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राक्षस-ग्रह
( २८२ )
राम ( रामचन्द्र)
राक्षस-ग्रह-एक राक्षस-सम्बन्धी ग्रह, जिसकी बाधा होनेसे राजपुर-(१) काम्बोज देशका प्रसिद्ध नगर, जहाँ कर्णने
मनुष्य विभिन्न प्रकारके रसोका आस्वादन करने और काम्बोजोपर विजय पायी थी (द्रोण. ४।५)। सुगन्धोंके सूंघनेसे तुरंत उन्मत्त हो जाता है (वन. (२) कलिङ्गराज चित्राङ्गदकी राजधानी, जहाँ राज२३० । ५०)।
कन्याके स्वयंवरमें बहुत से राजा एकत्र हुए थे (शान्ति. राक्षस-सत्र-पराशरजीने राक्षसोंपर कुपित होकर राक्षस- ३)। मत्रका अनुष्ठान करके उसमें राक्षसोंको जलाना आरम्भ
राजसूयपर्व-सभापर्वका एक अवान्तर पर्व ( अध्याय ३३ किया (आदि० १८० । २-३) । पुलस्त्य आदि
से ३५ तक)। महर्षियोंके समझानेसे पराशरद्वारा इस सत्रकी समाप्ति (आदि. १८० । २१)।
राजसूय-एक महायज्ञ, राजा हरिश्चन्द्रद्वारा इसका अनुष्ठान
(सभा० १२ । २३)। राजसूयपर्वमें इसका विशेष राग-खाण्डव-महाराज दिलीपके यज्ञमें बना हुआ एक प्रकारका मोदक (द्रोण. ६१।०)।
वर्णन (सभा० अध्याय ३३ से ३५ तक)। युधिष्ठिर
द्वारा इसका अनुष्ठान ( समा० ४५ अध्याय )। रागा-महर्षि अङ्गिराकी द्वितीय कन्या । इसपर समस्त
युधिष्ठिरके राजसूय यशकी विशेषता (सभा०४५।३८ प्राणियोंका अनुराग प्रकट था, इसीलिये इसका नाम
के बाद दा. पाठ, पृष्ठ ८४१-८४३)। 'रागा' हुआ (वन० २१८ । ४)।
राजसूयारम्भपर्व-सभापर्वका एक अवान्तर पर्व (अध्याय राजगृह (गिरिव्रज) एक प्राचीन नगरी, जो मगधकी राजधानी थी। जहाँका राजा दीर्घ, जो बलाभिमानी था,
१३ से १९ तक)। पाण्डुद्वारा मारा गया था (आदि. ११२।२७)।
रात्रिदेवी-रात्रिकी अधिष्ठात्री देवी । शचीने अपनी मनोयह नगरी राजा अम्बुवीचिकी भी राजधानी रह चकी कामना-पूर्तिके लिये इनकी आराधना की थी (उद्योग. (आदि. २०३।१७) । यहाँका राजा जरासंध था १३ । २५-२७)। ये मूर्तिमती होकर स्कन्दके अभिषेक(सभा० २१ अध्याय)। यह एक तीर्थ भी है, यहाँ समारोहमें पधारी थीं (पल्य. ४५।१५)। स्नान करनेसे मनुष्य कक्षीवान्के समान प्रसन्न होता है राधा-अधिरय सूतकी पत्नी, जिसकी गोदमें अधिरथने (वन० ८४ । १०४-१०५)। सहदेवकुमार मेघसंधि बालक कर्णको दिया था (भादि०६७ । १४०; आदि.
भी यहीपर निवास करता था ( आश्व० ८२ । ३)। ११० । २३ ) । इसके द्वारा कर्णका नामकरण राजधर्मा-एक बकराज । इसका दूसरा नाम नाडीज (आदि. ११०।२४, वन० ३०१ । १० उद्योग
था । यह कश्यपका पुत्र और ब्रह्माका मित्र था१४।५-६)। (शान्ति० १६९ । १९-२०)। इसके द्वारा कृतघ्न राम (रामचन्द्र)-अविनाशी महाबाहु भगवान् विष्णुके गौतमका स्वागत (शान्ति. १६९ । २३-२४)। कृतघ्न अवतारस्वरूप दशरथनन्दन श्रीराम । जगत्की प्रसन्नता गौतमका आतिथ्य-सत्कार (शान्ति.१७०।३-९)।
बढ़ाने और धर्मकी स्थापनाके लिये श्रीहरिने अपने-आपको इसका धनके लिये गौतमको अपने मित्र राक्षसराज चार रूपोंमें विभक्त करके चैत्र शुक्ला नवमीको इस विरूपाक्षके पास भेजना (शान्ति. १७०।१४-१६)।
भूतलपर अवतार लिया था, श्रीरामको साक्षात् भूतनाथ धन लेकर लौटे हुए गौतमका सत्कार करना (शान्ति. श्रीहरिका स्वरूप बताया जाता है । इनका विश्वामित्रके १.१ । २९-३०)। गौतमद्वारा इसका वध (शान्ति. यह विघ्न डालनेके कारण सुबाहुका वध करना और १. २३)। सुरभिके फेनसे राजधर्माका जीवित होना मारीचको भी चोट पहुँचाना । विश्वामित्रद्वारा इन्हें और विरूपाक्षसे मिलना (पान्ति. १.।-५)। देवताओंके लिये दुर्जय दिन्यास्त्रोंका दान । जनकके गौतमको जिलानेके लिये इसका इन्द्रसे अनुरोध (शान्ति. धनुर्यशमें इनके द्वारा शिवजीके धनुषका भजन । सीता१७३ । 11-१२)। इन्द्रद्वारा अमृतके छिड़के जानेपर जीके साथ इनका विवाह । पिताकी आशासे इनका गौतमका जीवित होना और राजधर्माका धन आदिसहित चौदह वर्षके लिये वनवास । इनके द्वारा जनस्थानमें रहकर गौतमको विदा करके अपने घरमें प्रवेश करना (शान्ति.
देवताओंके कार्योंका साधन और वहीं जनहितके लिये १७३ । १३-१५)।
चौदह हजार राक्षसोंका वध । राक्षसोंके षड्यन्त्रसे इनकी राजधर्मानुशासनपर्व-शान्तिपर्वका एक अवान्तर पर्व पत्नी सीताका अपहरण । सुग्रीवके साथ इनकी मित्रता । (अध्याय । से १३० तक)।
इनके द्वारा वानरराज वालीका वध और सुग्रीवका राजनी-भारतवर्षकी एक नदी, जिसका जल भारतीय प्रजा राज्याभिषेक । इनका समुद्रपर सेतु बाँधकर लङ्कामें प्रवेश पीती है (भीम०९।२१)।
और इनके द्वारा रावणका वध । विभीषणका लङ्काके राज
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