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भूरितेजा
( २३८ )
भृगु
भूरितेजा-एक प्राचीन नरेश, जो क्रोधवशसंज्ञक दैत्यके भुजाका काटा जाना (द्रोण० १४२ । ७२)। इनके
अंशसे उत्पन्न हुए थे ( आदि० ६७ । ६३-६६)। द्वारा अर्जुनको उपालम्भ दिया जाना (द्रोण. १४३ । इन्हें पाण्डवोंकी ओरसे रणनिमन्त्रण भेजनेका निश्चय किया ४-१५)। इनका आमरण अनशनके लिये बैठना गया था ( उद्योग० ४ । १७)।
(द्रोण. १४३ । ३३-३५) । सात्यकिद्वारा इनका वध भूरिद्युम्न-(१) एक प्राचीन नरेश, जो यमराजकी सभामें (द्रोण० १४३ । ५४ )। मृत्युके पश्चात् इनका विश्वेरहकर सूर्यपुत्र यमकी उपासना करते हैं (सभा० । देवोमें प्रविष्ट होना (स्वर्गा० ५।१६)। १९, २१) । इन्होंने गोदान करके स्वर्गलोक प्राप्त महाभारतमें आये हुए भूरिश्रवाके नाम-भूरिदक्षिण, किया ( अनु० ७६ । २५)।(२) एक महर्षि, जिन्होंने शलाग्रज, कौरव, कौरवदायाद, कौरवेय, कौरव्य, कौरव्यशान्तिदूत बनकर हस्तिनापुर जाते समय मार्गमें श्री- मुख्य, कुरुशार्दूल, कुरुश्रेष्ठ, कुरूद्वहः कुरुपुङ्गव, यूपकृष्णकी दक्षिणावर्त परिक्रमा की थी ( उद्योग. ८३। केतन, यूपकेतु आदि। २७) । (३) यह राजा वीरद्युम्नका एकलौता पुत्र भरिहा-एक राक्षस, जो प्राचीन कालमें पृथ्वीका शासक
था, जो वनमें खो गया था (शान्ति. १२७ । १४)। था; परंतु कालके वशीभूत हो इसे छोड़कर चल बसा भूरिबल (भीमबल )-धृतराष्ट्रके सौ पुत्रोंमेंसे एक (शान्ति० २२७ । ५१-५६)। (आदि० ६७। । ९४; आदि. ११६ । ७)। भीमसेन- भूलिङ्ग-हिमालयके दूसरे भागमें रहनेवाली एक चिड़िया,
द्वारा इसका वध (शल्य. २६ । १४-१५)। जो सदा यही बोला करती थी-मा साहसम्' अर्थात् भूरिश्रवा-ये कुरुवंशीय सोमदत्तके पुत्र थे। इनके दो साहस न करो'; परंतु स्वयं साहसका काम करती हुई भाइयोंका नाम भूरि और शल था । ये पिता और
सिंहके दाँतोंमें लगे हुए मांसके टुकड़ेको अपनी चोंचसे भाइयोंके साथ द्रौपदी स्वयंवरमें गये थे ( आदि.
चुगती रहती है (सभा० ४४ । २८-३०)। १८५ । १४-१५)। इनके द्वारा पाण्डवोंके पराक्रमका भूषिक-एक भारतीय जनपद ( भीष्म० ९ । ५८)। वर्णन और उनसे युद्ध न करके उनके साथ संधि करनेके लिये भग-एक महर्षि, जो ब्रह्माजीके द्वारा वरुणके यशमें अग्निसे इनकी द्रुपदनगरमें दुर्योधनको सलाह (आदि० १९९। उत्पन्न हुए थे ( आदि० ५।८)। इनकी प्यारी पत्नी७ के बाद दाक्षिणात्य पाठ)। अपने पिता और भाइयोंके का नाम पुलोमा था (आदि० ५। १३)। पुलोमा साथ ये युधिष्ठिरके राजसूययज्ञमें आये थे ( सभा० राक्षसके हरण करते समय इनकी पत्नी पुलोमाका गर्भ ३४ । ८)। इनका एक अक्षौहिणी सेनासहित दुर्योधन- चू पड़ा, जिससे च्यवन नामक पुत्रकी उत्पत्ति हुई की सहायतामें आना (उद्योग० १९ । १६ )। रथियोंके (आदि. ६ । १-२४; आदि० ६६ । ४४-४५)। यूथपतियोंके यूथपतिरूपमें इनकी भीष्मद्वारा गणना पत्नी पुलोमाद्वारा अपने हरणका रहस्य बतलानेपर (उद्योग० १६५ । २९) । प्रथम दिनके युद्धमें इनका इनका अग्निदेवको सर्वभक्षी होनेका शाप देना (आदि. शङ्खके साथ द्वन्द्वयुद्ध (भीष्म० ४५। ३५-३७)। ६।१४) । इनके दूसरे पुत्रका नाम 'कवि' था इनकी सात्यकिपर चढ़ाई और उनके साथ युद्ध (आदि०६६ । ४२)। च्यवनके अतिरिक्त इनके छः ( भीष्म० ६३ । ३३ से ६४ । ४ तक )। पुत्र और हुए, जो व्यापक तथा इन्हींके समान गुणवान्
थे जिनके नाम इस प्रकार हैं-वज्रशीर्ष, शुचि, और्व, अध्याय)। इनके द्वारा सात्यकिके दस पुत्रोंका वध शुक्र, वरेण्य तथा सवन। सभी भृगुवंशी सामान्य रूपसे वारुण (भीष्म० ७४ । २५)। धृष्टकेतुके साथ इनका युद्ध कहलाते हैं (अनु० ८५। १२८-१२९)। ये युधिष्ठिरकी तथा इनके द्वारा धृष्टकेतुकी पराजय (भीष्म० ८४ । सभामें विराजते थे (सभा० ४ । १६)। इन्द्रकी सभामें ३५-३९ )। भीमसेनके साथ इनका इन्दू-युद्ध रहकर उसकी शोभा बढ़ाते हैं (सभा० ७ । २९)। ( भीष्म ११०।१०-११; भीष्म १११। ४४- ब्रह्माकी सभामें उपस्थित रहकर ब्रह्माजीकी सेवा करते हैं ४९) । शिखण्डीके साथ इनका-युद्ध (द्रोण. १४ । (समा० ११ । १९) । इनका अपनी पुत्रवधूको संतानके ४३-४५)। मणिमान्के साथ युद्ध करके उसका वध लिये वरदान देना ( वन० ११५ । ३५-३७)। शान्तिकरना (द्रोण. २५। ५३-५५) । इनके ध्वजका
दूत बनकर हस्तिनापुर जाते हुए श्रीकृष्ण की इनके द्वारा वर्णन (द्रोण. १०५। २२-२४)। सात्यकिके साथ दक्षिणावर्त परिक्रमा ( उद्योग० ८३ । २७) । इनका युद्ध करके उनकी चुटिया पकड़कर घसीटना (द्रोण. द्रोणाचार्यके पास आकर युद्ध बंद करनेको कहना १४२ । ५९-६२ ) । अर्जुनद्वारा इनकी दाहिनी (द्रोण. १९० । ३४-४०)। इनका भरद्वाजके प्रति
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