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प्रबालक
( २०८ )
प्रमद्वरा
प्रबालक-एक यक्ष, जो कुबेरकी सभामें रहकर उनकी नामक ज्योतिर्लिङ्गका स्थान यहीं है।) यहाँ तीर्थउपासना करता है (सभा० १०।१७)।
यात्राके अवसरपर अर्जुनका श्रीकृष्णसे मिलन (आदि. प्रबाह-कौरव-पक्षका एक योद्धा, जिसने अभिमन्युपर बाण
२१७ । ४)। प्रभासतीर्थमें श्रीकृष्णने एक हजार दिव्य वर्षा की थी (द्रोण० ३७ । २६)।
वर्षांतक एक पैरसे खड़े होकर तपस्या की थी (वन० प्रभञ्जन-ये मणिपूरनरेश चित्रवाहन के पूर्वज थे, इनके कोई
१२ । १५-१६)। यहाँ अग्निदेव निवास करते हैं, पुत्र नहीं था, अतः इन्होंने उत्तम तपस्या आरम्भ की ।
इस तीर्थमें स्नान करके संयतचित्त मानब अतिरात्र और
अग्निष्टोम यज्ञका फल पाता है (वन० ८२ । ५८उस उग्र तपस्याद्वारा देवाधिदेव महेश्वर संतुष्ट हो गये और उन्होंने राजाको वरदान देते हुए कहा कि तुम्हारे कुलमें
६०)। तीर्थयात्राके समय भाइयोसहित युधिष्ठिर यहाँ एक-एक संतान होती जायगी ( आदि. २१४ ।
आये थे और इस स्थानपर उन्होंने तपस्या की थी १९-२१)।
(वन०१८ । १५-१८)। प्रभास तीर्थ इन्द्रको प्रभद्रक-पाश्चालोका एक क्षत्रिय-दल, जो पाण्डवपक्षमें
बहुत प्रिय है। यह पुण्यमय क्षेत्र और पापोंका नाश करनेवाला आया था ( उद्योग० ५७ । ३३)। ये प्रायः धृष्टद्युम्न
है ( वन० १३० । ७) । इसके प्रभावका विशेषरूपसे और शिखण्डीका अनुगमन करते थे(भीष्म १९ ।
वर्णन ( शल्य० ३५ । ४१-८२)। यहाँ स्नान २२, भीष्म० ५६ । १४)। ये अधिकतर शल्यद्वारा
करनेसे मनुष्य विमानपर बैठकर स्वर्गमें जाता है और मारे गये थे (शल्य. ११ । २४) । रातमें सोते
अप्सराएँ वहाँ स्तुति करती हुई उसे जगाती हैं (अनु० समय अश्वत्थामाद्वारा प्रभद्रकोंका वध हुआ था (सौप्तिक०
२५।९)। यहाँ ही यदुवंशियोंका परस्पर युद्ध करके
विनाश हुआ था ( मौसल.३ । १०-४६)। ८।६६)।
प्रभास तीर्थसे ही बलरामजी तथा भगवान् श्रीकृष्ण परम प्रभा-१)एक देवी, जो ब्रह्माकी सभामें रहकर उनकी
धाम पधारे थे (मौसल.४ अध्याय ) । (३) उपासना करती हैं (सभा०११।४)। (२)
स्कन्दका एक सैनिक (शल्य०४५। ६९)। अलकापुरीकी एक अप्सरा, जिसने अष्टावक्रजीके स्वागत समारोहमें नृत्य किया था ( अनु० १९ । ४५)। प्रभु-स्कन्दका एक सैनिक (शल्य. ४५ । ५८)। प्रभाकर-(१) एक कश्यपवंशी प्रमुख नाग ( आदि प्रमतक-एक ऋषि, जो जनमेजयके सर्पसत्रमें सदस्य बने
३५ । १५ )। (२) कुशद्वीपका छठा वर्षखण्ड थे (आदि० ५३।७)। (भीष्म १२ । १३)।
प्रमति ( या प्रमिति )-च्यवन ऋषिके पुत्र । इनकी माताप्रभाता-ये धर्मकी पत्नी थीं और प्रत्यूष तथा प्रभास
का नाम सुकन्या था (आदि० ५। ९, आदि००। नामक दो वसु इन्हींके पुत्र थे ( आदि० ६६।
१)। इनके घृताची अप्सराके गर्भसे रुरु नामक पुत्र १७-२०)।
उत्पन्न हुआ था (आदि०८।२)। इनका रुरुके प्रभावती-(१) मयदानवके निवास स्थानपर तपस्या
लिये स्थूलकेश मुनिसे उनकी प्रमद्वरा नामक कन्याको करनेवाली एक तपस्विनी, जो सीताजीकी खोजके लिये
माँगना ( आदि०८।१५)। इनका रुरुको आस्तीकगये हुए वानरोसे मिली थी (वन० २८२ । ४१)।
पर्वकी कथा सुनाना ( आदि० ५८ । ३०-३१)। शर(२) ये सूर्यदेवकी पत्नी थीं ( उद्योग. ११७ ।
शय्यापर पड़े हुए भीमके पास उनकी मृत्युके समय ८)। (३) स्कन्दकी अनुचरी मातृका (शल्य.
ये भी पधारे थे ( अनु० २६ । ५)। कहीं-कहीं इन्हें ४६ । ३) । (४) अङ्गराज चित्ररथकी पत्नी, जो
वीतहव्य के पुत्र गृत्समद के कुलमें जन्म लेनेवाले वागीन्द्रका देवशर्माकी पत्नी रुचिकी बड़ी बहिन थी (अनु०४२। पुत्र बताया गया है (अनु० ३० । ५०-६४)। ८)। इसका अपनी बहिन रुचिसे दिव्य पुष्प मँगवा प्रमथ-धृतराष्ट्रके सौ पुत्रोंमेंसे एक ( आदि. ११६ । देनेके लिये अनुरोध (अनु. ४२ । १०)।
१३)। प्रभास-(१)ये धर्मके द्वारा प्रभाताके गर्भसे उत्पन्न
प्रमथगण-शिवजीके गण, इनके द्वारा धर्माधर्मसम्बन्धी हुए थे, इनकी गणना वसुओंमें है ( आदि० ६६। रहस्यका कथन ( अनु० १३१ अध्याय )। १७-२०)। (२) एक प्राचीन तीर्थ ( आदि० प्रमदावन-राजमहलोंमें रानियोंके विहारके लिये बने हुए २१७ । ३)। यह पश्चिम समुद्रतटपर सौराष्ट्र देश उपवन (वन० ५३ । २५)। ( काठियावाड़) में है, यह देवताओंका तीर्थ है (वन० प्रमद्वरा-हरुकी पत्नी तथा शुनक ऋषिकी माता जो ८८।२०)। (इसे सोमतीर्थ भी कहते हैं, सोमनाथ विश्वावसु और मेनकासे उत्पन्न हुई थी। इसकी उत्पत्ति स्थूल
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