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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रबालक ( २०८ ) प्रमद्वरा प्रबालक-एक यक्ष, जो कुबेरकी सभामें रहकर उनकी नामक ज्योतिर्लिङ्गका स्थान यहीं है।) यहाँ तीर्थउपासना करता है (सभा० १०।१७)। यात्राके अवसरपर अर्जुनका श्रीकृष्णसे मिलन (आदि. प्रबाह-कौरव-पक्षका एक योद्धा, जिसने अभिमन्युपर बाण २१७ । ४)। प्रभासतीर्थमें श्रीकृष्णने एक हजार दिव्य वर्षा की थी (द्रोण० ३७ । २६)। वर्षांतक एक पैरसे खड़े होकर तपस्या की थी (वन० प्रभञ्जन-ये मणिपूरनरेश चित्रवाहन के पूर्वज थे, इनके कोई १२ । १५-१६)। यहाँ अग्निदेव निवास करते हैं, पुत्र नहीं था, अतः इन्होंने उत्तम तपस्या आरम्भ की । इस तीर्थमें स्नान करके संयतचित्त मानब अतिरात्र और अग्निष्टोम यज्ञका फल पाता है (वन० ८२ । ५८उस उग्र तपस्याद्वारा देवाधिदेव महेश्वर संतुष्ट हो गये और उन्होंने राजाको वरदान देते हुए कहा कि तुम्हारे कुलमें ६०)। तीर्थयात्राके समय भाइयोसहित युधिष्ठिर यहाँ एक-एक संतान होती जायगी ( आदि. २१४ । आये थे और इस स्थानपर उन्होंने तपस्या की थी १९-२१)। (वन०१८ । १५-१८)। प्रभास तीर्थ इन्द्रको प्रभद्रक-पाश्चालोका एक क्षत्रिय-दल, जो पाण्डवपक्षमें बहुत प्रिय है। यह पुण्यमय क्षेत्र और पापोंका नाश करनेवाला आया था ( उद्योग० ५७ । ३३)। ये प्रायः धृष्टद्युम्न है ( वन० १३० । ७) । इसके प्रभावका विशेषरूपसे और शिखण्डीका अनुगमन करते थे(भीष्म १९ । वर्णन ( शल्य० ३५ । ४१-८२)। यहाँ स्नान २२, भीष्म० ५६ । १४)। ये अधिकतर शल्यद्वारा करनेसे मनुष्य विमानपर बैठकर स्वर्गमें जाता है और मारे गये थे (शल्य. ११ । २४) । रातमें सोते अप्सराएँ वहाँ स्तुति करती हुई उसे जगाती हैं (अनु० समय अश्वत्थामाद्वारा प्रभद्रकोंका वध हुआ था (सौप्तिक० २५।९)। यहाँ ही यदुवंशियोंका परस्पर युद्ध करके विनाश हुआ था ( मौसल.३ । १०-४६)। ८।६६)। प्रभास तीर्थसे ही बलरामजी तथा भगवान् श्रीकृष्ण परम प्रभा-१)एक देवी, जो ब्रह्माकी सभामें रहकर उनकी धाम पधारे थे (मौसल.४ अध्याय ) । (३) उपासना करती हैं (सभा०११।४)। (२) स्कन्दका एक सैनिक (शल्य०४५। ६९)। अलकापुरीकी एक अप्सरा, जिसने अष्टावक्रजीके स्वागत समारोहमें नृत्य किया था ( अनु० १९ । ४५)। प्रभु-स्कन्दका एक सैनिक (शल्य. ४५ । ५८)। प्रभाकर-(१) एक कश्यपवंशी प्रमुख नाग ( आदि प्रमतक-एक ऋषि, जो जनमेजयके सर्पसत्रमें सदस्य बने ३५ । १५ )। (२) कुशद्वीपका छठा वर्षखण्ड थे (आदि० ५३।७)। (भीष्म १२ । १३)। प्रमति ( या प्रमिति )-च्यवन ऋषिके पुत्र । इनकी माताप्रभाता-ये धर्मकी पत्नी थीं और प्रत्यूष तथा प्रभास का नाम सुकन्या था (आदि० ५। ९, आदि००। नामक दो वसु इन्हींके पुत्र थे ( आदि० ६६। १)। इनके घृताची अप्सराके गर्भसे रुरु नामक पुत्र १७-२०)। उत्पन्न हुआ था (आदि०८।२)। इनका रुरुके प्रभावती-(१) मयदानवके निवास स्थानपर तपस्या लिये स्थूलकेश मुनिसे उनकी प्रमद्वरा नामक कन्याको करनेवाली एक तपस्विनी, जो सीताजीकी खोजके लिये माँगना ( आदि०८।१५)। इनका रुरुको आस्तीकगये हुए वानरोसे मिली थी (वन० २८२ । ४१)। पर्वकी कथा सुनाना ( आदि० ५८ । ३०-३१)। शर(२) ये सूर्यदेवकी पत्नी थीं ( उद्योग. ११७ । शय्यापर पड़े हुए भीमके पास उनकी मृत्युके समय ८)। (३) स्कन्दकी अनुचरी मातृका (शल्य. ये भी पधारे थे ( अनु० २६ । ५)। कहीं-कहीं इन्हें ४६ । ३) । (४) अङ्गराज चित्ररथकी पत्नी, जो वीतहव्य के पुत्र गृत्समद के कुलमें जन्म लेनेवाले वागीन्द्रका देवशर्माकी पत्नी रुचिकी बड़ी बहिन थी (अनु०४२। पुत्र बताया गया है (अनु० ३० । ५०-६४)। ८)। इसका अपनी बहिन रुचिसे दिव्य पुष्प मँगवा प्रमथ-धृतराष्ट्रके सौ पुत्रोंमेंसे एक ( आदि. ११६ । देनेके लिये अनुरोध (अनु. ४२ । १०)। १३)। प्रभास-(१)ये धर्मके द्वारा प्रभाताके गर्भसे उत्पन्न प्रमथगण-शिवजीके गण, इनके द्वारा धर्माधर्मसम्बन्धी हुए थे, इनकी गणना वसुओंमें है ( आदि० ६६। रहस्यका कथन ( अनु० १३१ अध्याय )। १७-२०)। (२) एक प्राचीन तीर्थ ( आदि० प्रमदावन-राजमहलोंमें रानियोंके विहारके लिये बने हुए २१७ । ३)। यह पश्चिम समुद्रतटपर सौराष्ट्र देश उपवन (वन० ५३ । २५)। ( काठियावाड़) में है, यह देवताओंका तीर्थ है (वन० प्रमद्वरा-हरुकी पत्नी तथा शुनक ऋषिकी माता जो ८८।२०)। (इसे सोमतीर्थ भी कहते हैं, सोमनाथ विश्वावसु और मेनकासे उत्पन्न हुई थी। इसकी उत्पत्ति स्थूल For Private And Personal Use Only
SR No.020461
Book TitleMahabharat Ki Namanukramanika Parichay Sahit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVasudevsharan Agarwal
PublisherVasudevsharan Agarwal
Publication Year1959
Total Pages414
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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