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बभ्रुवाहन
( २१३ )
बल
वह यहीं रहकर इस कुलपरम्पराका प्रवर्तक हो। इस कन्या- (आश्व० ८८ ॥ १-५) । अन्तःपुरसे आकर बभ्रुवाहनका के विवाहका यही शुल्क आपको देना होगा। तथास्तु' राजा धृतराष्ट्र, युधिष्ठिर, भीम, अर्जुन, नकुल, सहदेव और कहकर अर्जुनने वैसा ही करनेकी प्रतिशा की । पुत्रका जन्म
भगवान् श्रीकृष्णको प्रणाम करना और उन सबके द्वारा हो जानेपर उसका नाम बभ्रवाहन' रखा गया। उसे देख
धन आदिसे सत्कृत होना । श्रीकृष्णका बभ्रुवाहनको कर अर्जुनने राजा चित्रवाहमसे कहा-महाराज! इस बभ्रवाहनको आप चित्राङ्गदाके शुल्करूपमें ग्रहण कीजिये ।
दिव्य अश्वोसे जुता हुआ सुवर्णमय रथ प्रदान करना (आश्व० इससे मैं आपके ऋणसे मुक्त हो जाऊँगा।' इसके अनुसार
८८ । ३-११)। राजा युधिष्ठिरका बभ्रुवाहनको बहुत ये धर्मतः चित्रवाहनके पुत्र माने गये ( आदि० २१४ ।
धन देकर विदा करना (आश्व० ८९ । ३४) । २४-२६, आदि. २१६ । २४-२५) । अपने पिता महाभारतमें आये हुए बभ्रुवाहनके नाम-बभ्रुवाह, अर्जुनको मणिपूरके समीप आया जान इनका बहुत-सा धन चित्राङ्गदासुत, चित्राङ्गदात्मज, धनंजयसुत, मणिपूरपति, साथमें लेकर उनके दर्शनके लिये नगरके बाहर निकलना मणिपुरेश्वर आदि । (आश्व० ७९।१)। क्षत्रियधर्मके अनुसार युद्ध न
बर्बर-एक प्राचीन देश तथा वहाँके निवासी । इनकी गणना करनेके कारण अर्जुनका इन्हें धिक्कारना (आश्व०७१। ३
उन म्लेच्छ जातियोंमें है, जिनकी उत्पत्ति नन्दिनीके पार्श्व.)। उलूपीके प्रोत्साहन देनेपर इनका अर्जुनके साथ युद्ध करनेके लिये उद्यत होना और अश्वमेधसम्बन्धी अश्व
भागसे हुई है ( आदि० १७४ । ३७)। ये भीमसेनद्वारा
पूर्व दिग्विजयके समय जीते गये थे (सभा०३०।१४)। को पकड़वा लेना (आश्व० ७९ । 6-10)। पिता
नकुलने भी पश्चिमदिग्विजयके समय इन्हें जीतकर भेंट और पुत्रमें परस्पर अद्भुत युद्ध और बभ्रुवाहनका अर्जुन
वसूल किया था (सभा० ३२। १७)। ये युधिष्ठिरके को मूर्छित करके स्वयं भी मूर्छित होना (आश्व०७९ ।
राजसूय यज्ञमें भेंट लेकर आये थे (सभा० ५१ । २३)। १८–३७ ) । मूर्छासे जगनेपर बभ्रुवाहनका विलाप
और आमरण अनशनके लिये प्रतिज्ञा करके बैठना (आश्व. बर्हि-एक देवगन्धर्व । कश्यपके द्वारा प्राधाके गर्भसे उत्पन्न ८० । २१-४०)। उलूपीका बभ्रुवाहनको सान्त्वना दस देवगन्धर्वोमसे एक (आदि० ६५ । ४६)। देकर उनके हाथमें दिव्यमणि प्रदान करना और उसे पिता
बर्हिषद-(१) पितरोंका एक दल, जो यमकी सभामें विराके वक्षःस्थलपर रखनके लिये आदेश देना (भाव...।
जमान होते हैं (सभा. ८ । ३.)। ये मृत व्यक्तिके ४२-५०)। मणिके स्पर्शसे जीवित हुए पिताको बभ्र
लिये मन्त्रपाठकी अनुमति प्रदान करते हैं (शान्ति. वाहनका प्रणाम करना और पिताका पुत्रको गलेसे लगाना
२६९ । १५)। (२) त्रिलोकीको उत्पन्न करनेमें समर्थ (भाश्व० ८० । ५१-५६) । अर्जुनका बभ्रुवाहनसे युद्ध
पूर्व दिशानिवासी सप्तर्षियोंमें एक ये भी हैं (शान्ति. स्थलमें उलूपी और चित्राङ्गदाके उपस्थित होनेका कारण
२०८ । २७-२८)। ब्रह्माजीने इन्हें सात्वतधर्मका उपपूछना और बभ्रुवाहनका उलूपीसे ही पूछनेकी प्रार्थना करना
देश दिया था और इन्होंने ज्येष्ठ नामसे प्रसिद्ध एक ब्राह्मण(आश्व० ८० । ५७-६१)। उलूपीसे सब समाचार सुन
को इस धर्मका उपदेश दिया (शान्ति० ३४८ । ४५-४६)। कर प्रसन्न हुए अर्जुनका बभ्रुवाहनको अपनी दोनों माताओंके साथ युधिष्ठिरके अश्वमेध यज्ञमें आनेके लिये निमन्त्रण बल-(१) कश्यपके द्वारा दनायुके गर्भसे उत्पन्न एक देना ( आश्व०८१।१---२४)। पिताकी आशा शिरो असर । इसके तीन भाई और थे, जिनके नाम हैंधार्य करके बभ्रुवाहनका पितासे नगरमें चलनेके लिये अनु- विक्षर, वीर और वृत्र (आदि० ६५ । ३३) । यही रोध करना और अर्जुनका कहीं भी टहरनेका निवम नहीं पाण्ड्यदेशके राजाके रूपमें उत्पन्न हुआ था (आदि. है। ऐसा कहकर पुत्रसे सत्कारपूर्वक विदा ले वहाँसे प्रस्थान ६७ । ४२)। इन्द्रद्वारा इसके पराजित होनेकी चर्चा करना ( आश्व० ८१ । २६-३२) । अर्जुनका संदेश (वन० १६८ । ८१)। (२) वरुणके वीर्यसे उनकी सुनाते हुए श्रीकृष्णका युधिष्ठिरसे राजा बभ्रुवाहनके भावी ज्येष्ठ पत्नी देवीके गर्भसे उत्पन्न ( आदि० ६६ । आगमनकी चर्चा करना (आश्व.८६।१४-२.)। ५२)। (३) इक्ष्वाकुवंशी राजा परीक्षितद्वारा माताओंसहित बभ्रुवाहनका कुरुदेशमै आगमन और गुरु- मण्डूकराजकी कन्या सुशोभनाके गर्भसे उत्पन्न । इनके जनोंको प्रणाम करके उनका कुन्तीके भवनमें प्रवेश (आश्व० दो भाई और थे-शल और दल (वन० १९२ । ३८)। ८७ । २६-२८)। माताओंसहित बभ्रुवाहनका कुन्ती, (४) एक वानर, जो कुम्भकर्ण के साथ युद्धर्मे उसका द्रौपदी और सुभद्रा आदिके चरणों में प्रणाम करना और ग्रास बन गया था (वन० २८७ । ६)। (५) उन सबके द्वारा रत्न आभूषण आदिसे सम्मानित ोमा बाहद्वारा स्कन्दको दिये गये दो पार्षदोंमेंसे एक । दूसरे
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