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मरुद्गण-देवताओंका एक गण (शल्य. ४५ । ६)। मलयध्वज (पाण्ड्य)-पाण्ड्य देशके एक राजा, जो मरुद्रणतीर्थ-एक तीर्थ, जहाँ पवित्रभावसे स्नान करनेवाला अश्वत्थामाके साथ युद्ध करके मारे गये थे (कर्ण. २०।
मनुष्य तीर्थरूप हो जाता है (अनु० २५ । ३८)। १९-४७)। मरुभमि (मरुधन्व)-मारवाड़ प्रदेश (वर्तमान राज- मल्लराष्ट-एक प्राचीन गणतन्त्र राज्य; यहाँके अधिपति पार्थिव स्थान प्रान्त), जिसे नकुलने पश्चिम-दिग्विजयके समय को भीमसेनने परास्त किया था (वर्तमान कुशीनारा या जीता था (सभा० ३२।५)। मरुभूमिके शीर्षस्थानमें कुशीनगर (कसया) ही मल्लराष्ट्रकी राजधानी था। काम्यकवन है, जहाँ तृणविन्दु सरोवर है (वन० २५८ । बौद्धग्रन्थोंमें इसका विशेष वर्णन मिलता है ।) (सभा. १३) कौरवोंकी सेनाका पड़ाव मरुभूमिमें भी पड़ा था ३० । ३ भीष्म ९ । ४४) । अर्जुनने अशतवासके (उद्योग० १९ । ३०) । मरुधन्व या मारवाड़में ही लिये जिन देशोंको उपयुक्त समझकर चुना था, उनमें उत्तङ्क मुनिरहते थे, जिनके साथ द्वारका जाते समय श्रीकृष्ण मल्लराष्ट्र की भो गणना है (विराट. १।१३)। की भेट हुई थी । श्रीकृष्णने इन्हें विश्वरूपका दशन कराया मशक-शाकद्वीपका एक जनपद, जिसमें सम्पूर्ण कामथा। उनकी प्यास बुझानेके लिये मरुदेशमै उत्तङ्कमेव नाओंको पूर्ण करनेवाले क्षत्रिय निवास करते हैं (भीष्म. प्रकट होनेका बर प्रदान किया था (आश्व० अध्याय ५३से
११ । ३७-३८)। ५५ तक)।
मसीर-एक भारतीय जनपद (भीष्म० ९ । ५३ )। मर्यादा-(१) एक विदर्भराजकुमारी, जो पूवंशी राजा
महत्तर-पाञ्चजन्य नामक अग्निके पाँच पुत्रों में से एक, जो अवाचीनकी पत्नी थी। इसके पुत्र का नाम 'अरिह' था।
काश्यपके अंशसे उत्पन्न हुए थे (वन० २२० । १)। यह देवातिथिकी पत्नी मर्यादासे भिन्न थी (आदि० ९५ । १८)। (२) विदेहराजकी पुत्री, जो पुरुवंशी महाराज महाकाणे-मगधराज अम्बुबीचका दुष्ट मन्त्री (भादि० २०३। देवातिथिकी पत्नी और अरिहकी माता थी ( आदि.
१९)। ९५। २३)।
महाकर्णी-स्कन्दको अनुचरी एक मातृका (शल्य ०४६।२६)। मलज-एक भारतं य जनपद (भीष्म० ९ । ४५)।
महाकाया-स्कन्दको अनुचरी एक मातृका(शल्य०४६।२४)।
महाकाल-(१) भगवान् शिवके पार्षद, जो कुबेरकी मलद-पूर्व भारतका एक जनपद, जिसे भीमसेनने जीता था
सभामें विराजमान होते हैं (सभा० १०।३४) । (२) (सभा० ३०।८)। इस जनपदके योद्धा कौरवपक्षमें थे और दुर्योधनको आगे करके युद्धक्षेत्रमें चल रहे थे
उज्जयिनी में शिप्राके तटपर स्थित एक प्राचीन तीर्थ, जहाँ
'महाकाल' नामक ज्योतिर्लिङ्ग स्थित है । वहाँ नियमसे (द्रोण० ७ । १५-१६)।
रहकर नियमित भोजन करना चाहिये । वहाँके कोटितीर्थ में मलय-दक्षिण भारतका एक पर्वत, जो कुबेरकी सभामें
स्नान-आचमन करनेसे अश्वमेधयज्ञका फल मिलता है रहकर उनकी उपासना करता है (सभा. १० । ३२)।
(वन० ८२ । ४९)। पाण्ड्य और चोल देशोंके राजा मलय तथा दुर्दुर पर्वतोंसे
महाकाश-शाकद्वीपका एक वर्ष ( भीष्म• 13। २५)। सुवर्णमय घटोंमें रखे हुए च.दनरस एवं चन्दन लेकर युधिष्ठिरको भेंट देने के लिये आये थे (सभा० ५२ । ३३.
महाक्रौञ्च-क्रौञ्चद्वोपका एक पर्वत (भीष्म० १२।७)। ३४)। सीताकी खोजके लिये दक्षिण जानेवाले वानरोंने महागङ्गा-एक तीर्थ, जिसमें स्नान करके एक पक्षतक निरामलयपर्वतको पार किया था (वन० २८२ । १४)। हार रहनेवाला मनुष्य निष्पाप होकर स्वर्गलोकमें जाता है भारतवर्षके सात कुलपर्वतोंमें मलयकी भी गणना है।
न (अनु. २५ । २२)। (भीष्म ९।७)। यहाँ मृत्यूने तपस्या की थी महागौरी-भारतकी एक मुख्य नदी, जिसका जल यहाँके (द्रोण० ५४ । २६) । त्रिपुरदाहके समय शङ्करजीने निवासी पीते हैं (भीष्म० ९ । ३३)। मलयको अपने रथका यूप बनाया (द्रोण. २०२। महाचूडा-स्कन्दकी अनुचरी एक मातृका (शल्य०४६/५)। ७३)। शुकदेव जीकी ऊर्ध्वगति के समय उनके आकाश- महाजय-नागराज वासुकिद्वारा स्कन्दको दिये गये दो पार्षमार्गमें एक मलय नामक पर्वत आया था, जहाँ उर्वशी दीमसे एक । दूसरेका नाम 'जय'था (शल्य०४५।५२)।
और विप्रचित्ति-ये दो अप्सराएँ नित्य निवास करती हैं। महाजवा-स्कन्दकी अनुचरी एकमातृका (पल्य.२२)। कैलाससे ऊपर उड़नेपर उन्हें यह पर्वत मिला था, अतः महाजान-एक श्रेष्ठ द्विज, जो प्रमदराके सर्पदंशनके समय इसे दक्षिणके मलयपर्वतसे भिन्न समझना चाहिये (शान्ति. दयासे द्रवित हो उसे देखने के लिये आये थे (मादि.८॥ १९३१)।
२४)। .
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