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प्रमाणकोटि
प्रवरा
केशद्वारा इसके लालन-पालन, नामकरण एवं विवाहकी मिली हैं। गङ्गा-यमुनाका मध्यभाग पृथ्वीका जघन माना कथा (आदि० ५। १०; आदि०८।५-१५)। इसका गया है। प्रयाग जघनस्थानीय उपस्थ है। प्रतिष्ठानपुर सपसे इंसा जाना (आदि०८।१८)। मृत्युको प्राप्त ( सी), प्रयाग, कम्बल और अश्वतर नाग तथा भोगवती हुई प्रमद्वराका पतिकी आयुसे जीवित होना (आदि. तीर्थ ब्रह्माजीकी वेदी है । उस तीर्थ में वेद और यज्ञ ९।१५) ।
मूर्तिमान् होकर रहते हैं तथा प्रजापतिकी उपासना करते प्रमाणकोटि-गङ्गाके तटपर स्थित एक तीर्थ, जहाँ प्रमाण- हैं । तपोधन ऋषि, देवता तथा चक्रवर्ती सम्राट् वहाँ
कोटि नामसे प्रसिद्ध एक विशाल वट-वृक्ष था । यहीं यशोद्वारा भगवान्का यजन करते हैं। इसीलिये तीनों दुर्योधन ने भीमसेनको विष खिलाकर गङ्गाजलमें डाल दिया
लोकों में प्रयागको सब तीर्थोकी अपेक्षा श्रेष्ठ एवं पुण्यतम था (आदि० ६१ । ११; आदि० १२७ । ५४) । यहाँ
बताया गया है। इस तीर्थमें जाने अथवा इसका नाम प्रथम दिन पाण्डवोका रात्रि-वास (वन०। । ४१-४२)
लेनेमात्रसे भी मनुष्य मृत्युकालके भय और पापसे मुक्त
हो जाता है ( वन० ८५ । ६९-८०)। प्रयागके प्रमाथ-यमरानद्वारा स्कन्दको दिये गये दो पार्षदोंमेंसे एक
विश्वविख्यात त्रिवेणी-सङ्गममें स्नान करनेसे राजसूय और दूसरेका नाम उन्माय था (शल्य० ४५ । ३०)।
अश्वमेध योंके फलकी प्राप्ति होती है । यह देवताओंद्वारा प्रमाथी-(१) धृतराष्ट्र के सौ पुत्रोंमेंसे एक ( आदि.
संस्कार की हुई यज्ञभूमि है । यहाँ दिया हुआ थोड़ा सा ११६ । १३)। इसका भीमसेनके साथ युद्ध तथा उनके भी दान महान् होता है । प्रयागमें ही साठ करोड़ दस द्वारा वध (द्रोण. १५७ । १७-१९) । (२) यह
हजार तीर्थों का निवास है। चारों विद्याओंके ज्ञानसे तथा दूषण राक्षसका छोटा भाई था ( वन० २८६ । २७)। सत्यभाषणसे जो पुण्य होता है, वह सब गङ्गा-यमुनाके इसका लक्ष्मणके साथ युद्ध करते समय वानर-सेनापति
सङ्गममें स्नान करनेमात्रसे प्राप्त हो जाता है। यहाँ वासुकिका नीलद्वारा मारा जाना ( वन० २८७ । २२-२७)। भोगवती नामक उत्तम तीर्थ है। जो उसमें स्नान करता (३) घटोत्कच का साथी एक राक्षस, जिसका दुर्योधन
है, उसे अश्वमेध यज्ञका फल मिलता है । प्रयागमें ही द्वारा वध हुआ या (भीष्म० ९१ । २०-२१)। हंसप्रपतन नामक तीर्थ है और वहीं गङ्गाके तटपर प्रमाथिनी-एक अप्सरा, जिसने अर्जुनके जन्मोत्सवमें पधार- दशाश्वमेधिक तीर्थ है । प्रयागमें गङ्गास्नानका महत्व सबसे कर नृत्य किया था (श्रादि१२२। ६३)।
अधिक है (वन० ८५। ८१--८८)। गङ्गा-यमुनाका प्रमुव-दक्षिण दिशामें रहनेवाले एक महर्षि (शान्ति.
पुण्यमय सङ्गम सम्पूर्ण जगत्में विख्यात है । बड़े-बड़े
महर्षि उसका सेवन करते हैं। यहाँ पूर्वकालमें पितामह २०८ । २९)।
ब्रह्माजीने यज्ञ किया था। उनके उस प्रकृष्ट यागसे ही इस प्रमोद-(१) ऐरावत कुलमें उत्पन्न हुआ एक नाग, जो
स्थानका नाम प्रयाग हो गया (वन० ८७ । १८-१९)। जनमेजयके सर्पसत्र में जल मरा था (आदि. ५७ । ११)।
पाण्डवोंने देवताओंकी यज्ञभूमि प्रयागमें पहुँचकर यहाँ (२) स्कन्दका एक सैनिक ( शल्य० ४५ । ६५)।
गङ्गा-यमुनाके सङ्गममें स्नान किया और कुछ दिनोंतक वे प्रम्लोचा-दस प्रमुख अप्सराओंमेंसे एक । यह अर्जुनके वहाँ उत्तमतपस्यामें लगे रहे (वन०९५। ४-५)। प्रयाग
जन्म-महोत्सवमें वहाँ गयी थी (आदि. १२२ । ६५)। राजमें माधमासकी अमावास्याको तीन करोड़ दस हजार यह कुबेरकी सभामें रहकर उनकी उपासना करती है तीर्थोंका समागम होता है (अनु० २५ । ३५-३६)। (सभा० १०।११)।
प्रयत-एक देव-गन्धर्व, जो कश्यपद्वारा मुनिके गर्भसे उत्पन्न प्रयाग-गङ्गा और यमुनाके सङ्गमपर स्थित एक विख्यात
हुआ था (भादि. ६५ । ४३)। तीर्थ, वहाँ गङ्गा-यमुनाके सङ्गममें स्नान करनेवाला पुरुष पक-राक्षसों और पिशाचोंका दल (वन० २८५ । दस अश्वमेध यज्ञोंका फल पाता और अपने कुलका उद्धार कर देता है (वन० ८४ । ३५)। महर्षियोंद्वारा प्रशंसित
१२)। प्रयाग-तीर्थमें ब्रह्मा आदि देवता, दिशा दिक्पाल, लोक
प्रलम्ब-(१) कश्यप और दनुसे उत्पन्न एक प्रसिद्ध पाल, साध्य, लोकसम्मानित पितर, सनकुमार आदि
दानव (आदि० ६५ । २९)। (२) एक असुर, महर्षि, अङ्गिरा आदि निर्मल ब्रह्मर्षि, नाग, सुपर्ण, सिद्ध,
जिसे भीकृष्णके अभिन्नस्वरूप बलराम जीने मारा था सूर्य, नदी, समुद्र, गन्धर्व, अप्सरा तथा ब्रह्माजीसहित (द्रोण. ११ । ५; शल्य० ४७ । १३)। भगवान् विष्णु निवास करते हैं। वहाँ तीन अग्निकण्ड है, प्रवरा-एक प्रमुख नदी, जिसका जल भारतवासी पीते है जिनके बीचसे गङ्गा बहती हैं। यहाँ यमुना गङ्गाके साथ (भीष्म०९।२३)।
म. ना०२७
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