Book Title: Mahabharat Ki Namanukramanika Parichay Sahit
Author(s): Vasudevsharan Agarwal
Publisher: Vasudevsharan Agarwal

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Page 229
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra भद्रकार www.kobatirth.org ( २२५ ) भद्रकार - एक राजा, जो जरासंधके भयसे अपने भाइयों और सेवकों सहित दक्षिण दिशामें भाग गया था ( सभा० १४ । २६ ) । भद्रकाली -- (१) दुर्गाजीका एक नाम । अर्जुनने इस नामसे दुर्गाजीका स्तवन किया था ( भीष्म० २३ । ५ ) । दक्षयज्ञविध्वंसके समय ये पार्वतीजी के कोप से प्रकट हुई थी ( शान्ति० २८४ । ५३-५४ ) । (२) स्कन्दकी अनुचरी एक मातृका ( शल्य० ४६ । ११ ) । भद्रतुङ्ग - एक तीर्थ, जहाँ स्नान करके सुशील पुरुष ब्रह्मलोकमें जाता और वहाँ उत्तम गति पाता है ( वन० ८२ । ८० ) । भद्रमना- यह क्रोधवशाकी नौ कन्याओंमेंसे एक है । इसने देवताओंके हाथी महान् गजराज ऐरावतको जन्म दिया ( आदि० ६६ । ६०-६३ ) । भद्रवट-यह उमावल्लभ महादेवजीका निवासस्थान है । यहाँ भगवान् शिवका दर्शन करनेवाला यात्री एक हजार गोदानका फल पाता है और महादेवजीकी कृपासे गणोंका आधिपत्य प्राप्त करता है ( वन० ८२ । ५०-५१ ) । भद्रशाख - बकरे के समान मुख धारण करनेवाले स्कन्ददेवका एक नाम ( वन० २२८ । ४ ) । भद्रशाल - मेदके पूर्व भाग में स्थित भद्राश्ववर्ष के शिखरपर अवस्थित एक वन, जिसमें कालाग्र नामक महान् वृक्ष है ( भीष्म० ७ । १४ ) । भद्रा- (१) ये कक्षीवान्की पुत्री और पूरुवंशी राजा व्युषिताश्वकी पत्नी थीं। इनके रूपकी समानता करनेवाली उस समय दूसरी कोई स्त्री न थी ( आदि० १२० | १७ ) । पति के परलोकवासी हो जानेपर इनका विलाप करना ( आदि० १२० । २१ - ३१ ) । इनको आकाशवाणीद्वारा पतिका आश्वासन और पतिके शवद्वारा इनके गर्भ से सात पुत्रों की उत्पत्ति ( आदि० १२० । ३३ – ३६ ) । (२) ये कुबेरकी अनुरक्ता पत्नी थीं । कुन्तीने द्रौपदीसे दृष्टान्तरूप में इनका वर्णन किया था ( आदि० १९८ । ६ ) । ( ३ ) भगवान् श्रीकृष्णकी बहिन सुभद्राका एक नाम ( आदि० २१८ | १४ ) । विशेष देखिये सुभद्रा ) ४ ) विशालानरेशकी कन्या, जो करूपराजकी प्राप्तिके लिये तपस्या करनेवाली थी; परंतु शिशुपालने करूराजका वे धारण करके मायासे इसका अपहरण कर लिया था ( सभा० ४५ । ११) । (५) सोमकी पुत्री, जो अपने समयकी सर्वश्रेष्ठ सुन्दरी मानी जाती थी । इन्होंने उतथ्यको पति रूप में प्राप्त करने के लिये तीव्र तपस्या की । तब सोमके पिता महर्षि अत्रिने उतथ्यको बुलाकर इन्हें उनके हाथमें दे दिया और उतथ्यने विधिपूर्वक इनका पाणिग्रहण किया ( अनु० १५४ । १०-१२ ) । वरुणद्वारा इनका अपहरण ( अनु० १५४ । १३ ) । जब कुपित होकर उतथ्यने सारा जल पी लिया, तब वरुण उनकी शरणमें आये और उनकी भार्या भद्राको