Book Title: Mahabharat Ki Namanukramanika Parichay Sahit
Author(s): Vasudevsharan Agarwal
Publisher: Vasudevsharan Agarwal

View full book text
Previous | Next

Page 309
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org वालखिल्य ( बालखिल्य ) जाते समय मार्ग में इसके भीतर बाहुकके नल होनेका संदेह होना ( वन० ७१ । २६-३४ ) | ( ३ ) भगवान् श्रीकृष्णका एक नाम ( भीष्म० २७ । ३६ ) । वालखिल्य ( बालखिल्य ) - ब्रह्माजी के शक्तिशाली पुत्र महर्षि क्रतुसे उत्पन्न हुए ऋषि, जिनकी संख्या साठ हजार है । ये क्रतुके समान ही पवित्र, तीनों लोकों में विख्यात, सत्यवादी, व्रतपरायण तथा भगवान् सूर्यके आगे चलनेवाले हैं ( आदि० ६६ । ४ - ९ ) । कश्यपकी प्रार्थना गरुडद्वारा तोड़ी हुई वटशाखाको छोड़कर इन लोगोंका तपके लिये प्रस्थान ( आदि० ३० | १८ ) । देवराज इन्द्रके अपराध और प्रमादसे तथा महात्मा वालखिल्य महर्षियोंके तपके प्रभावसे पक्षिराज गरुडके उत्पन्न होनेकी बृहस्पतिद्वारा चर्चा ( आदि० ३० । ४० ) । पुत्रकी कामना से किये जानेवाले महर्षि कश्यपके यशमें सहायताके लिये एक छोटी-सी पलाशकी टहनी लेकर आते हुए अङ्गुष्ठके मध्यभागके बराबर शरीरवाले बालखिल्य ऋषियोंका बलोन्मत्त इन्द्रद्वारा उपहास, अपमान और लङ्घन ( आदि० ३१ ।५-१० ) । रोमें भरे हुए वालखिल्योंका देवराजके लिये भयदायक दूसरे इन्द्रकी उत्पत्तिके निमित्त अग्निमें विधिवत् होम करना ( आदि० ३१ । ११–१४ ) | महर्षि कश्यपका अनुनयपूर्वक बालखिल्योंको समझाना, इनके संकल्पके अनुसार होनेवाले पुत्रको पक्षियोंका इन्द्र बनानेके लिये इनकी सम्मति लेना और याचक बनकर आये हुए देवराज इन्द्रपर अनुग्रह करनेके लिये अनुरोध करना । वालखिल्योंका इनके अनुरोधको स्वीकार करना ( आदि० ३१ । १६ - २३ ) । ये सूर्य किरणोंका पान करनेवाले ऋषि हैं और ब्रह्माजीकी सभा में विराजमान होते हैं ( सभा० ११ । २० ) । इन्होंने सरस्वतीके तटपर यज्ञ किया था ( वन० ९० । १० ) । द्रोणाचार्यके पास आकर उनसे युद्ध बंद करने को कहना ( द्रोण० १९० । ३३ -४० ) । ये राजा पृथुके मन्त्री बने थे ( शान्ति० ५९ । ११० ) । अगस्त्यजीके कमलोंकी चोरी होनेपर इनका शपथ खाना ( अनु० ९४ । ३९ ) । बालखिल्यगण तपस्यासे सिद्ध हुए मुनि हैं। ये सब भ्रर्मोंके ज्ञाता हैं और सूर्यमण्डलमें निवास करते हैं । वहाँ ये उञ्छवृत्तिका आश्रय ले पक्षियोंकी भाँति एक-एक दाना बीनकर उसीसे जीबननिर्वाह करते हैं । मृगछाला, चीर और वल्कल ——ये ही इनके वस्त्र हैं। ये बालखिल्य शीत-उष्ण आदि द्वन्द्वोंसे रहित, सन्मार्गपर चलनेवाले और तपस्याके धनी हैं । इनमें से प्रत्येकका शरीर अङ्गठेके सिरेके बराबर है । इतने लघु काय होनेपर भी ये अपने-अपने कर्तव्यमें स्थित हो सदा तपस्या में संलग्न रहते हैं। इनके धर्मका फल महान् म० ना० ३९ ( ३०५ ) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir