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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra प्रवसु www.kobatirth.org ( २१० ) प्रवसु-ये महाराज ईलिनके द्वारा रथन्तरीके गर्भसे उत्पन्न हुए थे, इनके चार भाई और थे— दुष्यन्त, शूर, भीम तथा वसु ( आदि० ९४ । १७-१८ ) । प्रवह-प्राण, अपान आदि वायुभेदोंमें सातवाँ वायु, जो ऊर्ध्वगामी होता है ( शान्ति० ३०१ । २७ ) | यह धूम और गर्मी से उत्पन्न हुए बादलों को इधर-उधर चहाता है और प्रथम मार्ग में प्रवाहित होता है ( शान्ति० ३२८ । ३६)। प्रवालक-एक यक्ष, जो कुबेरकी सभामें रहकर उनकी उपासना करता है ( सभा० १०।१७ I प्रवाह-स्कन्दका एक सैनिक ( शल्य० ४५ | ६४ )। प्रवीर - (१) ये रुके पुत्र थे। इनकी माताका नाम पौष्टी था। इनके दो भाई और थे - ईश्वर और रौद्राश्व । इनके द्वारा शूरसेनी के गर्भ से मनस्यु नामक पुत्रका जन्म हुआ था ( आदि ० ९४ । ५-६ ) । इनका दूसरा नाम जनमेजय था । इन्होंने तीन अश्वमेध यज्ञों और विश्वजित् यज्ञका अनुष्ठान करके वानप्रस्थाश्रम ग्रहण किया था ( आदि० ९५ । ११) । (२) एक क्षत्रिय कुल, जिसमें वृषध्वज नामका कुलाङ्गार राजा उत्पन्न हुआ था ( उद्योग० ७४ । १६ ) । प्रवेणी - इस नदी के उत्तर तटपर कण्व मुनिका आश्रम है, जहाँ माटरका विजयस्तम्भ है ( वन० ८८ । ११ ) । प्रवेपन - तक्षक- कुलका एक नाग, जो जनमेजयके सर्पसत्र में जलकर भस्म हो गया ( आदि० ५७ ।९ ) । प्रशमी - अलकापुरीकी एक अप्सरा, जिसने अष्टावक्रके स्वागत समारोह में नृत्य किया था ( अनु० १९ । ४५ ) । प्रशस्ता - एक समुद्रगामिनी पुण्यमयी नदी, जहाँ तीर्थयात्रा के समय भाइयों सहित युधिष्ठिर गये थे और वहाँ उन्होंने स्नान, तर्पण, दान आदि किया था ( वन० ११८ । २–३ ) । प्रशान्तात्मा - सूर्यदेवका एक नाम ( वन० ३ । २७ )। प्रसन्धि-ये वैवस्वत मनुके पुत्र थे । इनके पुत्रका नाम क्षुप था ( आश्व ० ४ । २ ) । प्रसुह्म-एक प्राचीन देश, जिसे भीमसेनने पूर्वदिग्विजय के समय जीता था ( सभा० ३० । १६ ) । प्रसृत- एक दैत्य, जिसका गरुडद्वारा वध हुआ था ( उद्योग ० १०५ । १२ ) । प्रसेन - यह कर्णका पुत्र था । सात्यकिद्वारा इसका वध हुआ था ( कर्ण० ८२ । ६ )। पत्नी प्रसेनजित् - ( १ ) एक राजा, जो महाभौमकी सुयज्ञाके पिता थे। इन्होंने एक लाख सवत्सा गौओंका दान करके उत्तम लोक प्राप्त किया था ( आदि० ९५ । २०, Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir शान्ति० २३४ । ३६ ) । ये यमराजकी सभा में रद्दकर सूर्यपुत्र यमकी उपासना करते हैं ( सभा० ८ । २१ ) । (२) एक राजा, जो रेणुकाके पिता थे। इनके द्वारा जमदग्निको अपनी पुत्री रेणुकाका दान ( वन० ११६ । २ ) | ( किसी-किसीके मतमें सुयज्ञाके पिता और रेणुकाके पिता एक ही हैं ) । ( ३ ) एक यादव, जो सत्राजित् के भाई थे । ये दोनों भाई जुड़वें पैदा हुए थे और कुबेरोपम सद्गुणोंसे सम्पन्न थे । इनके पास जो स्यमन्तकमणि थी, वह प्रतिदिन प्रचुर सुवर्णराशि झरती रहती थी ( सभा० १४ । ६० के बाद दा० पाठ ) । प्रस्थल - एक कर्ण ४७ )। प्रह्लाद अत्यन्त निन्दित देश, जिसका वर्णन शल्यके प्रति किया था ( कर्ण० ४४ । प्रस्थला - सुशर्माकी राजधानी ( भीष्म० ११३ । ५२ ) । प्रहस्त - रावण के परिवारका एक राक्षस, जिसने विभीषण के साथ युद्ध किया था ( वन० २८५ । १४ ) । विभीषणद्वारा इसका वध ( वन० २८६ । ४ ) । For Private And Personal Use Only प्रहास- ( १ ) धृतराष्ट्र-वंश में उत्पन्न एक नाग, जो जनमेजय के सर्पसत्र में स्वाहा हो गया (आदि० ५७ । १६ ) । ( २ ) स्कन्दका एक सैनिक ( शल्य० ४५ । ६८ ) । प्रह्लाद - ( १ ) हिरण्यकशिपुका प्रथम पुत्र । इनकी माताका नाम कयाधु था । इनके तीन पुत्र थे विरोचन, कुम्भ और निकुम्भ ( आदि० ६५ । १७-१९ ) । ये वहणसभामें रहकर वरुणकी उपासना करते हैं ( सभा० ९ | १२ ) । ब्रह्माजी की सभा में भी उनकी सेवा के लिये उपस्थित होते हैं ( सभा० ११ १९ ) । विदुरका इनका दृष्टान्त प्रस्तुत करना ( सभा० ६८ । ६५६६ ) । इनके द्वारा बलिके प्रति तेज और क्षमाके अवसरका वर्णन ( वन० २८ । ६-३३ ) । विरोचन और सुधन्वा संवादमें इनका निर्णय ( उद्योग ०६५ । ३५-३६ ) । ब्राह्मण-वेषमें शिष्यरूपसे प्रार्थना करनेपर इनके द्वारा इन्द्रको शीलका दान ( शान्ति० २८- ६२ ) | उशनाने इन्हें दो गाथाएँ सुनार्थी (शान्ति० १३९ । ७०-७२ ) । इनका एक अवधूतसे आजगरवृत्तिकी प्रशंसा सुनना ( शान्ति० १७९ अध्याय ) | इनका इन्द्रके साथ संवाद शान्ति० २२२ । ९(३५) । ये पृथ्वीके प्रधान शासकों में से एक हैं ( शान्ति० 1)। स्कन्दकी गाड़ी हुई शक्तिके उखाड़ने में इनका असफल होना ( शान्ति० ३२७ । १८-१९ ) । महाभारतमें आये हुए प्रह्लाद के नाम -- असुराधिपः १२४ । २२७ । ५०
SR No.020461
Book TitleMahabharat Ki Namanukramanika Parichay Sahit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVasudevsharan Agarwal
PublisherVasudevsharan Agarwal
Publication Year1959
Total Pages414
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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