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युधिष्ठिर
साथ युद्ध और उनके द्वारा इनकी पराजय ( द्रोण० १०६ । १८-४७ - ४७ ) । सात्यकिकी रक्षा के लिये सैनिकों को 'आदेश देना ( द्रोण० ११० । १४ – १९ ) । इनका सात्यकिकी प्रशंसा करते हुए उन्हें अर्जुनकी सहायता के लिये जानेका आदेश (द्रोण० ११० । ४२ - १०३)। अपनी रक्षाका समुचित प्रबन्ध बताकर इनका सात्यकिको अर्जुनकी सहायता के लिये जानेका ही आग्रहपूर्ण आदेश ( द्रोण० १११ । ४० – ५१ ) । दुर्योधनके साथ युद्ध ( द्रोण० १२४ । १५ – ४७ ) । इनकी अर्जुन और सात्यकिके लिये चिन्ता तथा भीमसेनको उनका पता लगानेके लिये भेजना ( द्रोण० १२६ अध्याय ) । भीमसेन और अर्जुनका सिंहनाद सुनकर प्रसन्नतापूर्वक उन्होंके विषय में विचार करना ( द्रोण० १२८ । ३९ - ५५ ) । जयद्रथ
के बाद श्रीकृष्णकी स्तुति करना ( द्रोण ० १४९ । ५ – ३४ ) । इनके द्वारा भीमसेन और सात्यकिका अभिनन्दन ( द्रोण० १४९ । ५४ - ६० ) । दुर्योधन के साथ युद्ध और उसे मूच्छित करना ( द्रोण० १५३ । २९ - ३९ ) | द्रोणाचार्य के साथ युद्ध और उन्हें पराजित करना ( द्रोण० १५७ । २७ - ४३ ) द्रोणाचार्य के साथ युद्ध और उन्हें मूर्हित करना (द्रोण० १६२ । ३६— ४२ ) । इनका पैदल सैनिकोंको दीप जलानेका आदेश देना ( द्रोण० १६३ । २७ ) । कृतवर्मा के साथ युद्ध और उसके द्वारा परास्त होना ( द्रोण० १६५ । २४४० ) । कर्णके पराक्रमसे इनकी घबराहट ( द्रोण ० १७३ । २५ – २८ ) । घटोत्कच वधसे शोक-विह्वल होना ( द्रोण० १८३ । २७ – ५० ) । धृष्टद्युम्न आदि महारथियों को द्रोणाचार्यपर आक्रमण करनेका आदेश ( द्रोण० १८४ । ३–८ ) । द्रोणाचार्यसे छलपूर्वक अश्वत्थामा के मरनेकी बात कहना ( द्रोण० १९० । ५५ ) । अर्जुन से कौरव सेना के सिंहनादका कारण पूछना ( द्रोण० १९६ । १० -- २५ ) | नारायणास्त्र के प्रभावको देखकर इनका खेद प्रकट करना ( द्रोण० १९९ । २६-३६ ) । कर्णसे युद्धके लिये अर्जुनको व्यूह बनानेका आदेश देना ( कर्ण० ११ । २३ - २७) । इनके द्वारा दुर्योधनकी पराजय ( कर्ण० २८ । ७-८; कर्ण २९ । ३२) | अपने पक्ष के वीरोंको उनके योग्य प्रतिपक्षियोंके साथ लड़नेका आदेश ( कर्ण० ४६ । ३४-३६ ) । कर्णके साथ युद्ध में उसे मूच्छित करना ( कर्ण० ४९ । २१ ) । कर्णसे पराजित होकर इनका युद्धस्थलसे हट जाना ( कर्ण० ४९ । ४९ ) । अश्वत्थामासे पराजित होकर इनका युद्धस्थल से हट जाना ( कर्ण० ५५ ॥ (३८ ) । इनपर कौरव - सैनिकका आक्रमण और कर्ण के प्रहारसे व्याकुल होकर युद्धस्थलसे हट जाना ( कर्ण०
