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वामन
( ३०३ )
वायुवेग
कृष्णकी परिक्रमा ( उद्योग० ८३ । २७-२८)। इनका इनका शाल्वको मारनेके लिये उद्यत हुए प्रद्युम्नके पास महाराज वसुमनाको राजधर्मका उपदेश (शान्ति. आकर देवताओंका संदेश सुनाना (वन० १९ । अध्याय ९२ से ९४ तक)। (२)एक नरेश, जिन्हें २२-२४ )। इनके द्वारा दमयन्तीकी शुद्धिका समर्थन उत्तर-दिग्विजयके अवसरपर अर्जुनने अपने अधीन कर (वन० ७६ । ३६-३९)। इनके द्वारा सीताजीकी लिया था ( सभा० २७ । ")।
शुद्धिका समर्थन (वन.२९१ । २७)। त्रिपुरदाहके वामन-(१) कश्यपधारा कद्र के गर्भसे उत्पन्न एक नाग समय भगवान् शङ्करके बाणके पंख बने थे ( द्रोण. (आदि. ३५। ६। उद्योग. १०३।१०)।(२)
२०२ । ७६-७७)। इनके द्वारा स्कन्दको बल और भगवान् विष्णुके अवतार । देवताओंकी प्रार्थनासे भगवान्
अतिबल नामक दो पार्षद प्रदान ( शल्य० ४५ । नारायणका वामनरूपमें माता अदितिके गर्भसे प्रादुर्भाव,
४४-४५)। महाराज पुरूरवाके पूछनेपर उन्हें पुरोहितब्रह्मचारी वामनके द्वारा बलिसे तीन पग भूमिकी याचना
की आवश्यकता बताना (शान्ति० ७२ । १०-२५)। (सभा० ३८ । २९ के बाद दा. पाठ, पृष्ठ ७८९)।
नारदजीके मुखसे सेमलकी उद्दण्डताकी बात सुनकर त्रिभुवनको नापते समय इनका अद्भुत रूप धारण करना ।
इनका उस वृक्षको धमकाना (शान्ति. १५६ । ६-९)। इनके चरणके आघातसे गङ्गाका प्राकट्य । इनके द्वारा
सेमल वृक्षको चेतावनी देना (शान्ति० १५७ । ५.६)। दानवोंका भीषण संहार ( सभा० ३८ । २९ के बाद
इन्होंने सुपर्णसे सात्वत धर्मकी शिक्षा प्राप्त की और स्वयं दा० पाठ, पृष्ठ ७९०)। इनके द्वारा राजा बलिका बन्धन,
भी विघताशी ऋषियोंको उसका उपदेश दिया (शान्ति. बलिको सुतललोकमें भेजकर इनके द्वारा इन्द्रको त्रिभुवन
३४८ । २२-२४)। इनके द्वारा धर्माधर्मके रहस्यका के राज्यका दान ( सभा० ३८ । २९ के बाद दा.
वर्णन ( अनु० १२८ अध्याय)। इनका कार्तवीर्य पाठ, पृष्ठ ७९०-७९)। (३) कुरुक्षेत्रकी सीमामें
अर्जुनके प्रति ब्राह्मणकी महत्ताका प्रतिपादन (अनु. स्थित एक त्रिभुवनविख्यात तीर्थ, जहाँ विष्णुपदमें स्नान
१५२ । २४ से अनु० १५७ अध्याय तक)। (२) और वामन देवताका पूजन करनेसे मनुष्य सब पापोंसे
एक प्राचीन ऋषि, जो शरशय्यापर पड़े हुए भीष्मजीशुद्ध हो भगवान् विष्णुके लोकमें जाता है (वन.
को देखने आये थे (शान्ति. ४७।९)। ४३ । १०३ ) । ( ४ ) एक सर्वपापविनाशक तीर्थ, वायुचक्र-मङ्कणक मुनिके कलशमें रखे हुए वीर्यसे उत्पन्न जहाँकी यात्रा करके भगवान् श्रीहरिका दर्शन करनेसे एक ऋषि ( शल्य० ३८ । ३२-३७)। मनुष्य कभी दुर्गतिमें नहीं पड़ता ( वन० ८४ ।
वायुज्वाल-मङ्कणक मुनिके कलशमें रखे हुए वीर्यसे उत्पन्न
म १३०-१३१)। (५) गरुड़की प्रमुख संतानोंमेंसे एक
एक ऋषि (शल्य. ३८ । ३२-३७)। (उद्योग. १०१।१०)। (६) क्रौञ्चद्वीपका एक पर्वत (भीष्म० १२।१८)।(७) चार दिगालोमेसे वायुबल-मङ्कणक मुनिके कलशमें रखे हुए वीर्यसे उत्पन्न एक, शेष तीनोंके नाम हैं-ऐरावत, सुप्रतीक और
की एक ऋषि (शल्य३८ । ३२-३७)। अञ्जन (भीष्म० १२ । ३३)। यह घटोत्कचके साथी वायभक्ष-एक प्राचीन ऋषि, जो युधिष्ठिरकी सभामें विराजमान एक राक्षस का वाहन था ( भीष्म० ६४ । ५७)। होते थे ( समा० ४ । १३)। हस्तिनापुर जाते हुए वामनिका-स्कन्दकी अनुचरी एक मातृका (शल्य.
___ श्रीकृष्णसे मार्गमें इनकी भेंट ( उद्योग० ८३ । ६४ ४६ । २३) वामा-स्कन्दकी अनुचरी एक मातृका (शल्य० ४६ । वायुमण्डल-मङ्कणक मुनिके कलशमें रखे हुए वीर्यसे १२, १७)।
उत्पन्न एक ऋषि (शल्य. ३८ । ३२-३७)। वाम्य-महर्षि वामदेवके अश्वोका नाम (वन० १९२४)। वायुरेता-मङ्कणक मुनिके कलशमें रखे हुए वीर्यसे उत्पन्न वायु-वायुतत्त्वके अभिमानी देवता, जिन्हें मेनकाने एक ऋषि (शल्य० ३८ । ३२-३७)। विश्वामित्रको लुभाते समय अपनी आवश्यक सहायताके वायुवेग-(१) एक क्षत्रिय राजा, जो क्रोधवशसंज्ञक लिये चुना था। इन्द्रने इन्हें उसके साथ भेजा और दैत्यके अंशसे उत्पन्न हुए थे (आदि. ६७।६३)। इन्होंने मेनकाका वस्त्र उड़ाया (आदि०७२।१-४)। इन्हें पाण्डवोंकी ओरसे रणनिमन्त्रण भेजनेका निश्चय इनके द्वारा कुन्तीके गर्भसे भीमसेनका जन्म (आदि. किया गया था ( उद्योग० ४ । १७)। (२) मङ्कणक १२२ । ११-१४)। ये ब्रह्माजीकी सभामें उपस्थित मुनिके कलशमें रखे हुए वीर्यसे उत्पन्न एक ऋषि हो उनकी उपासना करते हैं (सभा० ११।२०)। (शस्य० ३८ । ३२-३७)।
के बाद)।
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