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भृगुतीर्थ
( २३९ )
भोजा
जगत्की उत्पत्ति और विभिन्न तत्त्वोंका वर्णन करना (वन० ८५ । ९१-९२)। इस महान् पर्वतकी भृगुतुङ्ग(शान्ति. १८२ अध्याय)। आकाशसे अन्य चार आश्रमके नामसे भी प्रसिद्धि है। यहाँ भृगुजीने त स्थूल भूतोंकी उत्पत्तिका वर्णन (शान्ति. १८३ अध्याय)। की थी (वन० ९० । २३)। भृगुतुङ्गमें एक 'महाद' पञ्चमहाभूतोंके गुणों का विस्तारपूर्वक वर्णन (शान्ति० १८४ नामक तीर्थ या सरोवर है । जो लोभका त्याग करके यहाँ अध्याय)। शरीरके भीतर जठरानल तथा प्राण-अपान आदि स्नान करता और तीन राततक निराहार रहता है, वह वायुओंकी स्थिति आदिका वर्णन (शान्ति० १८५ अध्याय)। ब्रह्महत्याके पापसे मुक्त हो जाता है (अनु० २५ । १४जीवकी सत्ता तथा नित्यताको नाना प्रकारकी युक्तियोंसे १९)। सिद्ध करना (शान्ति० १८७ अध्याय ) । वर्णविभाग- भेडी-स्कन्द की अनुचरी एक मातृका (शल्य० ४६।१३)। पर्वक मनुष्यकी तथा समस्त प्राणियोंकी उत्पत्तिका वर्णन भेरीस्वना-स्कन्दकी अनुचरी एक मातृका(शल्य०४६।२६)। (शान्ति. १८८ अध्याय)। चारों वर्गों के अलग-अलग कर्माका और सदाचारका वर्णन तथा वैराग्यसे परब्रह्मकी भैरव-धृतराष्ट्रवंशी एक नाग, जो सर्पसत्रमें दग्ध हो गया प्राप्तिका निरूपण (शान्ति. १८९ अध्याय)। सत्यकी (आदि० ५७ । १७)। महिमा, असत्यके दोष तथा लोक और परलोकके सुख- भोगवती-(१) नागलोक ( आदि०२०६। ५१समा० दुःखका विवेचन (शान्ति० १९० अध्याय ) । ब्रह्मचर्य ३८ । २९ के बाद दाक्षिणात्य पाठ)। ( २) पातालऔर गार्हस्थ्य आश्रमके धर्मोंका वर्णन (शान्ति० १९१ लोकमें स्थित गङ्गा (सभा० ३८ । २९ के बाद दाक्षिअध्याय)। वानप्रस्थ और संन्यास धोका वर्णन तथा णात्य पाठ, पृष्ठ ८१४) । प्रयागमें वासुकि नागका तीर्थहिमालयके उत्तरपार्श्वमें स्थित उत्कृष्ट लोककी विलक्षणता विशेष, जो गङ्गामें ही है, इसमें स्नान करनेसे अश्वमेध यज्ञएवं महत्ताका प्रतिपादन (शान्ति० १९२ अध्याय)। काफल मिलता है (वन० ८५।८६;उद्योग० १८६ ॥२७)। इनका हिमवान्को रत्नोंका भण्डार न होनेका शाप देना (३) सरस्वती नदीका नामान्तर (वन २४ । २०)। (शान्ति० ३४२ । ६२)। इनके द्वारा राजा वीतहव्यको (४) स्कन्दकी अनुचरी एक मातृका (शल्य० ४६८)। शरण देकर ब्राह्मणत्व प्रदान करना (अनु०३० । ५७- भोगवान-एक पर्वत, जिसे भीमसेनने पूर्व-दिग्विजयके समय ५८)।ये अग्निकी ज्वालासे उत्पन्न हुए थे; अतः जीता था (सभा० ३०। १२)। इनका नाम 'भृगु' पड़ा (अनु० ८५। १०५.१०६)। अगस्त्यजीके कमलोकी चोरी होनेपर इनका शपथ करना
भोज-( १ ) एक वंश, जो यदुकुलके अन्तर्गत है
(आदि० २१७ । ८)। (२) मार्तिकावत देशके (अनु. ९३।१६)। अगस्त्यजीसे नहुषको गिरानेका
एक राजा, जो द्रौपदीके स्वयंवरमें पधारे थे ( आदि. उपाय पूछना (अनु० ९९ । १५)। इनका अगस्त्यजीको नहुषके पतनका उपाय बताना (अनु० ९९ । २२
१८५ । ६)। ये युधिष्ठिरकी सभाके सभासद् थे
(सभा० ४ । २६)। कौरव-पक्षसे युद्ध करते हुए २८) । इनके द्वारा नहुषको शाप ( अनु० १०० । २४२५)। नहुषके प्रार्थना करनेपर उनके शापका उद्धार
अभिमन्युद्वारा मारे गये (द्रोण. ४८1८)। इन्होंने बताना ( अनु. १००।३०)।
कलिङ्गराज चित्राङ्गदकी कन्याके स्वयंवरमें भी पदार्पण भृगुतीर्थ-महर्षियोद्वारा सेवित एक तीर्थ । यहाँ स्नान करके
किया था (शान्ति० ४ । ७) । (३) एक यदुवंशी
नरेश, जिन्हें महाराज उशीनरसे खड्ग की प्राप्ति हुई थी परशुरामजीने श्रीरामजीद्वारा अपहृत अपने तेजको पुनः
(शान्ति. १६६ । ७९)।(इन्हीसे यादवोंमें भोजप्राप्त कर लिया था। राजा युधिष्ठिरने भी अपने भाइयोंसहित यहाँ स्नान-तर्पण किया, जिससे उनका रूप अत्यन्त
वंशकी परम्परा प्रचलित हुई थी।) तेजस्वी हो गया और वे शत्रुओंके लिये परम दुर्धर्ष हो भोजकट-विदर्भदेशकी राजधानी, जिसे सहदेवने जीता था गये (वन० ९९ । ३४-३८)।
(सभा० ३३।११-१२) । रुक्मिणी-हरणके समय भृगतक-एक प्राचीन पर्वत, जहाँ राजा ययातिने अपनी श्रीकृष्णके साथ युद्ध करके जहाँ रुक्मी पराजित हुआ था।
पनियोंके साथ तपस्या की थी (आदि.०५। ५७)। वहीं उसने इस नये नगरको बसाया था ( उद्योग तीर्थयात्राके अवसरपर अर्जुनका यहाँ आगमन हुआ
१५८ । १४-१५)। (इसके पहले इस राज्यकी राजथा (आदि० २११।२)। यहाँ शाकाहारी होकर एक धानी कुण्डिनपुरमें थी।) मास निवास करनेसे अश्वमेध यज्ञका फल मिलता है भोजा-सौवीरराजकी सर्वाङ्गसुन्दरी कमनीया कन्या, जिसे (वन० ८३ । ५.)। यहाँ उपवास करनेसे मनुष्य अपने सात्यकिने अपनी रानी बनानेके लिये हर लिया था आगे-पीछेकी सात-सात पीढ़ियोंका उद्धार कर देता है (द्रोण. १०।३३)।
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