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मन्दराचल
( २४६ )
मेय
स्वीकार कर ली ( आदि० २२८ अध्याय)। मन्दपालका २५।२९)। (२)(उत्तराखण्डमें गढ़वालकी केदारलपितासे अपने बच्चोंकी रक्षाके लिये चिन्ता प्रकट पर्वतमालासे निकलनेवालो मन्दाग्नि' या कालीगङ्गा' करना । लपिताके ईर्ष्यायुक्त वचन सुनकर मन्दपालका । नामवाली नदी) जिसका जल भारतवासी पीते हैं (भीष्म उससे अपने कथनकी यथार्थता बताना और अपने ९ । ३४ )। (३) यक्षराज कुबेरकी कमल-पुष्पोसे बच्चोंके पास जाना । बच्चोंद्वारा अभिनन्दित न होने- सुशोभित एक बावड़ी, जो गङ्गाजलसे पूर्ण होनेके कारण पर इनका जरितासे ज्येष्ठ आदि पुत्रोंका परिचय पूछना। 'मन्दाकिनी' कहलातो है (अनु० १९३२)। जरिताका उन्हें फटकारना । मन्दपालका स्त्रियोंके सौतिया
मन्दार-हिरण्यकशिपुका ज्येष्ठ पुत्र, जो शिवजीके वरसे एक दादरूपी दोषका वर्णन करके उनकी अविश्वसनीयता अबंद वर्षोंतक इन्द्रसे युद्ध करता रहा । उसके अङ्गीपर बताना । तत्पश्चात् अपने पास आये हुए पुत्रौको इनका भगवान् विष्णुका वह भयंकर चक्र तथा इन्द्रका वज्र भी आश्वासन देना और उनको तथा जरिताको साथ लेकर
पुराने तिनकेके समान जीर्ण-शीर्ण-सा हो गया था (अनु. देशान्तरको प्रस्थान करना ( आदि. २३२ । २ से
१४ । ७१-७५)। आदि. २३३ । ४ तक)।
मन्दोदरी-(१) रावणकी पत्नी (बन० २८१। १६)। मन्दराचल-एक पर्वत, जिसकी ऊँचाई ग्यारह हजार (२) स्कन्दकी अनुचरी एक मातृका (शल्य ४६ । योजन थी। वह पृथ्वीके भीतर भी उतनी ही गहराई तक धंसा हुआ था। इसका विशेष वर्णन ( आदि.
मन्मथकर-स्कन्दका एक सैनिक (शल्य.४५। ७२)। १८ | १-३) । भगवान् विष्णुकी प्रेरणासे शेषनागके
मन्युमान्-भानु (मनु) नामक अग्निके द्वितीय पुत्र द्वारा समुद्रमन्थनके लिये इसका उत्पाटन ( आदि.
__ (वन० २२१ । ११)। १८।६-८) । समुद्रमन्थनके लिये इसे मथानी बनाया गया था ( आदि. १८ । १३)। समुद्रमन्थनके मय-एक दानव, जिसने कुछ कालनक खाण्डववनमें निवास समय इसके द्वारा जल-जन्तुओं एवं पातालवासी प्राणियोंका किया था। अर्जुनने इसे वहाँ जलनेसे बचाया था; अतः संहार (भादि० १८।१६-२१)। यह कुबेरकी सभामें इसने उनके लिये एक दिव्य सभाभवनका निर्माण किया। उपस्थित हो उनकी उपासना करता है (सभा० १० । जिसे दुर्योधन ले लेना चाहता था (आदि.६।। ४४. ३१)। कैलासके पास मन्दराचलकी स्थिति है, जिसके ४९) । यह खाण्डवदाहके समय तक्षकके निवासस्थानसे ऊपर माणिवर यक्ष और यक्षराज कुबेर निवास करते हैं। निकलकर भागा । श्रीकृष्णने इसे भागते देखा । अग्निवहाँ अहासी हजार गन्धर्व और उनसे चौगुने किन्नर एवं देव मूर्तिमान् होकर गर्जने और इस राक्षसको माँगने यक्ष रहते हैं (वन० १३९ । ५-६)। स्वप्नावस्थामें श्री- लगे। श्रीकृष्णने इसे मारने के लिये चक्र उठाया । तब कृष्णके साथ कैलास जाते हुए अर्जुनने मार्गमें महामन्दराचल- यह अर्जुनकी शरणमें गया और उन्होंने इसे अभय दे पर पदार्पण किया था, जो अप्सराओंसे व्याप्त और किन्नरों- दिया। यह देख न तो श्रीकृष्णने इसे मारा और न से सुशोभित था (द्रोण.८० । ३३)। भगवान् शंकरने अग्निदेवने जलाया ही (आदि० २२७ । ३९-४५)। त्रिपुरदाहके समय मन्दराचलको अपना धनुष एवं रथका यह दानवोंका श्रेष्ठ शिल्पी तथा नमुचिका भाई था धुररा बनाया था (द्रोण. २०२ । ७६; कर्ण. ३४ । (भादि० २२७।४१-४५) । मयासुरका श्रीकृष्ण और २.)। उत्तरदिशाकी यात्रा करते समय अष्टावक्र मुनि अग्निसे अपनी रक्षा हो जानेपर अर्जुनको इस उपकारके इस पर्वतपर गये थे (अनु० १९ । ५४)।
बदलेमें अपनी ओरसे कुछ सेवा अर्पित करनेकी इच्छा
प्रकट करना। अर्जुनका बदलेमें कोई सेवा लेनेसे इनकार मन्दवाहिनी-एक नदी, जिसका जल भारतवासी पोते हैं
करनेपर मयासुरका अपनेको दानवोंका विश्वकर्मा बताना (भीष्म० ९ । ३३)।
और उनके लिये प्रसन्नतापूर्वक किसी वस्तुका निर्माण मन्दाकिनी-(१) गिरिवर चित्रकूट के पास बहनेवाली एक करनेकी इच्छा प्रकट करना (सभा०1। ३-६)।
सर्वपापनाशिनी नदी, जिसमें स्नानपूर्वक देवता-पितरोंकी अर्जुनका मयासुरसे श्रीकृष्णकी इच्छाके अनुसार कोई पूजा करनेसे अश्वमेध यज्ञका फल मिलता है (बन० कार्य करनेके लिये कहना और श्रीकृष्णका इसे धर्मराज .८५। ५८-५९)। इसकी गणना भारतकी उन प्रमुख युधिष्ठिरके लिये एक दिव्यसभाभवन का निर्माण करनेके नदियोंमें है, जिनका जल भारतीय प्रजा पीती है (भीष्म. लिये आदेश देना (सभा० १ -१३)। मयासुरका ५। ३६) । चित्रकूटमें मन्दाकिनीके जलमें स्नान करके प्रसन्नतापूर्वक उनकी आज्ञाको शिरोधार्य करना, युधिष्ठिरउपवास करनेसे मनुष्य राजलक्ष्मीसे सेवित होता है (अनु. द्वारा इसका सत्कार, इसका पाण्डवोको दैत्यों के
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