SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 209
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पौण्ड्रक ( २०५ ) प्रगण्डी पौण्ड्र नामक महान् शङ्खकी ध्वनि की ( शल्य०६१। पौलोम-(१) पुलोमाके पुत्र । हिरण्यपुरके स्वामी । ७१ के बाद दा० पाठ)। इनका अर्जुनके साथ युद्ध और उनके द्वारा इनका संहार पोण्डक-पुण्डदेशका राजा वासुदेव, जो बंग, पुण्ड आदि (वन० १७२ । १६-५५)।(२) दक्षिण समुद्र के अनेक देशोंका शासक था और जरासंधसे मिला हुआ था समीपका एक तीर्थ, पाँच नारी तीथों में से एक ( आदि. (सभा० १४।२०)। राजसूय यज्ञके समय भीमसेन २१५। ३)। यहाँ ब्राह्मणके शापसे ग्राह बनकर रहनेद्वारा इसकी पराजय ( सभा० ३० । २२)। यह वाली अप्सरा (वर्गाको सखी) का अर्जुनद्वारा उद्धार युधिष्ठिरके राजसूय यज्ञमें भेंट लेकर आया था ( सभा हुआ (आदि० २१६ । २१-२२)। ५२ । १८)। पौलोमपर्व-आदिपर्वका एक अवान्तर पर्व (अध्याय ४ पौण्डमास्यक-एक क्षत्रिय राजा, जो दनायके पत्र वीर से १२ तक)। नामक दैत्यके अंशसे उत्पन्न हुआ था ( आदि. पौलोमी-पुलोमा दानवकी पुत्री, देवराज इन्द्रकी पत्नी और जयन्तकी माता शची (आदि. ११३ । ४)। पौदन्य-एक प्राचीन नगर, जिसे सौदासके पुत्र अश्मकने (देखिये शची) बसाया था ( आदि० १७६ । ४७)। (कुछ आधुनिक पौष मास-(बारह महीनों में से एक, जिस मासकी पूर्णिमाको विचारकोंके मतानुसार गोदावरीके उत्तर तटपर बसा हुआ पुष्य नक्षत्रका योग होता है, उसे पौष' कहते हैं । यह पैथान' नामक नगर ही पौदन्य है।) मार्गशीर्षके बाद और मायके पहले पड़ता है। ) पौष पौनर्भव छः बन्धु-दायादोंमेंसे एक । दूसरी बार ब्याही मासमें प्रतिदिन एक समय भोजन करनेवाला मनुष्य हुई स्त्रीसे उत्पन्न हुआ पुत्र ( आदि० ११९ । ३३)। सौभाग्यशाली, दर्शनीय और यशस्वी होता है ( अनु. पौरव-(१) एक राजर्षि, जो शरभ नामक दैत्यके १०६ । २०) । पौष मासकी द्वादशीको उपवासपूर्वक अंशसे उत्पन्न हुए थे (आदि. ६७ । २७-२८)। भगवान् नारायणकी पूजा करनेसे वाजपेय यज्ञका फल ये पर्वतीय राजा थे और अर्जुनद्वारा पराजित हुए थे मिलता है ( अनु० १०९ । ४)।पौष मासके शुक्लपक्षकी (सभा० २७ । १४-१५)। पाण्डवोंकी ओरसे इन्हें जिस तिथिमें रोहिणी नक्षत्रका योग हो, उस दिनकी रण-निमन्त्रण भेजनेका विचार किया गया था ( उद्योग. रात्रिमें स्नान आदिसे शुद्ध हो एक वस्त्र धारण करके ४ । १४ )। दुर्योधनको सेनामें ये एक महारथी थे श्रद्धा और एकाग्रतापूर्वक आकाशके नीचे खुले मैदानमें (उद्योग० १६८। १९) । धृष्टकेतुके साथ इनका द्वन्द्व- सो जाय और चन्द्रमाकी किरणोंका पान करता रहे । युद्ध ( भीष्म ११६ । १३-१४ )। इन्होंने अभिमन्युके ऐसा करनेसे उसे महान् यज्ञका फल मिलता है ( अनु० साथ युद्ध किया और अभिमन्युने चुटिया पकड़कर इन्हें १२६ ॥ १८-४९ )। घसीटा था (द्रोण० १४ । ५०-६०)। महाभारत- पौष्टी-राजा पूरुकी पत्नी, इनके गर्भसे पूरुद्वारा प्रवीर, ईश्वर युद्ध में ये अर्जुनद्वारा मारे गये थे, ऐसी चर्चा आयी तथा रौद्राश्व नामक तीन पुत्र उत्पन्न हुए थे ( भादि. है ( कर्ण० ५। ३५) । (२) पूरुके वंशमें उत्पन्न ९४ । ५)। इनका दूसरा नाम कौसल्या था ( आदि होनेवाले--कौरव-पाण्डव आदि ( आदि. १७२ । ५० ९५।११)। के बाद दा० पाठ)।(३) अङ्गदेशके एक प्राचीन दा० पाठ ) । (३) अङ्गदशक एक प्राचान पौष्य-एक क्षत्रिय राजा, जिन्होंने आचार्य वेदको पुरोहित राजा । नारदजीद्वारा सृञ्जयके समक्ष अश्वमेध यज्ञमें इनके बनाया था। इनकी कथा (आदि०३।८२-११७)। दानका वर्णन (द्रोण० ५७ अध्याय ) (४) विश्वामित्रके इनकी रानीका उत्तङ्क ऋषिको कुण्डल देना (आदि. ब्रह्मवादी पुत्रों से एक ( अनु० ४ । ५५)। ३। १११)। इनके द्वारा उत्तङ्कको संतानहीन होनेका पौरवक-क्षत्रियोंकी एक जाति, इस जातिके लोग युधिष्ठिरके शाप ( आदि० ३ । ११७)। साथ क्रौञ्चव्यूहमें खड़े थे ( भीष्म० ५० । ४८)। पौष्यपर्व-आदिपर्वका एक अवान्तर पर्व ( ३ अध्याय )। पौरिक-पुरिका नगरीका एक राजा, जिसे पापके कारण प्रकालन-वासुकि-वंशका एक नाग, जो जनमेजयके सर्पसियारकी योनिमें जन्म लेना पड़ा था (शान्ति यज्ञमें जल मरा था (आदि. ५७ । ६)। १११।३-४)। प्रकाश-एक भृगुवंशी ब्राह्मण, जो गृत्समदवंशी 'तम' के पौरोगव-पाकशालाके अध्यक्षकी संज्ञा ( विराट० २ । १)। पुत्र थे ( अनु० ३० । ६३)। पौलस्त्य-पुलस्त्यकुलके राक्षस, जो दुर्योधनके भाइयोंके प्रगण्डी-परकोटोपर रक्षा-सैनिकों के बैठनेका स्थान रूपमें उत्पन्न हुए थे ( आदि० ६७ । ८९-९१)। (शान्ति० ६९ । १३)। For Private And Personal Use Only
SR No.020461
Book TitleMahabharat Ki Namanukramanika Parichay Sahit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVasudevsharan Agarwal
PublisherVasudevsharan Agarwal
Publication Year1959
Total Pages414
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy