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मार्कण्डेयसमास्यापर्व
( २५४ )
मालिनी
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वर्णन (वन० १९० । ७--१२) । कल्कि अवतारका मार्तिकावत-एक देश, जहाँका राजा शाल्व था वर्णन (वन० १९० । ९३-९७)। इनका युधिष्ठिरको (वन०१४ । १६ वन० २०। १५)। परशुरामजीने धर्मोपदेश (वन० १९४ । २३-३०)। इनके द्वारा इस देशके क्षत्रियोंका संहार किया था (द्रोण...। युधिष्ठिरको विविध धार्मिक विषयोंका उपदेश (वन० २०. १२)। अर्जुनने कृतवर्माके पुत्रको मार्तिकावत नगरका अध्याय)। स्कन्दके नामोंका वर्णन तथा स्तवन (वन राजा बनाया था ( मौसल० ० । ६९)। २३२ अध्याय) । इनका युधिष्ठिर आदिको श्रीरामका
आरामका मार्दमर्षि-विश्वामित्रके ब्रह्मवादी पुत्रोंमेंसे एक (अनु.४। उपाख्यान तथा सती सावित्रीका चरित्र सुनाना (वन. अध्याय २७३ से २९९ तक)। इन्होंने धृतराष्ट्रको त्रिपुरवधकी कथा सुनायी थी (कर्ण० ३३ । २) । शरशय्या
माल-एक भारतीय जनपद ( भीष्म० ९ । ३९)। पर पड़े हुए भीष्मको देखनेके लिये अन्य ऋषियोंके साथ मालतिका-स्कन्दकी अनुचरी एक मातृका (शल्य०४६।४)। ये भी गये थे (शान्ति०४७।११) । इन्हें नाचिकेतसे मालय-रुड़की प्रमुख संतानोंमेंसे एक ( उद्योग० १०१। शिवसहस्रनामका उपदेश मिला और इन्होंने उपमन्युको १४)। इसका उपदेश दिया ( अनु० १७ । ७९)। इनका
मालव-(१) पश्चिम भारतका एक जनपद, जिसे नकुलने नारदजीसे नाना प्रकारके प्रश्न करना (अनु. २२ ।
पराजित किया था ( सभा० ३२ । ७)। यहाँके राजा दाक्षिणात्य पाठ)। प्रयाणकालके समय भीष्मजीके पास
तथा निवासी युधिष्ठिरके राजसूय यज्ञमें पधारे थे (सभा० गये हुए ऋषियोंमें ये भी थे (अनु. २६ । ६)।
३४ । ११)। मालवदेशके शस्त्रधारी क्षत्रियराजकुमारोंने इन्होंने मांस-भक्षणके दोष बताये हैं ( अनु० ११५ । ३७
अजातशत्रु युधिष्ठिरको बहुत धन भेंट किया था (सभा० ३९) । इनकी धर्मपत्नीका नाम धूमोर्णा था (अनु.
५२ । १५)। कर्णने इस देशपर विजय पायी थी १४६ । ४)। युधिष्ठिरने महाप्रस्थानसे पूर्व अन्य ऋषियों
(वन० २५४ । २०)। यह भारतवर्षका एक प्रमुख के साथ मार्कण्डेयजीका भी भगवबुद्धिसे पूजन किया था
जनपद है (भीष्म० ९ । ६०, ६२)। मालवगणोंने ( महाप्रस्थान० । । १२)।
भीष्मकी आज्ञाके अनुसार किरीटधारी अर्जुनका सामना महाभारतमें आये हुए मार्कण्डेयजीके नाम-भार्गव
किया था (भीष्म० ५९ । ७६)। भगवान् श्रीकृष्णने भार्गवसत्तम भृगुकुलशार्दूल भृगुनन्दन, ब्रह्मर्षि विप्रर्षि आदि। इस देशके योद्धाओंको जीता था (द्रोण १७)।
(२) एक प्रसिद्ध तीर्थ, जो गङ्गा और गोमतीके अर्जुनने मालवयोद्धाओंको अपने बाणोंद्वारा गहरी चोट संगमपर है ( यह स्थान वाराणसीसे लगभग सोलह मील पहुँचायी थी (द्रोण० १९ । १६)। परशुरामजीने मालव उत्तर है। ) इसमें जाकर मनुष्य अग्निष्टोम यज्ञका फल देशके क्षत्रियोंका अपने तीखे बाणोंद्वारा संहार किया था पाता और अपने कुलका उद्धार कर देता है (वन० ८४ । (द्रोण०७०।११-१३) । राजा युधिष्ठिरने युद्धमें ८०.८१)।
क्रुद्ध हो मालवसैनिकोंको यमलोक भेज दिया (द्रोण. मार्कण्डेयसमास्यापर्व-वनपर्वका एक अवान्तर पर्व १५७ । २८)। (२) राजा अश्वपतिद्वारा मालवीके (अध्याय १८२ से २३२ तक)।
गर्भसे उत्पन्न एक क्षत्रिय जाति ( वन० २९७ ।
५९-६०)। मार्गणप्रिया-कश्यपकी प्राधा नामवाली पत्नीसे उत्पन्न हुई पुत्री (आदि० ६५ । ४५)।
मालवा-एक नदी, जो नित्य स्मरणीय है (अनु० १६५ ।
२५)। मार्गशीर्ष-( बारह महीनोंमेंसे एक, जिस मासकी पूर्णिमा
मालवी-मद्रनरेश महाराज अश्वपतिकी बड़ी रानी और तिथिको मृगशिरा नक्षत्रका योग हो, उसे मार्गशीर्ष कहते
सावित्रीकी माता: जिनके गर्भसे सौ मालव' संज्ञक पुत्रोंके हैं । यह कार्तिकके बाद और पौषके पहले आता है।) जो
उत्पन्न होनेका वरदान प्राप्त हुआ था (वन० २९७ । मार्गशीर्षमासमें एक समय भोजन करके बिताता है और
५९-६०)। मद्रपतिकी रानी मालवीसे सावित्रीके सौ अपनी शक्तिके अनुसार ब्राह्मणोंको भोजन कराता है, वह रोग और पापोंसे मुक्त हो जाता है (अनु० १०६ । १७.
बलवान् भाई उत्पन्न हुए (वन. २९९ । १३)। १८)। मार्गशीर्ष मासमें द्वादशी तिथिको दिन-रात उपवास मालिनी-(१) कण्व मुनिके आश्रमके समीप बहनेवाली करके भगवान् केशवकी पूजा-अर्चा करनेसे मनुष्य अश्वमेध एक नदी (किसी-किसीके मतमें सहारनपुर जिलेकी यज्ञका फल पा लेता है और उसका सारा पाप नष्ट हो जाता चूका नदी ही प्राचीन मालिनी है, कुछ विद्वान् हिमालयहै (अनु. १०९।३)।
पर इसकी स्थिति मानते हैं), इसके दोनों तटोंपर कण्व
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