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प्रतिश्रवा
( २०७ )
प्रधान
होना (द्रोण० १६८ । ३४.----४३ ) । राजा चित्रके २३)। इनका शान्तनुको राज्य देकर वनमें प्रवेश करना साथ युद्ध और इनके द्वारा उसका वध (कर्ण०१४ । (आदि० २७ । २४ )। इनके परलोकवासी होनेकी २०-३३)।रात्रिमें अश्वत्थामाके साथ युद्ध और उसके चर्चा (उद्योग० १४९ । २८)। द्वारा मारा जाना ( सौप्तिक० ८ । ४०-५४)। प्रत्यग्रह-ये राजा उपरिचर वसुके द्वितीय पुत्र थे (आदि० ( महाभारतमें इनके लिये यौधिष्ठिर और यौधिष्ठिरि शब्द- ६३। ३१)। का भी प्रयोग हुआ है। ) (२) एक प्रसिद्ध राजा,
प्रत्यङ्ग-एक प्राचीन नरेश ( आदि० ३ । २३८ )। जो एकचक्र नामक दैत्यके अंशसे उत्पन्न हुए थे (आदि. ६७ । २१-२२)। दिग्विजयके समय अर्जनने प्रत्यूष-ये धर्मके द्वारा प्रभाताके गर्भसे उत्पन्न हुए थे। इन्हें परास्त किया था (सभा० २६ ॥५)। पाण्डवोंकी
इनकी गणना वसुओंमें है (आदि०६६ । १७-२०)। ओरसे इन्हें रण-निमन्त्रण भेजनेका विचार किया गया था प्रदाता-एक विश्वेदेव ( अनु० ९१ । ३२)। (उद्योग०४।१३)। ये यमराजकी सभामें रहकर
र प्रद्युम्न-ये सनत्कुमारके अंशसे भगवान् श्रीकृष्णद्वारा
. उनकी उपासना करते हैं (सभा०८।२४)।
रुक्मिणीके गर्भसे प्रकट हुए थे (आदि०६७ । १५२, प्रतिश्रवा--ये परीक्षित्के पुत्र थे, जोमहाराज भीमसेनके द्वारा सौप्तिक. १२ । ३०-३२) । अर्जुन और सुभद्राके 'कुमारी' के गर्भसे उत्पन्न हुए थे। इनके पुत्रका नाम विवाहके उपलक्षमें दहेज लेकर आनेवाले वृष्णिवंशियोंमें ये प्रतीप था (भादि० ९५ । ४२-४४)।
भी थे (आदि० २२० । ३१)। ये युधिष्ठिरके राजसूय प्रतिष्ठा-स्कन्दकी अनुचरी मातृका (शल्य० ४६ । २९)। यज्ञमें पधारे थे ( सभा० ३४ । १६)। शाल्वके पराक्रमप्रतिष्ठानपुर-प्रयागके भीतरका एक तीर्थ ( जिसे आजकल
से घबरायी हुई यादवसेनाको इनके द्वारा आश्वासन झूसी कहते हैं )। यह प्रजापतिकी वेदीके अन्तर्गत है (वन० १६ । ३०-३२)। इनका शाल्वके साथ घोर (वन० ८५ । ७६)। प्रतिष्ठानपुरमें राजा ययातिकी
युद्ध ( वन० १७ अध्याय ) । संग्रामभूमिमें इनका राजधानी थी, जहाँ गालव और गरुड़ गये थे ( उद्योग०
मूच्छित होना ( वन० १७ । २२)। सारथिद्वारा ११४।९)।
मूर्छावस्थामें संग्रामसे हटा ले जानेपर इनका अनुताप और
सारथिको उपालम्भ देना (वन०१८ अध्याय)। पुनः प्रतीच्या-ये महर्षि पुलस्त्यकी पतिव्रता पत्नी थीं (उद्योग
शाल्वके साथ युद्ध और उसे मारनेके लिये एक अद्भुत
शत्रुनाशक बाणका संधान करना (वन १९ । १२प्रतीत-एक विश्वेदेव ( अनु० ९१ । ३२ )।
१९) । इनके पास नारद और वायुदेवका आकर प्रतीप-एक कुरुवंशी राजा, जो धृतराष्ट्र के पुत्र थे । आदिपर्व
देवताओंका संदेश सुनाना (वन० १९।२१-२४)। ९४ । ४९-६० के वर्णनके अनुसार कुरुसे इनकी
इनके द्वारा शाल्वकी पराजय (वन० १९ । २६)। परम्परा इस प्रकार है--कुरु, कुरुके पुत्र अश्ववान्
इनसे अनिरुद्ध प्रकट हुए थे (भीष्म०६५। ७१)। (अविक्षित् ), इनके परीक्षित् आदि आठ भाई, इनके
ये महारथी वीर थे (द्रोण. ११०। ५९) । इनके कुलमें जनमेजय, जनमेजयसे धृतराष्ट्र और धृतराष्ट्रसे प्रतीप
नामकी निरुक्ति (शान्ति० ३३९ । ३७-३८)। ये हुए। किंतु आदिपर्व ९५ । ३९-४४ के वर्णनके
श्रीकृष्णके तीसरे स्वरूप माने जाते हैं (अनु० १५८ । अनुसार कुरुसे विदूर, विदूरसे अनश्वा, अनश्वासे परीक्षित्,
३९)। श्रीकृष्णसे ब्राह्मणकी महिमाके विषयमें पूछना परीक्षितसे भीमसेन, भीमसेनसे प्रतिश्रवा और प्रतिश्रवासे
(अनु० १५९ । ४-७)। ये युधिष्ठिरके अश्वमेधयज्ञमें प्रतीपका जन्म हुआ था। इनकी पत्नीका नाम शैव्या
इस्तिनापुर आये थे ( आश्व० ६६ । ३)। मौसल-युद्धमें सुनन्दा था; उससे इनके तीन पुत्र हुए देवापि, शान्तनु
इनका भोजोंके साथ युद्ध और उनके द्वारा इनका वध तथा बाह्रीक (आदि० ९४ । ६१, आदि० ९५ । ४४)।
(मौसल.३।३३-३५)। मरणोपरान्त ये सनकुमारके इनके पास मनस्विनी गङ्गा सुन्दर रूप और उत्तम गुणोंसे
स्वरूपमें प्रविष्ट हो गये ( स्वर्गा० ५। १३)। युक्त युवती स्त्रीका रूप धारण करके गयीं और इनके दाहिने ऊरुपर जा बैठी तथा इनके पूछनेपर उन्होंने इनकी प्रद्योत-एक यक्ष, जो कुबेरकी सभामें रहकर उनकी सेवा पत्नी बननेकी कामना प्रकट की। तब इन्होंने उनका करता है (सभा०१०।१५)। पुत्रवधुके रूपमें वरण किया (आदि. ९७ । १-१६)। प्रधान-एक प्राचीन राजर्षि, इन्हींके कुलमें सुलभा उत्पन्न इनका एक दिव्य नारीको पत्नीरूपमें स्वीकार करनेके लिये हुई थी, जिसके साथ विदेहराज जनकका संवाद हुआ था अपने पुत्र शान्तनुको आदेश देना (आदि. ९७।२१- (शान्ति. ३२०। १८४)।
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