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माल्यपिण्डक
( २५५ )
माहेश्वरपुर
मुनिका आश्रम फैला हुआ था और यह बीचमें बहती थी मासव्रतोपवास-फल-जो आश्विन मासको एक समय (आदि०७०।२१) । इसीके तटपर शकुन्तलाका भोजन करके बिताता है, वह पवित्र, नाना प्रकारके जन्म हुआ था (आदि०७२।१०)। (२) शिशु- वाहनोंसे सम्पन्न तथा अनेक पुत्रोंसे युक्त होता है की माता, सप्त शिशुमातृकाओंमेंसे एक (वन० २२८ । (अनु० १०६ । २९)। आश्विन मासकी द्वादशी तिथि१०)। (३) एक राक्षस-कन्या, जो कुबेरकी आशासे को दिन-रात उपवास करके पद्मनाभ नामसे भगवान्की महर्षि विश्रवाकी परिचर्या में तत्पर रहती थी। विश्रवाने पूजा करनेवाला पुरुष सहस्र गोदानका पुण्यफल पाता है इसके गर्भसे विभीषण नामक पुत्रको जन्म दिया था (अनु. १०९।१३)। जो मनुष्य कार्तिक मासमें एक (वन० २७५ । ३-८)। (४) अङ्गदेशकी एक समय भोजन करता है, वह शूरवीर, अनेक भार्याओंसे समृद्धिशालिनी नगरी, जो जरासंधद्वारा कर्णको दी गयी संयुक्त और कीर्तिमान होता है (अनु. १०६ । ३०)। थी (शान्ति ५।६)।
कार्तिक मासकी द्वादशी तिथिको दिन-रात उपवास करके माल्यपिण्डक-एक कश्यपवंशी नाग (उद्योग. १०३ । भगवान् दामोदरकी पूजा करनेसे स्त्री हो या पुरुष, गो
यज्ञका फल पाता है (अनु० १०९ । १४)। जो माल्यवान-(१) एक पर्वत, जो इलावृतवर्षमें मेरु और नियमपूर्वक रहकर चैत्र मासको एक समय भोजन करके मन्दराचलके बीच शैलोदा नदीके दोनों तटोंके निवासियों- बिताता है, वह सुवर्ण, मणि और मोतियोंसे सम्पन्न महान् को जीतकर आगे बढ़नेपर अर्जुनको मिला था (सभा० कुलमें जन्म पाता है (अनु. १०६ । २३)। जो चैत्र २८ । ६ के बाद दा. पाठ, पृष्ठ ७४०)। नीलगिरिके मासकी द्वादशी तिथिको दिन-रात उपवास करके विष्णु दक्षिण और निषधके उत्तर सुदर्शन नामक एक जामुनका नामसे भगवान्की पूजा करता है, वह मनुष्य पुण्डरीकवृक्ष है । जिसके कारण समूचे द्वीपको जम्बूद्वीप कहा जाता यज्ञका फल पाता और देवलोकमें जाता है (अनु०१०९। है, वहीं माल्यवान् पर्वत है । जम्बूफलके रससे जम्बू नदी ७)। जो ज्येष्ठ मासमें एक ही समय भोजन करता है। बहती है । वह माल्यवान्के शिखरपर पूर्वकी ओर प्रवाहित वह अनुपम श्रेष्ठ ऐश्वर्य प्राप्त करता है ( अनु० १०६ । होती है । माल्यवान् पर्वतपर संवर्तक और कालाग्नि नामक २५) । जो मानव ज्येष्ठ मासकी द्वादशी तिथिको दिन-रात अग्निदेव सदा प्रज्वलित रहते हैं। इस पर्वतका विस्तार उपवास करके भगवान् त्रिविक्रमकी पूजा करता है, वह पाँच-छः हजार योजन है। वहाँ सुवर्णके समान कान्तिमान गोमेधयज्ञका फल पाता और अप्सराओंके साथ आनन्द मानव उत्पन्न होते हैं (भीष्म०७। २७-२९)। भोगता है (अनु० १०९ । ९)। (शेष महीनोंके फल (२) हिमाचल प्रदेशका एक पर्वत, आर्टिषेणके उन उनके नामके प्रकरणमें देखें।) आश्रमसे गन्धमादनकी ओर आगे बढ़नेसे मार्गमें पाण्डवों- माठिक-एक भारतीय जनपद (भीष्म०९। ४६)। को माल्यवान् पर्वत मिला था, जहाँसे गन्धमादन दिखायी
माहिष्मती-एक प्राचीन नगरी, जो राजा नीलकी राजधानी देता था (वन० १५८ । ३६-३७)। (३) किष्किन्धा
थी। दक्षिण-दिग्विजयके समय सहदेवने इस नगरीपर क्षेत्रके अन्तर्गत एक पर्वत, जिसके समीप सुग्रीव और
आक्रमण करके राजा नीलको परास्त किया और उनपर वालीका युद्ध हुआ था (वन० २८०।२६)। ( यह
कर लगाया (सभा०३१ ।२५-६०)। यह नगरी तुङ्गभद्राके तटपर स्थित है। ) इसके सुन्दर शिखरपर
इक्ष्वाकुके दसवे पुत्र दशाश्वकी भी राजधानी रह चुकी है श्रीरामचन्द्रजीने वर्षाके चार मासतक निवास किया
(अनु.२।६) माहिष्मती नगरीमें सहस्र भुजधारी (वन० २८०।४.)।
परम कान्तिमान् कार्तवीर्य अर्जुन नामवाला एक हैहयवंशी मावेल्ल-सम्राट् उपरिचर वसुके चतुर्थ पुत्र ( आदि० ६३ ।
राजा समस्त भूमण्डलका शासन करता था (अनु० ३०-३१) । महाबली मावेल्ल युधिष्ठिरके राजसूय यज्ञमें
१५२ । ३)। पधारे थे (सभा० ३४ । १३-१४)। मावेल्लक-एक जनपद, जहाँके योदाओंको साथ लेकर माहेय-एक भारतीय जनपद (भीष्म० ९ । ४९)। त्रिगर्तराज सुशर्मा अर्जुनसे लड़नेके लिये चला था माहेश्वरपद-यह सोमपद नामक तीर्थका एक अवान्तर (द्रोण० १७ । २०)। अर्जुनद्वारा मावेल्लक योद्धाओं- तीर्थ है । इसमें स्नान करनेसे अश्वमेध यज्ञका फल प्राप्त का संहार (द्रोण० १९ । १६-१६) । द्रोणाचार्यको होता है (वन० ८४ । ११९)। आगे करके मावेल्लकोंका अर्जुनपर आक्रमण (द्रोण. माहेश्वरपुर-एक तीर्थ, जिसमें जाकर भगवान् शङ्करकी ९१ । ३५-४४)। अर्जुनद्वारा इनके मारे जानेकी पूजा और उपवास करनेसे मानव सम्पूर्ण मनोवाञ्छित चर्चा (कर्ण०५।४८-४९)।
कामनाओंको प्राप्त कर लेता है (वन० ८४ । १२९)।
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