Book Title: Mahabharat Ki Namanukramanika Parichay Sahit
Author(s): Vasudevsharan Agarwal
Publisher: Vasudevsharan Agarwal

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Page 311
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir विकल्प ( ३०७ ) विजय प्रथम दिनके संग्राममें सुतसोमके साथ इसका द्वन्द्वयुद्ध विगाहन-मुकुटवंशका एक कुलाङ्गार राजा ( सद्योग. (भीष्म० ४५। ५८-५९) । सहदेवके साथ संग्राम ७४ । १६)। (भीष्म०७१ । २१-२२) । अभिमन्युद्वारा पराजय विग्रह-समुद्रद्वारा स्कन्दको दिये गये दो पार्षदोंमेंसे एक । (भीष्म ७८ । २१-२२७ भीष्म०८४ । ४०-४२)। दुसरेका नाम संग्रह था (शल्य.४५। ५०)। घटोत्कचद्वारा पराजय (भीष्म. ९२ । ३६) । नकुलके विचख्नु-एक प्राचीन नरेश, जिन्होंने हिंसाकी निन्दा और साथ द्वन्द्व-युद्ध (भीष्म. ११०।११-१२, भीष्म अहिंसाधर्मकी प्रशंसा की थी। इन्होंने यह स्पष्ट घोषणा १५। ३४-३६)। भीमसेनके साथ युद्ध (भीष्म की थी कि सुरा, आसव, मधु, मांस और मछली ११३ अध्याय)। शिखण्डीके साथ युद्ध (द्रोण. २५ । तथा तिल एवं चावलकी खिचड़ी-इन सब वस्तुओंको ३६-३७)। भीमसेनके साथ युद्ध (द्रोण. ९६ । धूर्तीने यज्ञमें प्रचलित कर दिया है। वेदोंमें इनके उपयोग३१)। नकुलके साथ युद्ध (द्रोण.१०६ । १२)। का विधान नहीं है । उन धूर्तीने अभिमान, मोह और नकुलद्वारा इसकी पराजय (द्रोण.१.७।३०)। लोभके वशीभूत होकर उन वस्तुओंके प्रति अपनी यह भीमसेनद्वारा इसका वध और इसके लिये उनका शोक लोलुपता ही प्रकट की है । ब्राह्मण तो सम्पूर्ण यज्ञोंमें भगवान् प्रकट करना (द्रोण. १९७।२९-३५)। इसके मारे विष्णुका ही आदरभाव मानते हैं और खीर तथा फूल जानेकी चर्चा ( कर्ण० ५ । ८-९)। आदिसे ही उनकी पूजाका विधान है (शान्ति. २६५ । महाभारतमें आये हुए विकर्णके नाम-भरतर्षभ भरतसत्तम, धार्तराष्ट्र, धृतराष्ट्रज, दुर्योधनावर, कुरुप्रवीर, विचित्र-एक क्षत्रिय राजा, जो क्रोधवशसंज्ञक दैत्यके कुरुवर्धन आदि। अंशसे उत्पन्न हुए थे (आदि० ६७।६१)। (२) एक भारतीय जनपद । यहाँके सैनिक दुर्योधनके विचित्रवीर्य-शान्तनुद्वारा सत्यवतीके गर्भसे उत्पन्न एक साथ रहकर शकुनिकी सेनाका संरक्षण कर रहे थे राजा, जो चित्राङ्गदके छोटे भाई थे ( आदि० ९५। (भीष्म० ५१ । १५)। (३) एक ऐश्वर्यशाली शिवभक्त ऋषि, जिन्होंने शिवजीको प्रसन्न करके मनो ४९-५०, आदि. १०१।३) । धृतराष्ट्र तथा पाण्डु वाञ्छित सिद्धि प्राप्त की थी (अनु. १४ । ९९)। इनके क्षेत्रज पुत्र थे ( आदि० १ । ९४-९५ ) । भीष्मद्वारा इनका राज्याभिषेक (आदि. १०१।१२)। विकल्प-एक भारतीय जनपद (भीष्म०९। ५९)। भीष्मकी आज्ञाके अनुसार इनका राज्यशासन (आदि. विकाथिनी-स्कन्दकी अनुचरी एक मातृका (शल्य. १०१।१३)। काशिराजपुत्री अम्बिका तथा अम्बा४६।१८)। लिकासे इनका विधिपूर्वक विवाह (आदि० ९५ । विकुञ्ज-एक भारतीय जनपद । यहाँके सैनिक भीष्मद्वारा ५१; आदि. १०२ । ६५)। असंयमपूर्ण जीवन होनेके निर्मित गरुडव्यूहके बायें पंखके स्थानपर राजा बृहद्बलके कारण राजयक्ष्माके द्वारा इनकी असामयिक मृत्यु (भादि. साथ खड़े थे (भीष्म० ५६ । ९)। १०२ । ७०-७१)। भीष्मद्वारा इनका अन्त्येष्टि-संस्कार विकुण्ठन-ये सोमवंशीय महाराज इस्तीके द्वारा त्रिगर्तराजकी ( आदि. १०२।७३) । इनकी पत्नी अम्बिकाके पुत्री यशोधराके गर्भसे उत्पन्न हुए थे। इनकी पत्नी गर्भसे व्यासद्वारा धृतराष्ट्रका जन्म ( आदि० १०५ । दशार्णकुलकी कन्या सुदेवा यी, जिसके गर्भसे अजमीढ़ १३-१५)। इनकी द्वितीय पत्नी अम्बालिकाके गर्भसे नामक पुत्र उत्पन्न हुआ था (आदि. ९५। ३५-३६)। व्यासद्वारा पाण्डुकी उत्पत्ति (आदि. १०५। १७विकृत-अन्य नाम और रूप धारण करके आया हुआ काम, २१)। इनकी पत्नीकी दासीसे व्यासद्वारा विदुरका जिसका राजा इक्ष्वाकुके साथ संवाद हुआ था (शान्ति. जन्म ( आदि० १०५।२४-२८)। १९९ । ८८-१९७)। विजय-(१)एक प्राचीन राजा (आदि०१।२३३)। विक्रम ( बलवर्धन )-धृतराष्ट्रके सौ पुत्रों से एक (२) भगवान् शङ्करके त्रिशूलका नाम । यह विजय (आदि० ६७ । ९८ आदि० ११६ । ७)। नामक त्रिशूल स्कन्दकी भद्रवट-यात्राके समय यमराजके विक्षर-कश्यपपत्नी दनायुके गर्भसे उत्पन्न असुरोंमें श्रेष्ठ पीछे-पीछे गया था । यह तीन शिखरोंसे सुशोभित और चार पत्रोंमेंसे एक । शेष तीनके नाम हैं-बल, वीर और सिन्दूर आदिसे सुसजित था (वन० २३१। ३७-३८)। वृत्र (आदि. ६५ । ३३) । यही पृथ्वीपर राजा (३) अज्ञातवासके समय युधिष्ठिरद्वारा नियत किया वसुमित्रके रूपमें उत्पन्न हुआ था ( आदि. ६७ । गया अर्जुनका एक गुप्त नाम (विराट० ५। ३५)। (४) ४१)। अर्जनके प्रसिद्ध दस नामोंमेंसे एक । इस नामकी व्याख्या For Private And Personal Use Only

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