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यमक
( २६४ )
ययाति
स्कन्दको दिये गये दो पार्षदोंमेंसे एक, दूसरेका नाम था यमुनाद्वीप-यमुनाजीके बीचका एक द्वीप, जहाँ सत्यवतीअतियम (शल्य. ४५। ४५)।
ने पराशरजीके द्वारा व्यासको उत्पन्न किया था ( आदि. यमक-एक देश और जातिके लोग-यहाँके राजा, राज- ६०।२)। कुमार और निवासी भी युधिष्ठिरके यज्ञमें भेंट लेकर
यमुनाप्रभव-एक तीर्थ, जहाँ स्नान करके मनुष्य अश्वआये थे (सभा० ५२ । १३-१७)।
मेध यज्ञका फल पाकर स्वर्गलोकमें प्रतिष्ठित होता है यमदूत-महर्षि विश्वामित्रके ब्रह्मवादी पुत्रों से एक (अनु. (वन० ८४ । ४४)। ४।५१)।
ययाति-एक प्राचीन राजर्षि ( आदि० १ । २२९) । यमुना-( सूर्यपुत्री यमुना, जो परम पावन नदीके रूपमें
महाराज नहुषके द्वितीय पुत्र । इनके बड़े भाई यति विराज रही हैं, कलिन्द पर्वतसे प्रकट होनेके कारण इन्हें
योगका आश्रय ले ब्रह्मभूत मुनि हो गये; अतः ये ही कालिन्दी कहते हैं। ये यमुनोत्तरीसे निकलकर प्रयाग
भूमण्डलके सम्राट हुए । इन्होंने इस पृथ्वीका पालन और में आयी हैं, वहाँ गङ्गाजीके साथ इनका संगम हुआ है ।
बहुत-से यज्ञोंका अनुष्ठान किया ( आदि० ७५ । ३०भगवान् श्रीकृष्णकी परम पावन लीलास्थली इन्हींके
३२)। ये अपराजित, मन और इन्द्रियोंको संयममें तटपर है। ये आधिदैविकरूपसे भगवान् श्रीकृष्णकी
रखनेवाले और भक्तिभावसे देवताओं तथा पितरोंका पट्टमहिषी थीं।) यमुनाजीके द्वीपमें पराशरजीने सत्यवतीके
पूजन करनेवाले थे ( आदि०७५ । ३३)। देवयानी गर्भसे व्यासजीको उत्पन्न किया था ( आदि०६० ।
और शर्मिष्ठासे इनके पाँच पुत्रोंकी उत्पत्ति, पुत्रोसे २)। ये गङ्गाकी सात धाराओं से एक हैं, जो इनका इनकी यौवन-याचना, कनिष्ठ पुत्रकी युवावस्थासे दोनों जल पीते हैं, वे पापमुक्त हो जाते हैं (आदि. १६९ । पत्नियों और विश्वाची अप्सराके साथ इनके विहार १९-२१)। जरासंधके मन्त्री और सेनापति हंस तथा
तथा कामभोगसे तृप्त न होने पर इनके द्वारा वैराग्यपूर्ण डिम्भक यमुनाजीमें कूदकर मर गये थे (सभा०१४।
गाथा-गान आदिकी संक्षिप्त कथा ( आदि० ७५ । १३-४४)। वनगमनके समय पाण्डव लोग यमुनाके
३४-५८)। कुएँ में गिरी हुई देवयानीका इनके द्वारा जलका सेवन करके आगे बढ़े थे (वन० ५।२)।
हाथ पकड़कर उद्धार ( आदि. ७८।१४-२३) । संजयपुत्र सहदेवने यमुनातटपर लाख स्वर्णमुद्राओंकी।
देवयानीद्वारा इनसे विवाहके लिये प्रार्थना ( आदि० ७८ । दक्षिणा देकर अग्निकी उपासना की थी (वन. ९०।
२३ के बाद दाक्षिणात्य पाठ)। ब्राह्मणकन्या होनेके ७) राजा भरतने यमुनाजीके तटपर पैंतीस अश्वमेध
कारण इनका देवयानीकी प्रार्थनाको अस्वीकार करना यज्ञोका अनुष्ठान किया था (वन० ९०। ८)। ये
और उसकी अनुमति ले अपने नगरको जाना ( आदि. आर्चीक पर्वतके पास बहती हैं । ब्रह्मर्षिसेवित पुण्यमयी
७८ । २३ के बाद दाक्षिणात्य पाठसहित २४ तक)। नदी हैं और पापके भयको दूर भगाती हैं । इनके
सखियोंके साथ विचरण करती हुई देवयानीसे इनकी तटपर मान्धाता और दानिशिरोमणि सहदेवकुमार सोमकने
वनमें भेंट (आदि० ८।१-७)। ययाति और यज्ञ किया था ( वन० १२५ । २१-२६ )। इनके
देवयानीका संवाद-दोनोंका एक दूसरेसे परिचय पूछना तटपर नाभागपुत्र राजा अम्बरीषने यज्ञ किया था
और अपना परिचय देना, देवयानीका इनके साथ (वन० १२९ । २)। अगस्त्यजीने यमुना-तटपर घोर
विवाहका प्रस्ताव, ययातिका शुक्राचार्यके शापसे भय तपस्या की थी (वन० १६१ । ५६)। राजा शान्तनुने
बताना, देवयानीका धायको भेजकर अपने पिताको यमुनातटपर सात बड़े-बड़े यज्ञोंका अनुष्ठान किया था
बुलवाना और उनसे अपनेको राजा नहुषके हाथमें (वन. १६२ । २५)। ये भारतकी उन प्रमुख नदियों में
देनेका अनुरोध करना, शुक्राचार्यका अपनी पुत्रीको से हैं, जिनका जल भारतीय प्रजा पीती है ( भीष्म
राजाके हाथमें देना और उन्हें वर्णसङ्करजनित अधर्मके ९।१५)। भरतने यमुनातटपर एक बार सौ अश्व
भयसे मुक्त करना, साथ ही शर्मिष्ठाको अपनी शय्यापर मेध यज्ञ किये (द्रोण० ६८1८)। इन्होंने ही इसी
न बुलानेके लिये सावधान करना । ययातिका देवयानीके नदीके तटपर तीन सौ अश्वमेध यज्ञ पूर्ण किये थे
साथ शास्त्रोक्त रीतिसे विवाह तथा दो हजार सखियों(शान्ति. २९ । ४६)।
सहित शर्मिष्ठा एवं देवयानीको साथ लेकर प्रसन्नतायमुनातीर्थ-सरस्वती-तटवर्ती पुण्य तीर्थ, जहाँ अदिति
पूर्वक इनका अपने नगरको जाना ( आदि. ८१ । नन्दन वरुणने राजसूय यज्ञका अनुष्ठान किया था ८-३८) ययातिसे देवयानीको पुत्रकी प्राप्ति ( आदि. (शल्य. ४९।११-१५)।
८२ । ४-५)। ययातिको एकान्तमें देखकर शर्मिष्ठाका
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