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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra प्रघस www.kobatirth.org ( २०६ ) प्रघस - राक्षसों और पिशाचोंके दल ( वन० २८५ । १-२ ) । प्रघसा - स्कन्दकी अनुचरी मातृका (शल्य० ४६ । १६) । प्रचेता - प्राचीनवर्हिके दस पुत्र, जो ऋषि एवं प्रजापति हैं, इन्हींसे प्राचेतस दक्षका जन्म हुआ है ( अनु० १४७ । २५ ) । इन्होंने कण्डु मुनिकी पुत्री वाक्षके साथ विवाह किया था ( आदि० १९५ । १५ ) । ये इन्द्रकी सभा में विराजमान होते हैं ( सभा० ७ । १६ ) । ब्रह्माजीकी सभामें रहकर उनकी उपासना करते हैं ( सभा० ११ । १८ ) । ये स्कन्द के जन्मकालमें उनके पास पधारे थे ( शल्य० ४५ । १० ) । प्रजागरपर्व - उद्योगपर्वका एक अवान्तर पर्व ( अध्याय ३३ से ४० तक ) । प्रजागरा - एक अप्सरा, जिसने इन्द्रकी सभामें अर्जुनके स्वागत समारोह के अवसरपर नाच-गान किया था ( वन० ४३ । ३० ) । प्रजापति - ( १ ) प्रजाओंके स्रष्टा और पालक देवगुरु ब्रह्मा ( आदि० १ । २९ - ३३ ) | ( विशेष देखिये 'ब्रह्मा') । ( २ ) महर्षि कश्यप, जिन्होंने वालखिल्योंसे देवराज इन्द्रपर अनुग्रह करने के लिये प्रार्थना की थी ( आदि ० ३१ । १६–२१ ) । महाभारतमें प्रजापतियोंके इक्कीस नाम आये हैंब्रह्मा, रुद्र, मनु, दक्ष, भृगु, धर्म, तप, यम, मरीचि, अङ्गिरा, अत्रि, पुलस्त्य, पुलह, ऋतु, वसिष्ठ, परमेष्ठी, सूर्य, चन्द्रमा, कर्दम, क्रोध और विक्रीत । ये इक्कीस T प्रजापति उसी परमात्मासे उत्पन्न बताये गये हैं तथा उसी परमात्माकी सनातन धर्म-मर्यादाका पालन एवं पूजन करते हैं (शान्ति० ३३४ । ३५-३७ ) । प्रजापतिकी उत्तर वेदी - तरन्तुक, अरन्तुक, रामहृद ( परशुरामकुण्ड ) तथा मचक्रुक ———इनके बीचका भू-भाग कुरुक्षेत्र ही प्रजापतिकी उत्तर वेदी है ( शल्य० ५३ । २४ )। प्रजापति - वेदी - प्रतिष्ठानपुर (झूसी) सहित प्रयाग, कम्बल और अश्वतर नाग तथा भोगवती तीर्थ - यह ब्रह्माजी की वेदी है (वन० ८५ | ७६-७७ )। प्रणिधि-वासिष्ठ बृहद्रथके अंशसे उत्पन्न पाञ्चजन्य नामक अग्निके पुत्र ( वन० २२० । ९ ) । प्रणीत-छः बन्धुदायादों मेंसे एक, अपनी पत्नीके गर्भ से किसी महापुरुषके अनुग्रहसे उत्पन्न हुआ पुत्र ( आदि० ११९ । ३३)। प्रतर्दन - काशी जनपदके एक प्राचीन नरेश, जो राजा Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रतिविन्ध्य ययातिके दौहित्र थे ( आदि० ९३ । १३ के बाद दा० पाठ, पृष्ठ २८२ ) । ययाति-पुत्री माधवी के गर्भ से काशिराज दिवोदासके द्वारा इनका जन्म हुआ था ( उद्योग ० ११७ । १८; अनु० ३० । ३० ) । स्वर्ग से गिरते हुए राजा ययातिकी इनसे भेंट ( आदि० ८६ । ५-६ )। इनका ययातिके साथ वार्तालाप ( आदि० ९२ । १४— १८ दा० पाठसहित) | इनके द्वारा ययातिको पुण्यदानका आश्वासन ( आदि० ९२ । १६ ) | अष्टक आदि राजाओंके साथ इनका स्वर्गलोकको जाना ( आदि० ९३ । १६ के बाद दा० पाठ ) । देवर्षि नारदद्वारा भविष्य में इनके स्वर्गसे गिरनेके कारणका वर्णन ( वन० १९८ | ५ ) । इनका ययातिको अपना पुण्यफल देना ( उद्योग० १२२ । ६-७ ) । पराजित राजाका सारा धन ले जाना ( शान्ति ० ९६ । २० ) । महाराज शिबिद्वारा इन्हें खड़की प्राप्ति ( शान्ति० १६६ । ८० ) । इनके द्वारा ब्राह्मणको नेत्र दान (शान्ति० २३४ | २० ) । इनके द्वारा वीतहव्य पुत्रोंका वध ( अनु० ३० । ४२-४३ )। वीतव्यको छोड़ देनेके लिये इनकी भृगुजीसे प्रार्थना ( अनु० ३० | ५० - ५२ ) । भृगुजीके वचनोंसे संतुष्ट होकर इनका नगरको लौटना (अनु० ३० । ५४-५६)। इनका अपने पुत्रको ब्राह्मणकी सेवामें समर्पित करके इस लोकमें अनुपम कीर्ति पाना और परलोकमें अक्षय आनन्द भोगना ( अनु० १३७ । ५ ) । For Private And Personal Use Only प्रताप - सौवीर देशका एक राजकुमार, जो जयद्रथके रथके पीछे हाथ में ध्वजा लेकर चलता था वन० २६५ । १० ) । अर्जुनद्वारा इसका वध (वन० २७१ । २७) । प्रतिज्ञापर्व - द्रोणपर्वका एक अवान्तर पर्व (अध्याय ७२ से ८४ तक ) । प्रतिमत्स्य - एक भारतीय जनपद ( भीष्म० ९ । ५२ ) । प्रतिरूप - एक दैत्य, जो कभी समस्त पृथ्वीका शासक था; परंतु कालसे पीड़ित हो इन्हें छोड़कर परलोकवासी हो गया (शान्ति ० २२७ । ५३-५६ ) । प्रतिविन्ध्य - ( १ ) द्रौपदीके गर्भ से युधिष्ठिरद्वारा उत्पन्न ( आदि० ६३ । १२२-१२३ आदि० ९५ । ७५ ) । इनका जन्म विश्वेदेवके अंशसे हुआ था ( आदि० ६७ । १२७-१२८ ) । इनके नामकी निरुक्ति (आदि० २२० । ७९-८१ ) । प्रथम दिनके संग्राममें शकुनिके साथ इनका द्वन्द्व-युद्ध ( भीष्म० ४५ । ६३ - ६५ ) । अलम्बुष के साथ इनका युद्ध और उससे पराजित होना ( भीष्म० १०० । ३९—४९ ) | इनके घोड़ोंका वर्णन ( द्रोण० २३ । २७ ) । अश्वत्थामा के साथ इनका युद्ध ( द्रोण० २५ । २९-३१ ) । दुःशासन के साथ इनका युद्ध और पराजित
SR No.020461
Book TitleMahabharat Ki Namanukramanika Parichay Sahit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVasudevsharan Agarwal
PublisherVasudevsharan Agarwal
Publication Year1959
Total Pages414
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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