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( २०३ )
९४ अध्याय ) । इनके वंशका विस्तारपूर्वक वर्णन पूर्वाभिरामा-एक प्रमुख नदी, जिसका जल भारतवासी (आदि० ९५ अध्याय )। ये यम-सभामें रहकर सूर्यपुत्र पीते हैं ( भीष्म० ९ । २२)। यमकी उपासना करते हैं (सभा० ८ । ८)। इन्द्रके पूषणा-स्कन्दकी अनुचरी मातृका (शल्य०४६ । २०)। विमानपर बैठकर अर्जुनका कौरवोंके साथ होनेवाला युद्ध पषा-(१) बारह आदित्योंमेंसे एक (आदि०६५ । देखनेके लिये आये थे ( विराट०५६ । १०)।
१५) । ये अर्जुनके जन्मोत्सवमें पधारे थे (आदि. मान्धाताद्वारा इनकी पराजय (द्रोण० ६२ । १० । १२२ । ६७)। खाण्डववनके युद्ध में इनका आगमन ययातिद्वारा इन्हें खड्गकी प्राप्ति (शान्ति. १६६ ।
और श्रीकृष्ण तथा अर्जुनपर धावा (आदि० २२६ । ७४)। अगस्त्यजीके कमलोंकी चोरी होनेपर शपथ
३५)। भगवान् शङ्करने इनके दाँत तोड़े थे (द्रोण. खाना (अनु० ९४ । २२)। ये मांसभक्षणका निषेध
२०२। ४९; सौप्तिक. १८ । १६ ) । इनके द्वारा करके परावर-तत्त्वका ज्ञान प्राप्त कर चुके थे (भनु०
स्कन्दको पाणीतक और कालिक नामक दो पार्षदोंका १.५। ५९)। (२) अर्जुनका सारथि, जिसे राजसूय
दान (शल्य. ४५ । ४३-४४)। ये घृतदानसे संतुष्ट यज्ञके लिये अन्नसंग्रहके कामपर जुट जानेका आदेश मिला
होते हैं ( अनु० ६५ । ७) । (२) सूर्यदेवका था (सभा० ३३ । ३०)
एक नाम (वन ३ । ६६)। पूर्ण-(१) वासुकि-कुलोत्पन्न एक नाग, जो जनमेजयके
पृतना-सेनाका परिमाणविशेष-तीन वाहिनी ( आदि० सर्पसत्रमें जल मरा था ( आदि० ५७ । ५)।
२।२१)। (२) कश्यपकी प्राधा नामवाली पत्नीसे उत्पन्न एक देवगन्धर्व (आदि०६५ । ४६)।
पृथा-शूरसेनकी पुत्री, जो संसारकी अनुपम सुन्दरी थी;
वसुदेवजीकी बड़ी बहिन थी (आदि० ६७ । १२९)। पूर्णभद्र-एक कश्यपवंशी प्रमुख नाग ( आदि० ३५ । १२)।
पृथाश्व-यमराजकी सभामें रहकर सूर्यपुत्र यमकी उपासना
करनेवाला एक प्राचीन नरेश ( सभा० ८ । १९)। पूर्णमुख-धृतराष्ट्र के वंशमें उत्पन्न एक नाग, जो जनमेजयके । सर्पसत्र में जल गया (आदि. ५७ । १६)।
पृथु-(१) आठ वसुओंमेंसे एक ( आदि० ९९ ।
११)। (२) एक वृष्णिवंशी क्षत्रिय, जो द्रौपदीके पूर्णा-पञ्चमी, दशमी तथा पञ्चदशी तिथियोंकी संज्ञा ।
स्वयंवरमें आया था (आदि. १८५ । १८)। यह पूर्णा नामक पञ्चमी तिथिमें युधिष्ठिरका जन्म ( आदि० १२२ । ६)।
रैवतक पर्वतके उत्सवमें सम्मिलित हुआ था (आदि.
२१८ । १० ) । ( ३ ) महाराज बेनके पुत्र, पूर्णाङ्गद-धृतराष्ट्रवंशमें उत्पन्न एक नाग, जोजनमेजयके सर्प
प्रथम नरेश । इनके द्वारा अत्रिमुनिको धनदान (वन० सत्रमें स्वाहा हो गया था (आदि० ५७ । १६)।
१८५।८-३५)। संजयको समझाते हुए नारदजीपूर्णायु-एक देवगन्धर्व, जो कश्यपकी पत्नी प्राधाका पुत्र
द्वारा इनके चरित्रका वर्णन (द्रोण. ६९ अध्याय)। था (आदि० ६५ । ४६)।
श्रीकृष्णद्वारा इनके चरित्रका वर्णन (शान्ति० २९ । पूर्वचित्ति-एक श्रेष्ठ अप्सरा, जो सर्वश्रेष्ठ छः अप्सराओंमेसे १३७-१४४)। इनकी उत्पत्ति और चरित्रका विस्तृत वर्णन एक है (आदि०७४ । ६०)। यह उन दस विख्यात
(शान्ति० ५९/९८-१२८)। ये प्राचीन कालमें पृथ्वीके अप्सराओंमेंसे एक है, जिन्होंने अर्जुनके जन्मोत्सवमें पधार
शासक थे; किंतु कालसे पीड़ित हो पृथ्वीको छोड़कर कर नृत्य और गान किया था ( आदि० १२२ । ६५)। परलोकवासी हो गये (शान्ति० २२७ । ४९-५६)। स्वर्गमें अर्जुनके स्वागत-समारोहमें इसने नृत्य किया था इन्होंने जीवनमें कभी मांस नहीं खाया था (अनु. (वन० ४३ । २९)। मलयपर्वतपर शुकदेवजीकी उत्तम
११५। ६५)। (४) इक्ष्वाकुवंशी महाराज अनेनागति देखकर यह आश्चर्यचकित हो उठी थी और इस के पुत्र, इनके पुत्रका नाम विष्वगश्व था (वन० विषयमें अपना हार्दिक उद्गार प्रकट किया था (शान्ति. २०२ । २-३)। ३३२ । २०-२४)।
पृथुलाक्ष-एक राजा, जो यमसभामें रहकर सूर्यपुत्र यमपूर्वदिशा-चार दिशाओंमेंसे एक, इसका विशेष वर्णन की उपासना करता है ( समा० ८ । १०)। (उद्योग० १०८ अध्याय )।
पृथुलाश्व-एक राजा, जो यमसभामें रहकर सूर्यपत्र पूर्वपाली-एक प्राचीन राजा, जिसे पाण्डवोकी ओरसे रण- यमकी उपासना करता है (सभा०८ । २२)। निमन्त्रण भेजनेका निश्चय किया गया था (उद्योग. पथवस्त्रा-स्कन्दकी अनुचरी मातृका (शल्य० ४६ । ४।१७)।
१९)।
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