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६२ । ३१ ) । कर्णद्वारा घायल हो भागकर छात्रनीमें चला जाना ( कर्ण ० ६३ । ३३-३४ ) । अर्जुनसे भ्रमवश कर्णके मारे जानेका वृत्तान्त पूछना (कर्ण० ६६ अध्याय) अर्जुनके प्रति अपमानजनक क्रोधपूर्ण वचन बोलना ( कर्ण० ६८ अध्याय ) । अर्जुनके अपमान से दुखी होकर वन जानेके लिये उद्यत होना ( कर्ण० ७० । ४३— ४७) । अर्जुनके साथ प्रेमपूर्वक मिलना और उन्हें आशीर्वाद देना ( कर्ण० ७१ । ३० – ३४, ४० ) । कर्णकी मृत्युसे प्रसन्न होकर श्रीकृष्ण और अर्जुनकी प्रशंसा करना ( कर्ण० ९६ । ४१ - ४५ ) । इनके द्वारा शल्यके चक्ररक्षक चन्द्रसेन और द्रुमसेनका वध ( शल्य० १२ । ५२-५३ ) । शल्यके साथ युद्ध ( शल्य० १३ अध्याय १५ अध्याय ) । इनके द्वारा शल्यकी पराजय ( शल्य० १६ । ६२-६६ ) । शल्यका वध ( शल्य० १७ । ५२ ) । इनके द्वारा शल्यके छोटे भाईका वध ( शल्य० १७ । ६४-६५ ) । इनके द्वारा कृतवर्माकी पराजय ( शल्य १७ । ८६-८७ ) । इनका सेनासहित द्वैपायनसरोवरपर जाना (शल्प ० ३० । ५३५४ ) । जलमें छिपे हुए दुर्योधनको युद्धके लिये ललकारना ( शल्य० ३१ । १८ – ७३ ) । इममें से किसी एकका वध कर देनेपर राज्य तुम्हारा होगा- ऐसा दुर्योधनको वर देना ( शल्य० ३२ । २६-२७; शक्य ० ३२ । ६१-६२ ) । भीमसेनको समझाकर अन्याय से रोकना ( शल्य० ५९ । १५-२० ) । दुर्योधनको सान्त्वना देते हुए खेद प्रकट करना ( शक्य० ५९ । २२ – ३० ) | श्रीकृष्णसे वार्तालाप ( शल्य० ६० । १५ – ३८ ) । भीमसेनकी प्रशंसा ( ० ६० । ४७४८ ) । श्रीकृष्ण के प्रति कृतज्ञता प्रकट करना ( वाक्य ० ६२ । २८-३२ ) | श्रीकृष्णको गान्धारीको समझानेके लिये हस्तिनापुर भेजना ( शल्य० ६२ । ४०-४२ )। धृष्टद्युम्न के सारथिके मुखसे पाञ्चालों और द्रौपदी- पुत्रोंकी मृत्युका समाचार सुनकर विलाप करना ( सौप्तिक ० - १० । ९ - २६ ) । द्रौपदीको बुलानेके लिये नकुलको भेजना ( सौप्तिक ० १० । २७ ) । युद्धस्थलमें जाकर पुत्रोंकी दशा देखकर मूच्छित होना ( सौप्तिक० १० । २९-३१ ) । अश्वत्थामा से भीमसेनकी रक्षा के लिये श्रीकृष्ण के साथ जाना ( सौप्तिक० १३ । ६) । द्रौपद के आग्रहसे अश्वत्थामाकी मणिको धारण करना ( सौप्तिक ० १६ । ३५ ) । अश्वत्थामाद्वारा अपने पुत्रोंके मारे जानेके विषयमें श्रीकृष्णसे प्रश्न ( सौप्तिक ० १७ । २-५ ) | भाइयोहित इनका धृतराष्ट्रसे मिलना ( स्त्री० १२ । (११) । गान्धारीसे क्षमा याचना करना ( स्त्री० १५ । २५–२८ ) । गान्धारीकी दृष्टि पड़ने से इनके नखका
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