Book Title: Mahabharat Ki Namanukramanika Parichay Sahit
Author(s): Vasudevsharan Agarwal
Publisher: Vasudevsharan Agarwal

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Page 239
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir भीष्म ( २३५ ) लेनेके लिये समझाना ( उद्योग० १२५ । २-८ )। दुर्योधनको पुनः समझाना (उद्योग० १२६ अध्याय)। सभासे उठकर जाते समय दुर्योधनकी उद्दण्डताका वर्णन करना ( उद्योग. १२८ । ३०-३२)। दुर्योधनको युद्ध न करने के लिये समझाना ( उद्योग. १३८ अध्याय )। भीष्मकी पाण्डवों को न मारने और उनके दस हजार योद्धाओंको प्रतिदिन मारनेकी प्रतिज्ञा करके कर्णको साथ लेकर युद्ध न करनेकी शर्त करना ( उद्योग १५६ । २१-२४)। दुर्योधनके पूछनेपर कौरवपक्षके रथियों और अतिरथियोंका परिचय देना ( उद्योग. अध्याय १६५ से १६८ तक)। इनका कर्णको फटकारना ( उद्योग० १६८।३०-३८) । दुर्योधनको पाण्डवपक्षके अतिरथी आदिका परिचय देना (उद्योग. अध्याय १६९ से १७२ तक)। दुर्योधनसे शिखण्डी और पाण्डवोंका वध न करनेको कहना ( उद्योग १७२ । २०-२१)। दुर्योधनको अम्बोपाख्यान सुनाना (उद्योग० १७३ अध्याय)। इनके द्वारा काशिराजकी तीनों कन्याओंका अपहरण ( उद्योग० १७३ । १३)। इनके द्वारा परशुरामजीका पूजन (उद्योग० १७८ । २७)। अम्बाको ग्रहण करनेके विषयमें परशुरामजीकी आज्ञा न मानना (उद्योग. १७८ । ३२-३४) । मारनेकी धमकी देनेपर परशुरामजीको रोषपूर्ण उत्तर देना (उद्योग० १७४ । ४३-६४)। परशुरामजीके साथ युद्ध करनेके लिये कुरुक्षेत्रमें जाना (उद्योग. १७८ । ८०) । युद्धके अवसरपर परशुरामजीसे युद्धकी आज्ञा माँगना ( उद्योग. १७९ । १४ ) । परशुरामजीके साथ इनका युद्ध ( उद्योग० १७९ । २७ से १८५ अध्यायतक) वसुओंद्वारा इन्हें प्रस्वापनास्त्रकी प्राप्ति (उद्योग०1८३ । १११३)। देवताओं और नारदजीके मना करनेपर प्रस्वापनास्त्रका प्रयोग न करना ( उद्योग० १८५ । ७) । देवता, पितर तथा गङ्गाके आग्रहसे युद्ध बंद करके परशुरामजीके चरणोंमें प्रणाम करना (उद्योग १८५ । ३५)। दुर्योधनको शिखण्डीके जन्मका वृत्तान्त सुनाना ( उद्योग० अध्याय १८८ से १९२ तक)। दुर्योधनसे एक मासमें पाण्डव-सेनाका नाश करनेकी अपनी शक्तिका कथन ( उद्योग० १९३ । १४) । युधिष्ठिरको युद्धकी आज्ञा देकर उनकी मङ्गलकामना करना (भीष्म० ४३।४४-४८)। प्रथम दिनके युद्ध में अर्जुनके साथ इनका द्वन्द्व-युद्ध ( भीष्म १५ । ८-११)। युद्धमें इनके द्वारा विराट-पुत्र श्वेतका वध ( भीष्म १८ । ३-११५)। प्रथम दिनके युद्धमें इनका प्रचण्ड पराक्रम (भीष्म० १९४१-५१)। अर्जनके साथ इनका घोर युद्ध (भीष्म ५२ अध्याय)। सात्यकिद्वारा सारथिके मारे जानेपर घोड़ोंद्वारा रणक्षेत्रसे बाहर ले जाया जाना (भीष्म० ५४ । ११४-११५)। अर्जुनकी मारसे भागती हुई सेनाको देखकर दूसरे दिनका युद्ध बंद करनेका आदेश देना ( भीष्म ५५ । ४२)। दुर्योधनके उलाहना देनेपर सेनासहित पाण्डवोंको रोक देने की प्रतिज्ञा करना ( भीष्म ५८ । ४२४४)। भीष्मका अद्भुत पराक्रम (भीष्म० ५९ । ५१-७४)। मारनेके लिये उद्यत हुए श्रीकृष्णका इनके द्वारा आह्वान (भीष्म० ५९ । ९६-९८)। अर्जुनके साथ इनका द्वैरथ-युद्ध (भीष्म०६० । २५२९ )। भगदत्तको संकटमै पड़ा हुआ देखकर द्रोणाचार्य और दुर्योधनको उसकी रक्षाके लिये आदेश देना (भीष्म०६४ । ६४-६९)। पाण्डवोके पराक्रमके विषयमें पूछनेपर उत्तरके प्रसंगमें दुर्योधनको नारायणावतार श्रीकृष्ण और नरावतार अर्जुनकी महिमा बताना (भीष्म० ६५। ३५ से ६८ अध्यायतक)। इनके द्वारा ब्रह्मभूतस्तोत्रका कथन ( भीष्म० ६८ । २ .)। शिखण्डीका सामना पड़नेपर युद्ध बंद कर देना (भीष्म० ६९ । २९)। भीमसेनके साथ इनका घमासान युद्ध (भीष्म० ७० अध्याय)। अर्जुन आदि योद्धाओंके साथ इनका घमासान युद्ध (भीष्म ७१ अध्याय)। भीमसेनको घायल करके सात्यकिको पराजित करना (भीष्म ७२ । २१-२८)। विराटको घायल करना (भीष्म ७३ । २)। भीमसेनके पराक्रमसे भयभीत दुर्योधनको आश्वासन देना (भीष्म ८० । ८-१२ ) । युधिष्ठिरको रथहीन कर देना (भीष्म० ८६ । ११)। भीमसेनद्वारा सारथिके मारे जानेपर घोड़ोंका इनका रथ लेकर भागना (भीष्म ८८।१२)। भगदत्तको घटोत्कचसे युद्ध करनेके लिये आज्ञा देना (भीष्म० ९५ । १७-२०)। दुर्योधनसे अर्जुनके पराक्रमका वर्णन करके शिखण्डीको छोड़कर शेष सोमकों और पाञ्चालोंके वधकी प्रतिज्ञा करना (भीष्म० ९८ । ४-२३)। इनका सात्यकिके साथ युद्ध (भीष्म० १०४।२९-३६) । इनके द्वारा चेदि, काशि और करूष देशके चौदह हजार महारथियोंका एक साथ वध (भीष्म. १०६ । १८-२०)। मारनेके लिये आते हुए श्रीकृष्णका इनके द्वारा स्वागत (भीष्म. १०६ । ६४-६७)। युधिष्ठिरको अपने वधका उपाय बताना ( भीष्म. १०७ । ७६८८)। शिखण्डीसे उसके साथ युद्ध न करने के लिये कहना ( भीष्म. १०८ । ४३ ) । दुर्योधनको उत्तर देना तथा पाण्डवसेनाका संहार करना (भीम० १०१ । २४-३९) । युधिष्ठिरको अपने ऊपर For Private And Personal Use Only

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