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युयुत्सु
( २७९ )
युयुत्सु-(१) धृतराष्ट्रद्वारा वैश्य जातीय भार्याके गर्भसे दक्षिणा देकर बहुत-से यज्ञोका अनुष्ठान किया था। जिन्होंने
उत्पन्न पुत्र । इसकी 'करण' संशा थी ( आदि० ६३ । एक हजार अश्वमेध यज्ञ किये थे ( वन. १२६ । ११८)। इसकी उत्पत्ति (आदि. ११४ । ३)। ५-६) । ये राजा सुद्युम्नके पुत्र थे (वन० १२६ । दुर्योधन की प्रेरणासे भीमसेनके भोजनमें दिये हुए विषकी १.)। तृषित हुए इनके द्वारा अभिमन्त्रित जलका इसके द्वारा भीमसेनको सूचना ( आदि. १२८ । ३७- पान ( वन० १२६ । १५ )। इनकी बायीं कुक्षिसे ३८)। यह द्रौपदीके स्वयंवरमें गया था (आदि. मान्धाताका जन्म (वन० १२६ । २७)। इन्हें महा१८५।२)। कुरुक्षेत्रके मैदानमें पाण्डवोके पक्षमे आना
राज रैवतसे खङ्गकी प्राप्ति हुई और इन्होंने रघुको वह (भीष्म ४३ । १००)। यह योद्धाओंमें श्रेष्ठ, धनुर्धरोंमें खङ्ग प्रदान किया (शान्ति. १६६ । ७८)। इनके उत्तम, शौर्यसम्पन्न, सत्यप्रतिज्ञ और महाबली था । द्वारा मांस-भक्षण-निषेध और उमसे इन्हें परावर-तत्त्वका वारणावतनगरमें बहुत-से राजा क्रोधमें भरकर युयुत्सुपर ज्ञान ( अनु० ११५ । ६१) । (२) विष्वगश्वचढ़ आये और उसे मार डालना चाहते थे; किंतु इसे कुमार अद्रिके पुत्र, जो श्रावके पिता ये ( वन. परास्त न कर सके (द्रोण. १०। ५८-५९)। इसके २०२ । ३)। (३) वृषादर्भके पुत्र, जिन्होंने सब रथके घोड़ोंका वर्णन (द्रोण० २३ । ३४-३५)। सुबाह- प्रकारके रत्न, अभीष्ट स्त्रियाँ और सुरम्य गृह दान करके के साथ युद्ध करके उसकी दोनों भुजाएँ काटना (द्रोण. स्वर्गका निवान पाया (शान्ति. २३४ । १५)। २५ । १३.१४ ) । भगदत्तके हाथीद्वारा इसके यपकेतु-भूरिश्रवाका नामान्तर (सभा० ४४ । १९)। रथके घोड़ोंका मारा जाना (द्रोण. २६ । ५६ )। (विशेष देखिये भूरिश्रवा) अभिमन्युवधसे हर्षोन्मत्त हुए कौरवोंको इसका उपा. :
योग-एक ऋषि, जो तपस्वी, जितेन्द्रिय और तीनों लोकोंमें लम्भ देना (द्रोण० ७२ । ६०-१३) । उलूकके साथ
विख्यात हैं ( अनु०१५०। ४५)। युद्ध में इसका पराजित होना (कर्ण० २५ । ११) । श्रीकृष्ण और युधेष्ठिरसे आज्ञा लेकर इसका राजमहिलाओं के
योजनगन्धा-व्यास जननी, सत्यवतीका दूसरा नाम (आदि. साथ इस्तिनापुर लौटना ( शल्य. २९ । ३६-
६३ । ८२-८३)। ( देखिये सत्यवती) विदुरजीके पूछनेपर उन्हें सब समाचार बनाना (शल्य.
योतिमत्सक-एक राजा, जिनके पास पाण्डवोंकी ओरसे २९ । ९१-९५ ) । युधिष्ठिरद्वारा इसे धृतराष्ट्रकी रण-निमन्त्रण भेजने का निश्चय किया गया था ( उद्योग. सेवाका भार सौंपा जाना (शान्ति०४१ । १७-१८)। ४।२०)। भीष्मके अन्त्येष्टि संस्कारके लिये चिता-निर्माण करनेमें योध्य-एक देश, जिसे दिग्विजयके समय कर्णने जीता था पाण्डवोंके साथ यह भी था (अनु० १६८ । ११)। (वन० २५४ । ८-९) । मरुत्तका धन लानेके लिये पाण्डवोंके हिमालय जानेपर योनितीर्थ-भीमाके उत्तम स्थानमें स्थित एक तीर्थ, जहाँ यह इस्तिनापुरकी रक्षा में नियुक्त था ( आश्व० ६३ । स्नान करनेसे मनुष्य देवीका पुत्र होता है, उसकी अङ्ग२४) । पाण्डवलोग जब वनमें धृतराष्ट्र से मिलने गये
कान्ति तपाये हुए 'सुवर्ण-कुण्डल' के समान होती है, थे, उस समय भी नगर-रक्षाका भार इसीपर था।
उम तीर्थ के सेवनसे मनुष्य को सहस्र गोदानका फल मिलता ( आश्रम० २३ । १५)। युयुत्सुको आगे करके पाण्डवोन है (वन, ८२। ८४ )। धृतराष्ट्र के लिये जलाञ्जलि दी (आश्रम० ३९। १२)। महा
योनिद्वार-उदयगिरिपर स्थित एक तीर्थ, जहाँ जानेसे मनुष्य प्रस्थानके समय बालक परीक्षित्को राज्यपर अभिषिक्त करके जब युधिष्ठिर जाने लगेउस समय उन्होंने युयुत्सुको
योनि-संकटसे मुक्त हो जाता है (वन० ८४ । ९५)। ही गज्यकी रक्षाका भार सौंपा था ( महाप्रस्थान०१। यौधेय-(१) युधिष्ठिरके पुत्र, जो युधिष्ठिरके द्वारा
शिबि देशके राजा गोवासन की पुत्री देविकाके गर्भसे उत्पन्न महाभारतमे आये हुए युयुत्सुके नाम-धार्तराष्ट्र, धृत- हुए थे ( आदि० ९५ । ७६ ) । (२) एक देश तथा राष्ट्रज, धृतराष्ट्रसुत, करण) कौरव्य, कौरव, वैश्या पुत्र आदि। जातिके लोग । यहाँके राजा, राजकुमार और निवासी
(२) धृतराष्ट्र का गान्धारीके गर्भसे उत्पन्न हआ भी युधिष्ठिरके राजसूय यज्ञमें भेंट लेकर आये थे पुत्र (शान्ति० ६७ । ९३)।
(सभा० ५२ । १४-१७)। युयुधान-ये सत्यकके पुत्र हैं. इन्हींको सात्यकि कहते हैं यौन- एक जाति, इस जातिके लोग पापाचारी तथा चाण्डाल
( सभा० ४ । ३५ ) । ( विशेष देखिये सात्यकि) कौवे और गीधकी भाँति आचार-विचारवाले होते हैं युवनाश्व-इक्ष्वाकुवंशके एक सुप्रसिद्ध नरेदा जिन्होंने प्रचुर (शान्ति० २०७ । ४३-४५)।
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