SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 213
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रमाणकोटि प्रवरा केशद्वारा इसके लालन-पालन, नामकरण एवं विवाहकी मिली हैं। गङ्गा-यमुनाका मध्यभाग पृथ्वीका जघन माना कथा (आदि० ५। १०; आदि०८।५-१५)। इसका गया है। प्रयाग जघनस्थानीय उपस्थ है। प्रतिष्ठानपुर सपसे इंसा जाना (आदि०८।१८)। मृत्युको प्राप्त ( सी), प्रयाग, कम्बल और अश्वतर नाग तथा भोगवती हुई प्रमद्वराका पतिकी आयुसे जीवित होना (आदि. तीर्थ ब्रह्माजीकी वेदी है । उस तीर्थ में वेद और यज्ञ ९।१५) । मूर्तिमान् होकर रहते हैं तथा प्रजापतिकी उपासना करते प्रमाणकोटि-गङ्गाके तटपर स्थित एक तीर्थ, जहाँ प्रमाण- हैं । तपोधन ऋषि, देवता तथा चक्रवर्ती सम्राट् वहाँ कोटि नामसे प्रसिद्ध एक विशाल वट-वृक्ष था । यहीं यशोद्वारा भगवान्का यजन करते हैं। इसीलिये तीनों दुर्योधन ने भीमसेनको विष खिलाकर गङ्गाजलमें डाल दिया लोकों में प्रयागको सब तीर्थोकी अपेक्षा श्रेष्ठ एवं पुण्यतम था (आदि० ६१ । ११; आदि० १२७ । ५४) । यहाँ बताया गया है। इस तीर्थमें जाने अथवा इसका नाम प्रथम दिन पाण्डवोका रात्रि-वास (वन०। । ४१-४२) लेनेमात्रसे भी मनुष्य मृत्युकालके भय और पापसे मुक्त हो जाता है ( वन० ८५ । ६९-८०)। प्रयागके प्रमाथ-यमरानद्वारा स्कन्दको दिये गये दो पार्षदोंमेंसे एक विश्वविख्यात त्रिवेणी-सङ्गममें स्नान करनेसे राजसूय और दूसरेका नाम उन्माय था (शल्य० ४५ । ३०)। अश्वमेध योंके फलकी प्राप्ति होती है । यह देवताओंद्वारा प्रमाथी-(१) धृतराष्ट्र के सौ पुत्रोंमेंसे एक ( आदि. संस्कार की हुई यज्ञभूमि है । यहाँ दिया हुआ थोड़ा सा ११६ । १३)। इसका भीमसेनके साथ युद्ध तथा उनके भी दान महान् होता है । प्रयागमें ही साठ करोड़ दस द्वारा वध (द्रोण. १५७ । १७-१९) । (२) यह हजार तीर्थों का निवास है। चारों विद्याओंके ज्ञानसे तथा दूषण राक्षसका छोटा भाई था ( वन० २८६ । २७)। सत्यभाषणसे जो पुण्य होता है, वह सब गङ्गा-यमुनाके इसका लक्ष्मणके साथ युद्ध करते समय वानर-सेनापति सङ्गममें स्नान करनेमात्रसे प्राप्त हो जाता है। यहाँ वासुकिका नीलद्वारा मारा जाना ( वन० २८७ । २२-२७)। भोगवती नामक उत्तम तीर्थ है। जो उसमें स्नान करता (३) घटोत्कच का साथी एक राक्षस, जिसका दुर्योधन है, उसे अश्वमेध यज्ञका फल मिलता है । प्रयागमें ही द्वारा वध हुआ या (भीष्म० ९१ । २०-२१)। हंसप्रपतन नामक तीर्थ है और वहीं गङ्गाके तटपर प्रमाथिनी-एक अप्सरा, जिसने अर्जुनके जन्मोत्सवमें पधार- दशाश्वमेधिक तीर्थ है । प्रयागमें गङ्गास्नानका महत्व सबसे कर नृत्य किया था (श्रादि१२२। ६३)। अधिक है (वन० ८५। ८१--८८)। गङ्गा-यमुनाका प्रमुव-दक्षिण दिशामें रहनेवाले एक महर्षि (शान्ति. पुण्यमय सङ्गम सम्पूर्ण जगत्में विख्यात है । बड़े-बड़े महर्षि उसका सेवन करते हैं। यहाँ पूर्वकालमें पितामह २०८ । २९)। ब्रह्माजीने यज्ञ किया था। उनके उस प्रकृष्ट यागसे ही इस प्रमोद-(१) ऐरावत कुलमें उत्पन्न हुआ एक नाग, जो स्थानका नाम प्रयाग हो गया (वन० ८७ । १८-१९)। जनमेजयके सर्पसत्र में जल मरा था (आदि. ५७ । ११)। पाण्डवोंने देवताओंकी यज्ञभूमि प्रयागमें पहुँचकर यहाँ (२) स्कन्दका एक सैनिक ( शल्य० ४५ । ६५)। गङ्गा-यमुनाके सङ्गममें स्नान किया और कुछ दिनोंतक वे प्रम्लोचा-दस प्रमुख अप्सराओंमेंसे एक । यह अर्जुनके वहाँ उत्तमतपस्यामें लगे रहे (वन०९५। ४-५)। प्रयाग जन्म-महोत्सवमें वहाँ गयी थी (आदि. १२२ । ६५)। राजमें माधमासकी अमावास्याको तीन करोड़ दस हजार यह कुबेरकी सभामें रहकर उनकी उपासना करती है तीर्थोंका समागम होता है (अनु० २५ । ३५-३६)। (सभा० १०।११)। प्रयत-एक देव-गन्धर्व, जो कश्यपद्वारा मुनिके गर्भसे उत्पन्न प्रयाग-गङ्गा और यमुनाके सङ्गमपर स्थित एक विख्यात हुआ था (भादि. ६५ । ४३)। तीर्थ, वहाँ गङ्गा-यमुनाके सङ्गममें स्नान करनेवाला पुरुष पक-राक्षसों और पिशाचोंका दल (वन० २८५ । दस अश्वमेध यज्ञोंका फल पाता और अपने कुलका उद्धार कर देता है (वन० ८४ । ३५)। महर्षियोंद्वारा प्रशंसित १२)। प्रयाग-तीर्थमें ब्रह्मा आदि देवता, दिशा दिक्पाल, लोक प्रलम्ब-(१) कश्यप और दनुसे उत्पन्न एक प्रसिद्ध पाल, साध्य, लोकसम्मानित पितर, सनकुमार आदि दानव (आदि० ६५ । २९)। (२) एक असुर, महर्षि, अङ्गिरा आदि निर्मल ब्रह्मर्षि, नाग, सुपर्ण, सिद्ध, जिसे भीकृष्णके अभिन्नस्वरूप बलराम जीने मारा था सूर्य, नदी, समुद्र, गन्धर्व, अप्सरा तथा ब्रह्माजीसहित (द्रोण. ११ । ५; शल्य० ४७ । १३)। भगवान् विष्णु निवास करते हैं। वहाँ तीन अग्निकण्ड है, प्रवरा-एक प्रमुख नदी, जिसका जल भारतवासी पीते है जिनके बीचसे गङ्गा बहती हैं। यहाँ यमुना गङ्गाके साथ (भीष्म०९।२३)। म. ना०२७ For Private And Personal Use Only
SR No.020461
Book TitleMahabharat Ki Namanukramanika Parichay Sahit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVasudevsharan Agarwal
PublisherVasudevsharan Agarwal
Publication Year1959
Total Pages414
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy