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पुलिन्द
( २०१ )
पुष्कर
भीमजी के पास आये हुए ऋषियोंमें ये भी थे ( अनु० पुष्कर - ( १ ) क्षेत्र । तीर्थगुरु ( आदि० २२० | १४)। २६ । ४ ) ।
( यह तीर्थ अजमेर से छः कोसकी दूरीपर उत्तर दिशामें है । इसके सम्बन्धमें पुराणोंमें ऐसी प्रसिद्धि है कि ब्रह्माजीने इस स्थानपर यश किया था। यहाँ ब्रह्माजीका एक मन्दिर है । पद्म और नारदपुराण में इस तीर्थका बहुत कुछ माहात्म्य मिलता है । पद्मपुराण में लिखा है कि एक बार पितामह ब्रह्मा हाथमें कमल लिये यज्ञ करने की इच्छासे इस सुन्दर पर्वतप्रदेशमें आये और यहाँ कमल उनके हाथसे गिर पड़ा । उसके गिरने से ऐसा शब्द हुआ कि सब देवता काँप उठे । जब देवता ब्रह्मासे पूछने लगे, तब ब्रह्माने कहा - बालकोंका घातक वज्रनाभ असुर रसातलमें तप करता था। वह तुमलोगों का संहार करने के लिये यहाँ आना ही चाहता था कि मैंने कमल गिराकर उसे मार डाला । तुमलोगों की बड़ी भारी विपत्ति दूर हुई। इस पद्मके गिरनेके कारण इस स्थानका नाम पुष्कर होगा । यह परम पुण्यप्रद महातीर्थ होगा ।" साँची से मिले हुए एक शिलालेखसे यह पता लगता है कि ईसासे तीन सौ वर्ष से भी और पहले यह तीर्थस्थान प्रसिद्ध था - ( हिंदी शब्दसागर से ) | ( यहाँ ब्रह्मा, सावित्री, बदरीनारायण और वराहजीके मन्दिर प्रसिद्ध हैं | ) अर्जुनने अपने वनवासका शेष समय यहीं व्यतीत किया था ( आदि० २२० । १४ ) । पुलस्त्यजीद्वारा इसका विशेष वर्णन ( वन० ८२ । २० - ४० ) । धौम्यद्वारा इसके माहात्म्य का वर्णन ( वन० ८९ । १६-१८ ) । पुष्कर में जाकर मृत्युने घोर तप किया था ( द्रोण० ५४ । २६) । यहाँ ब्रह्माजीका यज्ञ हुआ था, जिसमें सरस्वती सुप्रभा नामसे प्रकट हुई थी ( शल्य० ३८ । ५- १४ )। पुष्कर में जाकर दान देना, भोगोंका त्याग करना, शान्तभावसे रहना, तपस्या और तीर्थके जलसे तन-मनको पवित्र करना चाहिये ( शान्ति० २९७ । ३७ ) । यहाँ स्नान करने से मनुष्य विमानपर बैठकर स्वर्गलोक में जाता है और अप्सराएँ स्तुति करती हुई जगाती हैं ( अनु० २५ ॥ ९) । ( २ ) वरुणदेव के प्रिय पुत्र, इनके नेत्र विकसित कमल के समान दर्शनीय हैं; इसीलिये सोमकी पुत्रीने इनका पतिरूपसे वरण किया है ( उद्योग० ९८ । १२ ) । ( ३ ) ये राजा नलके छोटे भाई थे ( वन० ५२ । ५६) | इन्हें कलियुगका राजा नलके साथ जुआ खेलने के लिये आदेश देना ( वन० ५९ । ४ ) । इनका राजा नलके साथ जुआ खेलना ( वन० ५९ । ९ ) । पुष्करने राजा नलका सर्वस्व जीत लिया था ( वन० ६१ । १ ) । इनका राजा नलके साथ पुनः जूआ खेलना और सर्वस्व हारना ( वन० ७८ । ४ -२० ) । नलसे क्षमा माँगकर इनका अपनी राजधानीको लौट जाना (वन० ७८ । २७
पुलिन्द - ( १ ) एक देश तथा वहाँके निवासी । ये सिजी गौ नन्दिनी के कुपित होनेपर उसके पेन से उत्पन्न हुए थे ( आदि० १७४ । ३८ ) । भीमसेनने पुलिन्द देशपर धावा करके वहाँके महान् नगर तथा उस देश के राजा सुकुमार और सुमित्रको जीत लिया था ( सभा० २९ । १० ) । सहदेवने भी इस देश के राजा सुकुमार और सुमित्रको वामें कर लिया था ( सभा० ३१ । ४ ) | ये उन म्लेच्छ जातियों में हैं, जो कलियुगमें पृथ्वीके शासक होंगे ( वन० १८८ । ३५) । ये दुर्योधन की सेना में आये थे ( उद्योग ० १६० | १०३; उद्योग० १६१ । २१ ) | यह एक भारतीय जनपद है ( भीष्म० ९ । ३९, ६२ । इनका पाण्डयनरेश के साथ युद्ध हुआ और उनके बाणोंद्वारा मारे गये ( कर्ण० २० | १० - १२ ) । इनकी गणना क्षत्रियोंमें थी; परंतु ब्राह्मणोंकी कृपासे वञ्चित होनेके कारण ये शूद्र हो गये ( अनु० ३३ । २२ । २३ । ) । (२) यह किरातोंका राजा था और युधिष्ठिरकी सभा में बैठता था ( सभा० ४ । २४ ) ।
पुलोमा - ( १ ) भृगु ऋषिकी पत्नी ( आदि० ५ । १३ ) । पुलोमा नामक राक्षसके द्वारा इनका हरण होना ( आदि ० ६ । १) । इनके गर्भसे च्यवन मुनिका जन्म ( आदि० ६ । २ ) । इनकी विस्तृत कथा ( आदि० ५ । १३ से ६ । १३ तक ) | ( २ ) एक राक्षस | इसके द्वारा भृगुपत्नी पुलोमाका हरण होना ( आदि० ५ । १९ ) । इसका कुपित हुए च्यवन के तेजसे भस्म होना ( आदि० ६ । ३) । ( ३ ) कश्यप और दनुसे उत्पन्न एक प्रसिद्ध दानव ( आदि० ६५ | २२ ) | यह धन-रत्नोसहित इस पृथ्वी के महान् शासकों में से एक था ( शान्ति० १२७ । ४९-५० ) । ( ४ ) दैत्यकुलकी एक कन्या, जिसके पुत्रोंको 'पौलोम' कहते हैं । इसने और कालकाने भारी तपस्या करके ब्रह्माजी से यह वर माँगा था कि 'हमारे पुत्रोंका दुःख दूर हो जाय । हमारे पुत्र देवता, राक्षस तथा नागों के लिये भी अवध्य हों । इनके रहने के लिये एक सुन्दर नगर होना चाहिये, जो अपने महान् प्रभापुञ्जसे जगमगा रहा हो । वह नगर विमानकी भाँति आकाशमें विचरनेवाला हो और उसमें नाना प्रकारके रत्नोंका संचय रहना चाहिये। देवता आदि उसका विध्वंस न कर सकें ( वन० १७३ । ७-१२ ) ।
म० ना० २६
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