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पार्वतीय
जीको शान्त करना ( शान्ति० २८९ । ३५ ) । श्रीकृष्णको आठ वर देना ( अनु० १५ । ७-८ ) । देवताओंको संतानहीन होनेका शाप देना (अनु० ८४ । ७४-७५ ) । परिहास शिवजीकी दोनों आँखें हाथों से बंद करना ( अनु० १४० । २६ ) । शङ्करजी के साथ संवाद ( अनु० १४० । ४० से १४५ अध्यायतक ) । गङ्गा आदि नदियोंसे स्त्री-धर्मके विषय में सलाह लेना ( अनु० १४६ । २२ – २६ ) । इनके द्वारा स्त्री-धर्मका वर्णन (अनु० १४६ । ३३ – ५९ ) । ये मुञ्जवान् पर्वत पर भगवान् शिव के साथ रहती हैं ( आश्व० ८ । १–३)।
( १९७ )
महाभारत में आये हुए पार्वती के नाम - अम्बिका, आर्या, उमा, भीमा, शैलपुत्री, शैलराजसुता, शाकम्भरी, शर्वाणी, देवेशी, देवी दुर्गा, गौरी, गिरिसुता, गिरिराजात्मजा, काली, महाभीमा, महादेवी, महाकाली, महेश्वरी, माहेश्वरी, पर्वतराजकन्या, रुद्राणी, रुद्रपत्नी, त्रिभुवनेश्वरी आदि ।
उत्पन्न
पार्वतीय ( पर्वतीय ) - ( १ ) महाभारतकालका एक राजा, जो कुक्षि नामक दानव के अंशसे हुआ था (आदि० ६७ | ५६ ) । ( २ ) एक भारतीय जनपद और यहाँ के निवासी । ये युधिष्ठिर के राजसूय यज्ञमें उपहार लेकर आये थे ( सभा० ५२ । ७ ) । जयद्रथकी सेनामें आये हुए पार्वनीयोंका अर्जुनद्वारा संहार ( वन० २७१ | ८ } | पार्वतीय योद्धा दुर्योधन - की सेना में भी थे ( उद्योग० ३० । २४ ) । भारतीय जनपदों में पार्वतीयकी गणना ( भीष्म० ९ । ५६ ) । भगवान् श्रीकृष्णने कभी पार्वतीय देशपर विजय पायी थी ( द्रोण ० ११।१६ ) । पार्वतीय योद्धा कौरवदलमें शकुनि और उलूकके साथ रहा करते थे ( कर्ण० ४६ । १३ ) । पाण्डववीरोंद्वारा इनका युद्ध में संहार ( शल्य० १ । २७ ) ।
पार्वतेय - एक राजर्षि, जो कपट नामक दैत्यके अंश से उत्पन्न हुए थे ( आदि० ६७ । ३० ) । पार्श्वरोम - एक भारतीय जनपद ( भीष्म० ९ । ५६ ) । पार्ष्णिमा - एक विश्वेदेव ( अनु० ९१ । ३० ) । पाल-वासुकिके कुलमें उत्पन्न एक नाग, जो जनमेजयके
सर्पसत्र में दग्ध हुआ था ( आदि० ५७ । ५ ) । पालिता - स्कन्दकी अनुचरी मातृका ( शल्य० ४६ । ३)।
पावक - भरत नामक अग्निके पुत्र, इनका दूसरा नाम 'महान् ' था ( वन० २१९ । ८ ) ।
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पिच्छल
पावन - ( १ ) कुरुक्षेत्र की सीमा में स्थित एक तीर्थ, जहाँ देवता- पितरोंका तर्पण करनेसे अश्वमेध यज्ञका फल मिलता है ( वन० ८३ । १७५) । ( २ ) एक विश्वेदेव (अनु० ९१ । ३० ) ।
पाश - वरुणके दिव्य अस्त्र, जिनका वेग कोई रोक नहीं सकता ( वन० ४१ । २९ ) । पाशाशिनी - भारतकी एक प्रमुख नदी, जिसका जल यहाँके निवासी पीते हैं ( भीष्म० ९ । २२ ) । पाशिवाट - एक भारतीय जनपद ( भीष्म० ९ । ६४ ) ।
पाशी - धृतराष्ट्र के सौ पुत्रोंमेंसे एक ( आदि० ११६ । ८ ) । भीमसेनद्वारा इसका वध ( कर्ण० ८४ । ५-६)।
पाशुपत - भगवान् शङ्करका परम प्रिय, सर्वश्रेष्ठ एवं अनुपम प्रभावशाली दिव्यास्त्र ( वन० ४० | १५ ) । भगवान् शिवद्वारा इसका अर्जुनको उपदेश ( वन० ४० | २० ) । इसके उग्रस्वरूप तथा प्रभावका वर्णन ( अनु० १४ । २५८ - २७५ ) । पाषाणतीर्ण - एक तीर्थ, जो शूर्पारक क्षेत्रमें जमदग्निकी वेदपर स्थित है ( वन० ८८ । १२ ) । पिङ्गतीर्थ - एक प्राचीन तीर्थ, जहाँ आचमन करके ब्रह्मचारी और जितेन्द्रिय मनुष्य सौ कपिलाओंके दानका फल प्राप्त कर लेता है ( वन० ८२ । ५७ ) । पिङ्गल - ( १ ) कश्यप और कद्रूसे उत्पन्न एक प्रमुख नाग ( आदि० ३५ । ९ ) । (२) एक ऋषि, जो जनमेजयके सर्पसत्र में अध्वर्यु थे ( आदि० ५३ । ६) । ( ३ ) इस नामके दूसरे ऋषि जो जनमेजयके सर्पसमें सदस्य थे ( आदि० ५३ । ७) । ( ४ ) एक यक्षराज, जो भगवान् शिवका सखा है और श्मशानभूमिमें ही ( उसकी रक्षाके लिये ) निवास करता है । यह सम्पूर्ण जगत्को आनन्द देनेवाला है ( वन० २३१ । ५१ ) ।
पिङ्गलक-एक यक्ष, जो कुबेरकी सभामें रहकर उनकी सेवा करता है ( सभा० १० । १७.) । पिङ्गलराज - श्मशान में निवास करनेवाला एक यक्षराज, जो भगवान् शिवका सखा है ( वन० २३१ । ५१ )। पिङ्गाक्षी - ( १ ) स्कन्दकी अनुचरी मातृका ( शल्य०
४६ । १८ ) । (२) स्कन्दकी अनुचरी मातृका ( शल्य० ४६ । २१ ) ।
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पिच्छल - वासुकिवंश में उत्पन्न एक नाग, जो जनमेजयके सर्पसत्र में जल मरा था ( आदि ० ५७ । ६ ) ।