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भीष्मपर्व
( २३७ )
भूरि
भीष्मपर्व-महाभारतका एक प्रधान पर्व ।
अथवा नरकके नामसे प्रसिद्ध हुआ है । भगवान् श्रीकृष्णभीष्मवधपर्व-भीष्मपर्वका एक अवान्तर पर्व ( अध्याय
द्वारा भौमासुरके मारे जानेपर इन्होंने स्वयं प्रकट हो ४३ से १२२ तक)।
अदितिके दोनों कुण्डल लौटाये और नरकासुरकी संतानकी भीष्मस्वर्गारोहणपर्व-अनुशासनपर्वका एक अवान्तर पर्व
रक्षाके लिये श्रीकृष्णसे प्रार्थना की (सभा०३८ । २९ के
बाद दाक्षिणात्य पाठ, पृष्ठ ८०८)। इनका अपना भार (अध्याय १६७ से १६८ तक)।
उतारने के लिये भगवान् विष्णुसे प्रार्थना करना ( वन. भुमन्यु-(१) ये महाराज दुष्यन्तके पौत्र एवं भरतके पुत्र
१४२ । ४१-४२)। वाराहरूपधारी विष्णुद्वारा इनका थे, जो महर्षि भरद्वाजकी कृपासे उत्पन्न हुए थे (आदि.
उद्धार (वन०१४२॥ ४५-४७)। संजयका धृतराष्ट्रसे ९४ । १९-२२)। इनकी माताका नाम सुनन्दा था;
इनकी महिमाका वर्णन करना (भीष्म० ४ । १० से जो काशीनरेश सर्वसेनकी पुत्री थी (आदि० ९५ ।
भीष्म० ५। १२ तक)। श्रीकृष्णसे वैष्णवास्त्र माँगनेकी ३२) । पिताद्वारा इनका युवराजपदपर अभिषेक
कथाकी चर्चा (द्रोण. २९ । ३०-३१) । पृथुसे अपने(आदि० ९४ । २३)। इनके द्वारा पुष्करिणीके गर्भसे
को अपनी कन्या माननेके लिये प्रार्थना करना (द्रोण. दिविरथ, सुहोत्र, सुहोता, सुहवि, सुयजु और ऋचीक
६९ । १५)। परशुरामजीद्वारा क्षत्रियसंहार हो जानेके नामक पुत्र उत्पन्न हुए ( आदि० ९४ । २४-२५)।
बाद कश्यपजीसे भूपालकी याचना करना और बचे हुए इनके द्वारा दशाह कन्या विजयाके गर्भसे सुहोत्रका जन्म
राजकुमारोंका पता बताना (शान्ति० ४९ । ७४-८६ )। (बादि. ९५ । ३३)। (२) ये सोमवंशी महाराज
श्रीकृष्णके पूछनेपर ब्राह्मणोंकी महिमाका वर्णन करना कुरुके प्रपौत्र एवं धृतराष्ट्र के पुत्र थे ( आदि० ९४ ।
( अनु० ३४ । २२-२९)। इनका भगवान् श्रीकृष्ण५९)। (३) एक देवगन्धर्व, जो अर्जुनके जन्म
को गृहस्थ-धर्म सुनाना (अनु. ९७ । ५-२३)। महोत्सवके अवसरपर पधारे थे (आदि. १२२॥ ५८)।
राजा अङ्गके साथ स्पर्धा होनेके कारण अदृश्य हो जाना भूवन-(१) एक दिव्य महर्षि, जो प्रयाणकालमें भीष्मजी
(अनु. १५३।२)। इनका काश्यपी नाम पड़नेका को देखनेके लिये वहाँ पधारे थे (अनु० २६।८)। कारण (अनु. १५४ । ७)। (२) प्राचीन नरेश (२) एक सनातन विश्वेदेव ( अनु० ९१ । ३५)। भूमिपतिकी भार्या ( उद्योग. ११७ । १४)। भूतकर्मा-कौरवपक्षका एक योद्धा, जो नकुल-पुत्र शतानीक- भमिञ्जय-एक कौरवपक्षीय योद्धा, जो द्रोणाचार्यद्वारा निर्मित के साथ युद्ध में उनके द्वारा मारा गया (द्रोण. २५ । गरुडव्यूहके हृदयस्थानपर खड़ा था (द्रोण. २० । २२-२३)।
१३-१४)। भूतधामा-जिन इन्द्रोंके अंशसे पाण्डवोंकी उत्पत्ति हुई थी, भूमिपति-एक प्राचीन राजा ( उद्योग० ११७ । १४)।
उन्हीं पोोंमेंसे दूसरे इन्द्रका नाम भूतधामा था ( आदि भूमिपर्व-भीष्मपर्वका एक अवान्तर पर्व ( अध्याय ११ से १९६ । २८-२९)।
१२ तक)। भूतमथन-स्कन्दका एक सैनिक (शल्य० ४५ । ६९)।
भूमिपाल-एक प्राचीन क्षत्रिय नरेश, जो क्रोधवशसंज्ञक
दैत्यके अंशसे उत्पन्न हुए थे (आदि०६७।६१भूतलय-एक गाँवका नाम । यहाँ चोरों और डाकुओंका
६६)। इन्हें पाण्डवोंकी ओरसे रणनिमन्त्रण भेजनेका अड्डा था । यहाँ एक नदी थी, जिसमें मुर्दे बहाये जाते
निश्चय किया गया था ( उद्योग. ४ | १६)।। थे। ऐसी नदीमें स्नान करना शास्त्रनिषिद्ध है ( वन० १२९ । ९)।
भूमिशय-एक प्राचीन नरेश, जिन्हें राजा अमूर्तरयासे
खड्ग की प्राप्ति हुई थी और इन्होंने उस खड्गको दुष्यन्तभूतशर्मा-कौरवपक्षका एक योद्धा, जो द्रोणाचार्यद्वारा
कुमार भरतको दिया था ( शान्ति० १६६ । ७५)। निर्मित गरुड़व्यूहके ग्रीवास्थानमें खड़ा था (द्रोण० २० ।
भूरि-ये कुरुवंशी सोमदत्तके पुत्र थे। इनके दो छोटे ६-७)। भूतितीर्था-स्कन्दकी अनुचरी एक मातृका ( शल्य.
भाइयोका नाम भूरिश्रवा और शल था। ये अपने पिता .४६ । २७)।
तथा भाइयोंके साथ द्रौपदीके स्वयंवरमें गये थे ( आदि.
१८५ । १४-१५)। पिता और भाइयोंके सहित युधिष्ठिरके भूपति-एक सनातन विश्वेदेव ( अनु० ९१ । ३२ )।।
राजसूय यज्ञमें भी पधारे थे (सभा०३४ । ८)। इनका भूमि-(१) भूदेवी। ये ब्रह्माजीकी पुत्री और भगवान् सात्यकिके साथ युद्ध और उनके द्वारा वध (द्रोण..
नारायणकी पत्नी हैं। भगवान् वाराहके साथ समागम होने- १६६। --१२)। मृत्युके पश्चात् ये विश्वेदेवोंमें मिल : पर इनके गर्भसे एक पुत्र हुआ. जो इस भूतलपर भौम गये ( स्वर्गा० ५। १६-१७)।
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