उन्हें लौटा दिया ( अनु० म० ना० २९- Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir भरत १५४ । २८ ) । ( ६ ) वसुदेवजीकी चार पत्नियोंमेंसे एक ( मौसल ० ७ । १८ ) । ये वसुदेवजी के साथ ही चितारोहण कीं ( मौसल० ७ । २४ )। भद्राश्व - मेरुपर्वत के समीपका एक द्वीप ( भीष्म० ६ । १३ ) | धृतराष्ट्र के प्रति संजयद्वारा इसका विशेष वर्णन ( भीष्म० ७ । १३ – १८ ) । इस भद्राश्ववर्ष पर युधिष्ठिरने शासन किया था ( शान्ति० १४ । २४ ) । भय-अधर्मद्वारा निर्ऋतिके गर्भ से उत्पन्न तीन भयंकर राक्षसोंमेंसे एक । अन्य दोका नाम महाभय और मृत्यु था । ये राक्षस सदा पापकर्म में लगे रहनेवाले हैं ( आदि० ६६ । ५४-५५ )। For Private And Personal Use Only भयङ्कर - ( १ ) सौवीरदेशका एक राजकुमार, जो जयद्रथ के रथके पीछे हाथ में ध्वजा लेकर चलता था। यह द्रौपदीहरण के समय जयद्रथके साथ गया था ( वन० २६५ । (१०-११ ) । अर्जुनद्वारा इसका वध ( वन० २७१ । २७) । (२) एक सनातन विश्वेदेव (अनु० ९१ । ३१) । भयङ्करी- स्कन्दकी अनुचरी एक मातृका (शल्य० ४६ । ४ ) । भरणी - ( सत्ताईस नक्षत्रोंमेंसे एक ) जो भरणी नक्षत्र में ब्राह्मणोंको तिलमयी धेनुका दान करता है, वह इस लोक में बहुत-सी गौओं को तथा परलोक में महान् यशको प्राप्त करता है ( अनु० ६४ । ३५ ) । इस नक्षत्र में श्राद्ध करनेसे उत्तम आयुकी प्राप्ति होती है ( अनु० ८९ । १४ ) । चन्द्र-व्रतमें भरणी नक्षत्रको चन्द्रमाका सिर मानकर पूजा आदि करनेका विधान है ( अनु० ११० । ९ ) । भरत - ( १ ) दुष्यन्तके द्वारा शकुन्तला के गर्भ से उत्पन्न एक राजा । इन्हीं भरतवंशकी प्रवृत्ति हुई तथा इन्हींसे शासित होने के कारण इस देशका नाम भारत हुआ (आदि० २ । ९५-९६ आदि० ७४ । १३१ ) । इनकी उत्पत्तिका वृत्तान्त ( आदि० ७३ । १५ से आदि०७४ । २ तक ) । बचपन में बड़े-बड़े दानवों, राक्षसों, सिंहों आदि का दमन करनेके कारण ऋषियोंने इनका नाम 'सर्वदमन' रखा था ( आदि ० ७४ । ८ ) । ( २ ) ये शंयु नामक अग्निके द्वितीय पुत्र हैं । समस्त पौर्णमासयागोंमें सुवासे हविष्य के साथ घी उठाकर इन्हींको प्रथम आधार अर्पित किया जाता है । इनका नामान्तर ऊर्ज है ( वन० २१९ । ६ ) (३) ये भरत नामक अग्निके पुत्र हैं ( वन० २१९ । ७ ) । ये संतुष्ट होनेपर पुष्टि प्रदान करते हैं; इसलिये इनका एक नाम पुष्टिमति है ( वन० २२१ । १ )। ( ४ ) ये अद्भुत नामक अग्निके पुत्र हैं, जो मरे हुए प्राणियों के शवका दाइ करते हैं । इनका अग्निष्टोममें नित्य निवास है; अतः इन्हें 'नियत' भी कहते हैं (वन० २२२ । ६) । ( ५ ) महाराज दशरथ के पुत्र, जो कैकेयीके गर्भसे उत्पन्न हुए थे, श्रीराम, लक्ष्मण और शत्रुघ्न इनके भाई थे ( वन० २७४ । ७-८ ) । श्रीरामके वनमें चले जानेपर

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