Book Title: Mahabharat Ki Namanukramanika Parichay Sahit
Author(s): Vasudevsharan Agarwal
Publisher: Vasudevsharan Agarwal

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Page 297
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir लोमश ( २९३ ) लोहितायनि अध्याय )। शतिके यज्ञमें च्यवनका इन्द्रपर कोर नरकासुरके वध और भगवान् वाराहद्वारा वसुधाके करके वज्रको स्तम्भित करना और उन्हें मारनेके लिये उद्धारकी कथा कहना ( बन० १४२ अध्याय )। मदासुरको उत्पन्न करना (वन० १२४ अध्याय )। लोमशजीका युधिष्ठिरको विविध उपदेश देकर देवताओंके अश्विनीकुमारोंका यज्ञमें भाग स्वीकार कर लेनेपर परम पवित्र स्थानको पधारना (वन० १७६ । २२)। इन्द्रका संकटमुक होना आदि प्रसंगों और अन्यान्य ये शरशय्यापर पड़े हुए भीष्मजीको देखने गये तीर्थोके महत्त्वका लोमशद्वारा वर्णन (वन० १२५ थे (शान्ति० ४७ ।.)। इनके द्वारा अन्नदानकी अध्याय)।राजा मान्धाताकी उत्पत्ति और उनके संक्षिप्त महिमाका कथन (अनु०६७।१०)। इनके द्वारा चरित्रका इनके द्वारा वर्णन (बन० १२६ अध्याय)। धर्मके रहस्यका वर्णन (अनु. १२९ अध्याय)। ये उत्तर लोमशजीका युधिष्ठिरको सोमक और जन्तुका उपाख्यान दिशाके ऋषि हैं (वन० १६५ । ४६)। (२)विडालोसुनाना-सोमकको सौ पुत्रोंकी प्राप्ति तथा सोमक और पाख्यानमें आया हुआ बिलाव ( शान्ति. १३८ । पुरोहितका समानरूपसे नरक और पुण्यलोकोंका उपभोग २२)। इसका पलित नामक चूहेके साथ संवाद करना (वन० १२७-१२८ अध्याय ) । कुरुक्षेत्रके (शान्ति. १३८ । ३४-१९८)। द्वारभूत प्लक्षप्रस्रवण नामक यमुनातीर्थ एवं सरस्वतीतीर्थकी लोमहर्षण-एक मुनि, जो युधिष्ठिरकी सभामें विराजते महिमाका इनके द्वारा वर्णन (वन० १२९ अध्याय)। थे ( सभा०४।१२)। लोमश नीद्वारा विभिन्न तीर्थोकी महिमा और राजा लोह-एक प्राचीन देश, जिसे उत्तर-दिग्विजयके समय उशीनरकी कथाका आरम्भ-राजा उशीनरद्वारा बाजको अर्जुनने जीत लिया था (समा० २७ । २५)। अपने शरीरका मांस देकर शरणमें आये हुए कबूतरके लोहितारणी-भारतवर्षकी एक नदी, जिसका जल भारतप्राणोंकी रक्षा करना ( वन० १३०-१३१ अध्याय)। महर्षि लोमशका अष्टावक्र के जन्मका वृत्तान्त और वासी पीते हैं (भीष्म० ९ । १८)। उनके राजा जनकके दरबारमें जानेका वर्णन करना लोहमेखला-स्कन्दकी अनुचरी एक मातृका (शल्य. (वन० १३२ अध्याय )। अष्टावक्रका द्वारपाल तथा ४६ । १८, २१)। राजा जनकसे वार्तालाप, बन्दी और अष्टावकका शास्त्रार्थ, लोहवस्त्र-स्कन्दका एक सैनिक (शल्य.४५ । ७५)। बन्दीकी पराजय तथा समङ्गामें स्नानसे अष्टावक्रके अङ्गों लोहित-(१) एक राजा, जिसे अर्जुनने उत्तर-दिग्विजयका सीधा होना-इन प्रसंगोंका इनके द्वारा कथन के समय अपने अधीन कर लिया था (सभा० २७११७)। (वन० १३३-१३४ अध्याय)। लोमशजीद्वारा कर्दमिल (२) एक नाग, जो वरुणकी सभामें बैठकर वहाँकी क्षेत्र आदि तीर्थोकी महिमा रैभ्य एवं भरद्वाजपुत्र शोभा बढ़ाता है (सभा० ९।८)। यवक्रीत मुनिकी कथा तथा ऋषियोंका अनिष्ट लोहितगङ्गा-एक स्थानविशेष, जह भगवान् श्रीकृष्णने करनेके कारण मेधावीकी मृत्युका वर्णन (वन० १३५ विरूपाक्ष' का तथा पञ्चजन' नामसे प्रसिद्ध पाँच अध्याय )। यवक्रीतका रैभ्यमुनिकी पुत्रवधूके साथ राक्षसोंका संहार किया था (सभा० ३८ । २९ के बाद व्यभिचार और रेभ्यमुनिके क्रोधसे उत्पन्न राक्षसके द्वारा दा० पाठ, पृष्ठ ८००)। उसकी मृत्युके प्रसंगोंका लोमशद्वारा कथन ( बन० लोहिताक्ष-ब्रह्माद्वारा स्कन्दको दिये गये चार पार्षदोंमें१३६ अध्याय)। भरद्वाजका पुत्रशोकसे विलाप करना, से एक । तीनके नाम ये-नन्दिसेन, घण्टाकर्ण और रैभ्यमुनिको शाप देना एवं स्वयं अग्निमें प्रवेश करना। कुमुदमाली (शल्य. १५। २४-२५)। अर्वावसुकी तपस्या के प्रभावसे परावसुका ब्रह्माहत्यासे मुक्त होना और रेभ्य, भरद्वाज तथा यवक्रीत आदिका पुन- लोहिताक्षी-स्कन्दकी अनुचरी एक मातृका ( शल्य. जीवित होना-इन प्रसंगोंको लोमशजीने सुनाया था ४६ । २२, २४)। (वन०१३-१३८ अध्याय ) । पाण्डवोंकी उत्तरा- लोहितायनि-लालसागरकी कन्या, जो स्कन्दकी धाय खण्ड-यात्राके समय लोमशजीद्वारा उसकी दुर्गमताका है, इसकी कदम्बके वृक्षोंपर पूजा होती है (वन. कथन (वन० १३९ अध्याय )। लोमशजीका २३।१०-११)। For Private And Personal Use Only

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