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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir वासिष्ठी ( ३०६ ) विकर्ण नदीको लाँघकर जानेवाले क्षत्रिय आदि सभी वर्गों के नागराज, नागेन्द्र, पन्नग, पन्नगराट , पनगराज, पन्नगेश्वर, लोग- द्विजाति ( ब्राह्मण ) हो जाते हैं ( वन० ८४। पन्नगेन्द्र, सर्पराट , सर्पराज आदि । ४८)। (४) एक अग्नि (वन० २२० ।।)। वासुकितीर्थ-प्रयाग ( दारागंजके पास गङ्गातटपर ) वासिष्ठी-एक नदी (वन० ८४ । ४८)। भोगवती नामक उत्तम तीर्थः जिसमें स्नान करनेसे अश्ववासुकि-एक नागराज, जो आस्तीकके मामा तथा कश्यप मेध यज्ञका उत्तम फल मिलता है (वन० ८५ । ८६)। और कद्रुके पुत्र थे ( आदि० ३५ । ५)। नागोंकी वासुदेव-(१) वसुदेवजीके पुत्र श्रीकृष्ण (सभा० ३८ । रक्षाके लिये इनके द्वारा अपनी बहिन जरत्कारुको जरत्कारु २९ के बाद दाक्षिणात्य पाठ, पृष्ठ ८०५, कालम २)। ऋषिकी सेवामें उनकी पत्नीरूपसे समर्पण (आदि०१४ । ( देखिये कृष्ण) (२)(पौण्ड्रक ) पुण्ड्रदेशका राजा ६-७; आदि० ४६ । २०-२३ )। समुद्र-मन्थनके वासुदेव, जो द्रौपदीके स्वयंवरमें उपस्थित हुआ था समय इनका मन्थनदण्डकी डोरी होना ( आदि० १०। (आदि. १८५ । १२)। (विशेष देखिये पौण्ड्रक) १३)। नागोंद्वारा इनका नागराज-पदपर अभिषेक वाहिनी-(१) सेनाविशेष । तीन गुल्मका एक गण और (आदि. ३६ । २५ के बाद दा० पाठ ) । माताके तीन गणकी एक वाहिनी होती है (आदि० २।२१)। शापसे इनका चिन्तित होना ( आदि. ३७ । ३-१७ (२) ये सोमवंशीय राजा कुरुकी पत्नी थीं । इनके आदि. १८ ।३-८)। माताके शापसे अपनी रक्षा गर्भसे कुरुद्वारा अश्ववान् आदि पाँच पुत्र हुए थे करनेके उपायपर इनका नागोंके साथ परामर्श (आदि. ( आदि. ९४ । ५०-५१)। (३) भारतवर्षकी एक ३७ । १०-३४) । एलापत्र नागका इनको अपनी प्रमुख नदी, जिसका जल भारतवासी पीते हैं ( भीष्म बहिनका जरत्कारु ऋषिके साथ विवाह करनेकी सलाह देना ९ । ३४)। ( भादि. ३८ । १८-१९ ) । ब्रह्माजीकी आज्ञासे वासुकिका जरत्कारु मुनिके साथ अपनी बहिनको ब्याहनेके विश-सूर्यवंशी इक्ष्वाकुके ज्येष्ठ पुत्र, जो धनर्धर वीरोंके लिये प्रयत्नशील होना (आदि० ३९ अध्याय)। सर्प- आदर्श थे । इनके पुत्रका नाम था विविंश (आश्वः ।। यज्ञमें जलते हुए नागोको देखकर उनकी रक्षाके लिये ४.५)। भयभीत हुए इनका अपनी बहिन जरत्कारुको आस्तीकसे विकट ( विकटानन )-धृतराष्ट्र के सौ पुत्रोंमेंसे एक कहनेके लिये प्रेरित करना ( आदि० ५३ । २.-२६)। (आदि. ६७ । ११॥ आदि. ११६ । ५)। यह इनके वंशके जले हुए नागोंकी गणना (आदि० ५७ । द्रौपदीके स्वयंवरमें गया था (आदि. १८५। ३)। ५-६)। ये अर्जुनके जन्मसमयमें वहाँ पधारे थे (आदि० भीमसेनको घायल करनेवाले धृतराष्ट्र के चौदह पुत्रोंमें एक १२२.७१) आर्यकके प्रार्थना करनेपर भीमसेनको दिव्य- यह भी था (कर्ण० ५१। ७-९)। भीमसेनद्वारा रसका पान करानेके लिये इनका नागोंको आदेश देना इसका वध (कर्ण०५१ । १६)। (आदि. १२७ । ६९)। ये वरुण-सभामें उपस्थित विकर्ण (१) धृतराष्ट्रका एक महारथी पुत्र । ग्यारह महाहोकर उनकी उपासना करते हैं (सभा० ९।८)। रथियों से एक (आदि०६३ | ११९)। धृतराष्ट्र के सौ अर्जनने कभी इनकी बहिनका चित्त चुराया था (विराट० पुत्रों से एक (आदि. ६७ ॥ ९४; भादि. ११६। २।१४)। ये त्रिपुरदाहके समय भगवान् शङ्करके ४)। द्रुपदपर चढ़ाई करनेवाले दुर्योधन आदि द्रोणधनुषकी प्रत्यञ्चा बने थे (द्रोण. २०२ । ०६)। साथ शियों में यह भी था (दि. १३७ । १९-२१)। ही उनके रथका कूबर भी बने हुए थे (कर्ण०५४। यह द्रौपदीके स्वयंवरमें भी गया था (पादि. १८५। २२)। कर्ण और अर्जुनके द्वैरथ युद्ध के समय ये अर्जुन- .)। द्रुपदनगरसे आते हुए पाण्डवोंकी अगवानीके की ही विजयके समर्थक थे (कर्ण० ८७।१३)। लिये इसका जाना (आदि.२०१११)।भरी सभामें इनका नागधन्वातीर्थ निवासस्थान है। वहीं देवताओंने द्रौपदीके प्रश्नपर मौन हुए राजाओंके बीच इसका न्यायइनका नागराजके पदपर अभिषेक किया था (पास्य. पूर्ण निर्णय (समा०६८ )। कर्णद्वारा इसे फट३७ । ३०-३२) । इनके द्वारा स्कन्दको जय और कार ( समा० १० । ३०)। विराटकी गौओंके हरणके महाजय नामक दो पार्षद प्रदान (पल्य. १५। ५२- समय अर्जुनपर आक्रमण (विराट ५४ । ९)। अर्जुनसे ५.)। ये सात धरणीधरों से एक हैं (अनु. १५०। पराजित होकर भागना (विराट० ५४ । १०)। १)। बलरामजीके परमधामगमनके समय ये उनके अर्जुनसे युद्ध और घायल होकर रथसे नीचे गिरना स्वागतमें आये थे ( मौसल० ४ । १५)। (विराट०६१।४२)। गजराजद्वारा अर्जुनपर आक्रमण महाभारतमें आये हुए वासुकिके नाम-नागराट, और हारकर भागना (विराट. १५६-१०)। For Private And Personal Use Only
SR No.020461
Book TitleMahabharat Ki Namanukramanika Parichay Sahit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVasudevsharan Agarwal
PublisherVasudevsharan Agarwal
Publication Year1959
Total Pages414
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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