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बाह्निक ( बालिक)
( २१७ )
बुध
बाह्निक (बाह्रीक)-(१) एक राजा. जो शत्रुपक्षविनाशक श्रद्धापूर्वक यज्ञ किया था ( सभा० ३ । ११--१६)। महातेजस्वी अहर' के अंशसे प्रकट हुआ था (आदि. (यहींसे मयनामक दानवने देवदत्त शज और वृषपर्वाकी ६७ । २५)। (२)एक प्राचीन राजा, जो क्रोधवश- गदाको ले जाकर अर्जुन तथा भीमसेनको समर्पित संज्ञक दैत्यके अंशसे उत्पन्न हुआ था ( आदि०६७।
किया था।) ६०)। पाण्डवोंकी ओरसे इसे रण-निमन्त्रण भेननेका बिल्वक-कश्यपदाग कसे उत्पन्न एक नाग (आदि. विचार किया गया था ( उद्योग. ४ । १४) । यह कोरवपक्षका योद्धा था। इसे 'बाहीकराज' कहा गया है।
९। बिल्वकतीर्थ-हरद्वार के अन्तर्गत एक तीर्थ, जहाँ स्नान करके इसका द्रौपदीपुत्रोंके साथ युद्ध (द्रोण. ९६ । १२
___मनुष्य स्वर्गलोकका भागी होता है (अनु० २५ । १३)। (३) भरतवंशी महाराज कुरुके पौत्र एवं जनमेजयके तृतीय पुत्र ( आदि. ९४ । ५६ )।
१३)। . (४) कुरुवंशी महाराज प्रतीपके पुत्र, देवापि और बिल्वतेजा-तक्षककुलमें उत्पन्न हुआ एक नाग, जो सर्पशान्तनुके भाई । ये महारथी वीर थे । इनकी माताका सत्रमें जल मरा था (आदि० ५७ । १)। नाम सुनन्दा था, जो शिबिदेशकी राजकुमारी थी (आदि० बिल्वपत्र-कश्यपवंशी एक नाग ( उद्योग० १०३ । ९४ । ६१-६२, आदि. ९५।४४)। (श्रीमद्भागवत १४)। ९ । २२ । १८ के अनुसार बाह्रीकके पुत्रका नाम सोम
बिल्वपाण्डुर-कश्यपद्वारा कद्रू के गर्भसे उत्पन्न एक नाग दत्त था।) इन्होंने कौरव-सभामें जूएका विरोध किया था (सभा० ७४ । २५-२६) । संजयद्वारा लाये हुए।
__ (आदि० ३५ । १२)। युधिष्ठिरके संदेशको सुनने के लिये ये भी सभामें उपस्थित बीभत्सु-अर्जुनका एक नाम (विराट. ४४ ॥९)। हुए थे (उद्योग० १७॥ ६-७)। ये कौरवोंका पाण्डवोंके बीभत्सु' नामकी निरुक्ति (विराट. ४४ । १८)। साथ युद्ध होना नहीं चाहते थे (उद्योग० ५८ । ६-७)। बद्धि-ये दक्षप्रजापतिकी कन्या और धर्मकी पत्नी हैं। ये कुटुम्बमें फूट न हो, इस डरसे इन्होंने पाण्डवोंको राज्य- अपनी नौ बहिनोंके साथ, जो धर्मकी ही पत्नियाँ हैं, ब्रह्माभाग दे दिया था ( उद्योग० १२९ । ४१)। दुर्योधन- जीद्वारा धर्मका द्वार निश्चित की गयी हैं ( आदि०६६। की ग्यारह अक्षौहिणी सेनाओंके जो सेनापति चुने गये थे।
१३-१५)। उनमें एक ये भी थे ( उद्योग० १५५ । ३३)। प्रथम
बुद्धिकामा-स्कन्दकी अनुचरी एक मातृका ( शल्य. दिनके युद्धमें धृष्टकेतुके साथ इनका द्वन्द्वयुद्ध (भीष्म
४६ । १२)। ४५ । ३८-४१ )। भीमसेनद्वारा पराजित होना ( भीष्म. १०४ । २६-२७)। द्रपदके साथ यद्ध बुदबुदा-एक अप्सरा, जो वगोंकी सखी थी (आदि. (द्रोण २५ । १८-१९) । शिखण्डीके साथ यद्ध २१५ ।२०)। इसे ग्राह होकर जलमें रहने के लिये (द्रोण० ९६ । ७-१०)। भीमसेनद्वारा वध (द्रोण.
ब्राह्मणका शाप (आदि० २१५ । २३)। अर्जुनद्वारा १५७ । १५ ) । भीष्मके पूछनेपर कन्या-विवाहके
इसका ग्राहयोनिसे उद्धार ( आदि० २१६ । २१-२२)। विषयमें इनका अपना निर्णय देना (अनु०४४। ४३--
यह कुबेरकी सभामें रहकर उनकी सेवा करती है (सभा. ५६)। (५) युधिष्ठिरके सारथिका नाम (सभा० १०।११)। ५४ । २०)।(६) एक भारतीय जनपद ( भीष्म बध-(R) एक ग्रह, जो ब्रह्माजीकी सभामै ९ । १७, ५४ )।
उनकी उपासनाके लिये पधारते हैं (सभा० ११ । २९) । बिन्दुसर-एक प्राचीन सरोवर, जो कैलास पर्वतसे उत्तर ये चन्द्रमाके पुत्र और पुरूरवाके पिता हैं (द्रोण. दिशामें विद्यमान है ( सभा० ३ । २-३)। यहाँ १४४ । ४)। इन्होंने व्रतचर्या की और उसकी समाप्ति मयासुरका आगमन (सभा० ३ । ९-१०)। गङ्गा- होनेपर ये अदितिदेवीके यहाँ भिक्षाके लिये गये और बोले, वतरणके लिये यहाँ राजा भगीरथने बहुत वर्षोंतक उग्र मुझे भिक्षा दीजिये भिक्षा न मिलनेपर इनके द्वारा अदितितपस्या की थी ( सभा० ३।१०-११) । प्रजापतिने को शाप ( शान्ति. ३४२ । ५६)। मनुकन्या इलाका यहाँ सौ यज्ञोका अनुष्ठान किया और इन्द्रने भी यहीं यज्ञ बुधके साथ समागम हुआ, जिससे पुरूरवाका जन्म हुआ करके सिद्धि प्राप्त की (सभा० ३ । ११)। यहाँ था (अनु.१४७ । २६-२७)। (२) एक वानप्रस्थी भगवान् शङ्करने भी यज्ञ किये । वसुदेवनन्दन भगवान् ऋषि, जिन्होंने वानप्रस्थ-धर्मका पालन एवं प्रसार करके श्रीकृष्णने भी यहाँ धर्म-सम्पादनके लिये बहुत वर्षों तक स्वर्गलोक प्राप्त किया (शान्ति० २४४।१७)।
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