वासिष्ठ है । ये देवताओंका कार्य सिद्ध करनेके लिये उनके समान रूप धारण करते हैं । ये तपस्यासे सम्पूर्ण पापको दग्ध करके अपने तेजसे समस्त दिशाओंको प्रकाशित करते हैं ( अनु० १४१ । ९९-१०२ ) । ये प्रतिदिन नाना प्रकार के स्तोत्रोंद्वारा निरन्तर उगते हुए सूर्यकी स्तुति करते हुए सहसा आगे बढ़ते जाते हैं और अपनी सूर्यतुल्य किरणोंसे सम्पूर्ण दिशाओंको प्रकाशित करते रहते हैं । ये सब-के-सब धर्मज्ञ और सत्यवादी हैं । इन्हीं में लोकरक्षा के लिये निर्मल सत्य प्रतिष्ठित है। इन वालखिल्योंके ही तपोबलसे यह सारा जगत् टिका हुआ है । इन्हीं महात्माओंकी तपस्या, सत्य और क्षमाके प्रभावसे सम्पूर्ण भूतों की स्थिति बनी हुई है - ऐसा मनीषी पुरुष मानते हैं (अनु० १४२ । ३३ के बाददा० पाठ पृष्ठ ५९३३) । वालिशिख - कश्यपद्वारा कद्रुके गर्भ से उत्पन्न एक नाग ( आदि० ३५ । ८ ) । वाली - (१) वरुणकी सभामें रहकर उनकी उपासना करनेवाला एक दैत्य ( सभा० ९ । १४ । ( २ ) एक वानरराज, जो सुग्रीवका भाई और इन्द्रका पुत्र था । भगवान् रामद्वारा इसका वध ( सभा० ३८ | २९ के बाद दाक्षिणात्य पाठ पृष्ठ ७९५, कालम १३ बन० १४७ । २८ ) । इसकी पत्नीका नाम तारा था ( वन० २८० । (१८) । वालीका सुग्रीवके साथ युद्ध और श्रीरामद्वारा बध ( वन० २८० । ३० – ३६ ) । इसके अङ्गद नामक एक पुत्र था ( बन० २८८ । १४ ) । वाल्मीकि - ( १ ) एक महर्षि, जो इन्द्रकी सभा में विराजमान होते हैं ) सभा० ७ । १६ ) । शान्तिदूत बनकर हस्तिनापुर जाते हुए श्रीकृष्णकी इनके द्वारा मार्गमें परिक्रमा ( उद्योग० ८३ । २७ ) । सात्यकिने भूरिश्रवाके व के पश्चात् महर्षि वाल्मीकिके एक श्लोकका गान किया था ( द्रोण० १४३ । ६७-६८ ) । युधिष्ठिरसे शिवभक्तिके विषय में अपना अनुभव सुनाना ( अनु० १८ । ८ - १० ) । ( २ ) गरुडकी प्रमुख संतानोंमेंसे एक ( उद्योग ० १०१।११ ) । वाष्कल - हिरण्यकशिपुका पाँचवाँ पुत्र ( आदि० ६५ । १८)। वासवी - उपरिचर वसुके वीर्यसे अद्रिकाके गर्भ से उत्पन्न । दाशराजद्वारा पालित ( आदि० ६३ । ५१-७१ ) । ( देखिये सत्यवती ) For Private And Personal Use Only वासिष्ठ - ( १ ) वसिष्ठसे सम्बन्ध रखनेवाली वस्तु (आख्यान) ( आदि० १७४ । २ ) । ( २ ) वसिष्ठ - पुत्र शक्ति एवं वसिष्ठके वंशज ( आदि० १८० | २०९ वन० २६ । ७) । ( ३ ) एक तीर्थ, इसमें स्नान करके वासिष्ठी

Loading...

Page Navigation
1 ... 307 308 309 310 311 312 313 314 315 316 317 318 319 320 321 322 323 324 325 326 327 328 329 330 331 332 333 334 335 336 337 338 339 340 341 342 343 344 345 346 347 348 349 350 351 352 353 354 355 356 357 358 359 360 361 362 363 364 365 366 367 368 369 370 371 372 373 374 375 376 377 378 379 380 381 382 383 384 385 386 387 388 389 390 391 392 393 394 395 396 397 398 399 400 401 402 403 404 405 406 407 408 409 410 411 412 413 414