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तुहर
( १३२ )
त्रिगर्त
यज्ञमें बुलाये गये थे और आकर रसोई परोसनेका कार्य निर्माण हुआ था । इसमें सुवर्ण तथा वैदूर्यसे जटित एक करते थे ( बन० ५१ । २५-२६ ) । गन्धमादनसे हजार खम्भे और सौ दरवाजे थे । इसकी लंबाई तथा द्वैतवनकी ओर लौटे हुए पाण्डव तुषार देशको पार करके चौड़ाई दो-दो मीलकी थी।) (सभा० ५६ । १८)। राजा सुबाहके नगर में पहुँचे थे (वन. १७७ । १२)। त्रसदस्य-एक राजर्षि, जो यमसभामें रहकर सूर्यपुत्र (२) तुषार जनपदके निवासी, जो भीष्मनिर्मित यमकी उपासना करते हैं ( सभा०८।९)। ये क्रौञ्चव्यूहके दाहिने पक्षका आश्रय लेकर स्थित हुए थे भूपालोंमें श्रेष्ठ, इक्ष्वाकुवंशीय और महामनस्वी थे, उनके (भीष्म ७५ । २१)। तुषारवासो म्लेच्छ मान्धाताके पिताका नाम पुरुकुत्स था, इनके यहाँ अगस्त्य मुनि,
राज्यमें निवास करते थे (शान्ति. ६५ । १३)। श्रुता और ब्रनश्वका आगमन और इनका राज्यकी तुहर-स्कन्दका एक सैनिक ( शल्य० ४५ । ७१ )। सीमापर जाकर उन सबका विधिवत् आदर-सत्कार करना
और उनके पधारनेका कारण पूछना (वन. ९८ । तुहुण्ड-एक दानव, जो कश्यपके द्वारा दनुके गर्भसे
१२-१४)। इनका अगस्त्यजीके धन माँगनेपर उनके उत्पन्न हुआ था ( आदि०६५ । २५) । यही भूतलपर
सामने अपने आय-व्ययका लेखा रखना (वन०९८१६)। सेनाबिन्दु नामक राजा हुआ था (आदि० ६७ ।
ये प्रातःसायं स्मरण करने योग्य नरेशोंमेंसे एक हैं १९-२०)।
(अनु० १६५। ५५)। तृणक-एक राजर्षि, जो यमसभामें उपस्थित हो वहाँ सूर्यपुत्र यमकी उपासना करते हैं (सभा०८।१७)।
त्रिककुब्धाम-भगवान् विष्णुका एक नाम ( अनु०
१४९ । २०)। तृणप-एक देवगन्धर्व, जो अर्जुनके जन्म-समयमें वहाँ पधारे थे (आदि. १२२ । ५६)।
त्रिकूट-लङ्काके पासका एक पर्वत (वन० २७७ । ५४)। तृणबिन्दु-(१) काम्यकवनका एक सरोवर, जिसके पास
त्रिगङ्क-एक तीर्थ, जहाँ देवताओं और पितरोंका तर्पण करनेसे पाण्डवलोग द्वैतवनसे गये थे (वन० २५८ । १३)।
। मनुष्य पुण्यलोकमें प्रतिष्ठित होता है (वन०८४ । (२) काम्यकवनमें रहनेवाले एक ऋषि, जिनकी २९) । आशासे पाण्डवोंने द्रौपदीको आश्रममें छोड़कर शिकारके त्रिगर्त-(१) एक जनपद ( भीष्म० ५१।७) । वहाँके लिये प्रस्थान किया था (वन० २६४ । ५)। ये शर
निवासी और राजा। एकचक्रानगरीकी ओर जाते हुए शय्यापर पड़े हुए भीष्मको देखनेके लिये कुरुक्षेत्रमें गये
पाण्डवलोग इस देशसे होकर निकले थे (आदि. १५५ । थे (शान्ति० ४७ । ५)।
२)। अर्जुनने उत्तर दिग्विजयके समय इस देशको तृणसोमाङ्गिरा-दक्षिण दिशाका आश्रय लेकर रहनेवाले
जीता था। यहाँके नरेश कुन्तीनन्दन अर्जुनकी शरणमें एक ऋषि (अनु० १५० । ३४)।
आये थे (सभा० २७ । १८)। नकुलने भी अपनी
दिग्विजययात्रामें इस देशको जीता था ( सभा० तृतीया-एक नदो, जो वरुणसभामें उपस्थित रहकर वरुण
३२।७)। ये लोग युधिष्ठिरके लिये भेंट लाये थे देवकी उपासना करती है (सभा०९।२१)।
(सभा० ५२ । १४)। एक त्रिगत देशीय वीरने तेजस्वी-पाँच इन्द्रोंमेंसे एक नाम (आदि०१९६।२८.२९)। राजा युधिष्ठिरके रथके घोड़ोंको मार डाला, फिर युधिष्ठिरतेजेयु-पूरुपुत्र रौद्राश्वके द्वारा मिश्रकेशी अप्सराके गर्भसे
द्वारा वह स्वयं भी मारा गया (वन० २७१ । १२उत्पन्न ( आदि० ९४ । ११)।
१४) । हाथीसहित त्रिगर्तराज सुरथ नकुलद्वारा
मारा गया (वन० २७१ । १८-२२)। अर्जुनने तैजस-कुरुक्षेत्रके अन्तर्गत एक वरुण देवतासम्बन्धी तीर्थ,
त्रिगतॊका संहार किया (वन० २७१ । २८)। त्रिगर्तजहाँ स्कन्दका देवसेनापतिके पदपर अभिषेक हुआ था
देशीय योद्धाओं तथा त्रिगर्तराज सुशर्माद्वारा विराटके (वन० ८३। १६४)।
राज्यपर आक्रमण और उनकी गौओंका अपहरण (विराट तैत्तिरि-राजा उपरिचर वसुके यज्ञमें सम्मिलित हुए
३० अध्याय) । त्रिगतोंके साथ मत्स्यदेशीय वीरोंका सोलह सदस्यों में से एक (शान्ति० ३३६ । ९)।
युद्ध ( विराट ० ३२ अध्याय)। त्रिगर्तराज सुशर्माका तोमर-एक पूर्वोत्तरवर्ती भारतीय जनपद ( भीष्म० ९। विराटको पकड़कर ले जाना, भीमद्वारा सुशर्माका निग्रह ६९)।
और युधिष्ठिरका अनुग्रह करके उसे छोड़ देना (विराट. तोरणस्फाटिक-धृतराष्ट्रके बनवाये हुए सभाभवनका नाम ३३ अध्याय)। पाँच त्रिगतोंके साथ युद्ध करनेका (घतक्रीडाके समय धृतराष्ट्रकी आज्ञासे इस सभाका काम पाँचों द्रौपदी-पुत्रोंको सौंपा गया (उद्योग. १६४ ।
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