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युधिष्ठिर
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युधिष्ठिर
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पास महर्षि लोमशकः आगमन और इनसे अर्जुनको पाशुपत अनेकानेक उपाख्यान सुनाना (वन० अध्याय १२८ से आदि दिव्यास्त्र प्राप्त होनेकी बात बताकर इन्द्र का संदेश १३८ तक)। भाइयोसहित युधिष्ठिरकी उत्तराखण्ड-यात्रा, सुनाना (वन० ९१ अध्याय)। महर्षि लोमशके मुखसे लोमशजीद्वारा उसकी दुर्गमताका कथन, गङ्गाजीसे इन्द्र और अर्जुनका संदेश सुनकर युधिष्ठिरका प्रसन्न होना युधिष्ठिरकी रक्षाके लिये प्रार्थना तथा युधिष्ठिरका भीम
और इनका तीर्थयात्राके लिये उद्यत हो अपने अधिक सेनको द्रौपदीकी रक्षाके लिये सावधान रहनेके लिये आदेश साथियोंको विदा कर देना (वन० ९२ अध्याय)। देना और नकुल-सहदेवके शरीरपर हाथ फेरकर उन्हें ऋषियोंका युधिष्ठिरके पास आकर अपनेको भी तीर्थयात्राके सान्यना देना (वन० १३९ अध्याय) । युधिष्ठिरका लिये साथ ले चलनेका अनुरोध करना तथा इनका उनकी सहदेव एवं द्रौपदीसहित भीमसेनको धौम्य, सारथि, सेवक, बात मानकर ऋषियोंको नमस्कार करके तीर्थयात्राके लिये रथ, घोड़े तथा अन्यान्य ब्राह्मणोंके साथ लौट जानेकी आज्ञा प्रस्थान (वन० ९३ अध्याय)। महर्षि लोमशका देवताओं देना और अपने लौटनेतक गङ्गाद्वारमें प्रतीक्षा करनेको और धर्मात्मा राजाओंका उदाहरण देकर युधिष्ठिरको अधर्मसे कहना (वन० १४०।१-७)। इनका अर्जुनको न हानि बताना और तीर्थयात्राजनित पुण्यकी महिमा वर्णन देखनेके कारण भीमसेनसे अपनी मानसिक चिन्ता प्रकट करते हए आश्वासन देना (वन १४ अध्याय) । शमठ- करना एवं गन्धमादन पर्वतपर जानेका दृढ़ निश्चय करना का युधिष्ठिरसे अमूर्तरयाके पुत्र राजर्षि गयके यज्ञका वर्णन (वन० १४१ अध्याय)। गन्धमादनकी यात्रामें द्रौपदीके करना (वन० ९५।१८-२९)। इनका अगस्त्याश्रम- मूर्छित होनेपर इनका विलाप (वन० १४४।१०-१४)। में पहुँचकर वातापिके विनाशके विषयमें लोमशजीसे पूछना युधिष्ठिरका द्रौपदीको आश्वासन देकर भीमसेनसे यह पूछना और लोमशनीका इनसे अगस्त्यका चरित्र सुनाना ( वन० कि इस दुर्गम मार्गमें द्रौपदी कैसे चल सकेगी ( वन० अध्याय ९६ से ९९ । ३० तक)। युधिष्ठिरका पुनः अग- ४४ । २१-२२)। इनकी आज्ञासे भीमसेनद्वारा स्त्यका चरित्र सुनने की इच्छा प्रकट करना और लोमशका घटोत्कचका स्मरण और उसकी सहायतासे द्रौपदीसहित इन इनसे उनका चरित्र सुनाना (वन. अध्याय १०० से सब लोगोंका गन्धमादन पर्वत एवं बदरिकाश्रममें प्रवेश १०५ तक)। युधिष्ठिरके पूछनेपर लोमशजीका भगीरथके (वन. १४४ । २५ से १४५ अध्यायतक)। भीमसेनके आश्रयसे किस प्रकार समुद्र की पूर्ति हुई-यह प्रसंग सुनाना सौगन्धिक पुप्प लाने के लिये चले जानेपर भयंकर उत्पात (वन. अध्याय १०६ से १०९ तक) । युधिष्टिरके देखकर इनकी चिन्ता और घटोत्कचके सहारे सभीके साथ पूछनेपर लोमशजीका हेमकूटपर घटित होनेवाली अद्भुत इनका सौगन्धिक बनमें पहुँचना (वन. १५५ अध्याय)। बातोंका रहस्य बताना और ऋष्यशृङ्गका चरित्र सुनाना इनको आकाशवाणीद्वारा सौगन्धिक वनसे नर-नारायणाश्रम(वन० अध्याय १० से ११३ तक)। इनका कौशिकी, में लौट जानेका आदेश (वन० १५६ । १३-१६)। गङ्गासागर एवं वैतरणी नदी होते हुए महेन्द्र पर्वतपर ___अपहरण करते समय जटासुरको इनकी फटकार (वन. गमन (वन० ११४ अध्याय)। अकृतव्रणका युधिष्ठिरसे १५७ । १२-३०)। इनके द्वारा भीमसेनसे गन्धमादनजमदग्निकी उत्पत्तिा प्रसंग सुनाते हुए परशुरामजीके की रमणीयताका वर्णन (वन० १५८ । ७७--१०.)। उपाख्यानका वर्णन करना (वन० अध्याय ११५से ११७। प्रश्न के रूमें आर्टिषेणका युधिष्ठिरको उपदेश (वन. १५ तक ) । महेन्द्र पर्वतपर इन्हें परशुरामका दशन तथा १५९ अध्याय)। गन्धमादन पर्वतपः राक्षसों के वर करनेइनके द्वारा उनका पूजन (वन०१७।१६-१८)। इनका पर इनके द्वारा भीमसेनकी भर्त्सना (वन० १६ । विभिन्न तीर्थोंमें होते हुए प्रभासक्षेत्रमें पहुँचकर त स्यामें १०-१२)। इनको कुबेरसे भेंट तथा उनके द्वारा इन्हें प्रवृत्त होना और यादवोंका भाइयोसहित इनसे मिलना सान्त्वना (वन० १६१ । ४३-४६)। धौम्यका युधिष्ठिर (वन० 11८ अध्याय)। बलदेवजीका इनके प्रति सहा- को मेरु पर्वत तथा उसके शिखरोंपर स्थित ब्रह्मा, विष्णु नुभूति-सूचक उद्गार (वन० ११९ अध्याय)।इनके द्वारा आदिके स्थानोंका लक्ष्य कराना और सूर्य-चन्द्रमाकी गति श्रीकृष्णके कथनका अनुमोदन (वन० १२० । २७)। एवं प्रभाका वर्णन करना (वन० १६३ अध्याय)। युधिष्ठिर लं मशद्वारा युधिष्ठिरसे राजा गयके यज्ञकी प्रशंसा, च्यवन- आदिका अर्जुनके लिये उत्कण्ठित होना और इनके समीप सुकन्याके चरित्रका वर्णन ( वन० अध्याय १२१ से अर्जुनका आगमन ( वन० १६४ अध्याय ) । अर्जुनका १२५ तक)। युधिष्ठिरके पूछने पर लोमशद्वारा मान्धाताके युधिष्ठिरके चरणोंमें प्रणाम करके सब भाइयों और द्रौपदीसे चरित्रका वर्णन और सोमक तथा जन्तुके उपाख्यानका मिलना और युधिष्ठिरके पास विनीतभावसे खड़ा होना (वन कथन (वन० अध्याय १२६ से १२७ तक)। लोमशका १६५ । ४-५) । इनके द्वारा गन्धमादनपर इन्द्रका युधिष्ठिरको विभिन्न तीर्थोकी महिमाका वर्णन करते हुए स्वागत-सत्कार तथा उनको सान्त्वना देकर इन्द्रका लौटना
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