिल्य शीत-उष्ण आदि द्वन्द्वोंसे रहित, सन्मार्गपर चलनेवाले और तपस्याके धनी हैं । इनमें से प्रत्येकका शरीर अङ्गठेके सिरेके बराबर है । इतने लघु काय होनेपर भी ये अपने-अपने कर्तव्यमें स्थित हो सदा तपस्या में संलग्न रहते हैं। इनके धर्मका फल महान्
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वासिष्ठ
है । ये देवताओंका कार्य सिद्ध करनेके लिये उनके समान रूप धारण करते हैं । ये तपस्यासे सम्पूर्ण पापको दग्ध करके अपने तेजसे समस्त दिशाओंको प्रकाशित करते हैं ( अनु० १४१ । ९९-१०२ ) । ये प्रतिदिन नाना प्रकार के स्तोत्रोंद्वारा निरन्तर उगते हुए सूर्यकी स्तुति करते हुए सहसा आगे बढ़ते जाते हैं और अपनी सूर्यतुल्य किरणोंसे सम्पूर्ण दिशाओंको प्रकाशित करते रहते हैं । ये सब-के-सब धर्मज्ञ और सत्यवादी हैं । इन्हीं में लोकरक्षा के लिये निर्मल सत्य प्रतिष्ठित है। इन वालखिल्योंके ही तपोबलसे यह सारा जगत् टिका हुआ है । इन्हीं महात्माओंकी तपस्या, सत्य और क्षमाके प्रभावसे सम्पूर्ण भूतों की स्थिति बनी हुई है - ऐसा मनीषी पुरुष मानते हैं (अनु० १४२ । ३३ के बाददा० पाठ पृष्ठ ५९३३) । वालिशिख - कश्यपद्वारा कद्रुके गर्भ से उत्पन्न एक नाग ( आदि० ३५ । ८ ) ।
वाली - (१) वरुणकी सभामें रहकर उनकी उपासना करनेवाला एक दैत्य ( सभा० ९ । १४ । ( २ ) एक वानरराज, जो सुग्रीवका भाई और इन्द्रका पुत्र था । भगवान् रामद्वारा इसका वध ( सभा० ३८ | २९ के बाद दाक्षिणात्य पाठ पृष्ठ ७९५, कालम १३ बन० १४७ । २८ ) । इसकी पत्नीका नाम तारा था ( वन० २८० । (१८) । वालीका सुग्रीवके साथ युद्ध और श्रीरामद्वारा बध ( वन० २८० । ३० – ३६ ) । इसके अङ्गद नामक एक पुत्र था ( बन० २८८ । १४ ) । वाल्मीकि - ( १ ) एक महर्षि, जो इन्द्रकी सभा में विराजमान होते हैं ) सभा० ७ । १६ ) । शान्तिदूत बनकर हस्तिनापुर जाते हुए श्रीकृष्णकी इनके द्वारा मार्गमें परिक्रमा ( उद्योग० ८३ । २७ ) । सात्यकिने भूरिश्रवाके व के पश्चात् महर्षि वाल्मीकिके एक श्लोकका गान किया था ( द्रोण० १४३ । ६७-६८ ) । युधिष्ठिरसे शिवभक्तिके विषय में अपना अनुभव सुनाना ( अनु० १८ । ८ - १० ) । ( २ ) गरुडकी प्रमुख संतानोंमेंसे एक ( उद्योग ० १०१।११ ) ।
वाष्कल - हिरण्यकशिपुका पाँचवाँ पुत्र ( आदि० ६५ । १८)।
वासवी - उपरिचर वसुके वीर्यसे अद्रिकाके गर्भ से उत्पन्न । दाशराजद्वारा पालित ( आदि० ६३ । ५१-७१ ) । ( देखिये सत्यवती )
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वासिष्ठ - ( १ ) वसिष्ठसे सम्बन्ध रखनेवाली वस्तु (आख्यान)
( आदि० १७४ । २ ) । ( २ ) वसिष्ठ - पुत्र शक्ति एवं वसिष्ठके वंशज ( आदि० १८० | २०९ वन० २६ । ७) । ( ३ ) एक तीर्थ, इसमें स्नान करके वासिष्ठी