Book Title: Mahabharat Ki Namanukramanika Parichay Sahit
Author(s): Vasudevsharan Agarwal
Publisher: Vasudevsharan Agarwal

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Page 204
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पुरुमीढ ( २०० ) पुलह योद्धाओंकी गणनामें इसका भी नाम था ( कर्ण ७।१४)। पुरुमीढ--सम्राट् सुहोत्रके तृतीय पुत्र, माताका नाम ऐक्ष्वाकी। इनके दो भाई और थे अजमीढ और सुमीढ (आदि० ९४ । ३०)। पुरुषादक-एक प्राचीन देश (सभा० ५१ । १७)। पुरुषोत्तम भगवान् श्रीकृष्णका एक नाम । ये सर्वत्र परिपूर्ण हैं तथा सबके निवासस्थान है। इसलिये पुरुष हैं। सब पुरुषों में उत्तम होनेके कारण पुरुषोत्तम कहलाते हैं ( उद्योग०७० । ११-१२)। पुरूरवा-(१) ये (चन्द्र पुत्र ) बुधके द्वारा इलाके गर्भसे उत्पन्न हुए थे (आदि. ७५ । १८-१९ द्रोण. १४४ । ४)। ब्राह्मणोंके प्रति इनका अत्याचार ( आदि० ७५ । २०-२१ ) । ब्राह्मणोंद्वारा इनका विनाश ( आदि. ७५ । २२) । उर्वशीके गर्भसे इनके द्वारा क्रमशः आयु, धीमान्, अमावसु, दृढ़ायु, वनायु और शतायु नामक छः पुत्रोंका जन्म (आदि०७५ । २४-२५)। इनका वायुदेवसे चारों वर्णोंकी उत्पत्ति तथा ब्राह्मणकी श्रेष्ठताके विषयमें प्रश्न करना ( शान्ति० ७२ । ३)। पुरोहितके विषयमें कश्यपजीके साथ इनका संवाद (शान्ति० ७३ । ७-३२)। इक्ष्वाकुद्वारा इन्हें खड्गकी प्राप्ति हुई थी और इन्होंने उसे आयुको प्रदान किया था (शान्ति. १६६ । ७३-७४) । ब्राह्मणोंके आशीर्वादसे इनकी स्वर्ग: प्राप्तिकी चर्चा ( अनु० ६।३१ ) । गोदान-महिमाके प्रसङ्गमें इनका नामनिर्देश ( अनु० ७६ । २६)। इन्होंने अपने जीवन में कभी मांस नहीं खाया ( अनु० ११५ । ६५)। (२) दीप्ताक्षवंशका एक कुलपांसन राजा (उद्योग०७४ । १५)। पुरोचन-यह दुर्योधनका मन्त्री था । दुर्योधन का इसको 'वारणावत' नगरमें लाक्षागृह बनवानेका आदेश देकर भेजना ( आदि० १४३ । २-१७ )। इसके द्वारा लाक्षागृहका निर्माण ( आदि. १४३।११)। इसका पाण्डवोंको अपने डेरेपर लाकर स्वागत-सत्कार करके आदरपूर्वक निवास देना ( आदि० १४५। ९-१०)। पाण्डवोंसे उस नये गृह (लाक्षागृह ) की चर्चा करके उनको सेवक-सामग्रियोसहित उसमें ( लाक्षागृहमें ) लाकर ठहराना ( आदि. १४५ | ११-१२)। इसका लाक्षागृह में दग्ध होना ( आदि०६१ । २३, आदि. १४९ । २)। पुलस्त्य-ये ब्रह्माजीके मानस पुत्र हैं ( आदि० ६५ । १०; वन० २७४ । १२)। छः शक्तिशाली महर्षियोंमें इनका भी नाम है (आदि. ६६ । ४) । बुद्धिमान् पुलस्त्य मुनिके पुत्र राक्षस, वानर, किन्नर और यक्ष हैं ( आदि. ६६ । ७) । ये अर्जुनके जन्ममहोत्सवमें भी पधारे थे (आदि० १२२ । ५२ ) । पराशरजीके राक्षस-सत्रमें महर्षियों के साथ इनका आना और पराशरजीको समझाकर उस सत्रको बंद करनेके लिये कहना ( आदि० १८० । ९-२०)। ये इन्द्रकी सभामें बैठते हैं (सभा० ७ । १७)। ये ब्रह्माजीकी सभामें रहकर उनकी उपासना करते हैं (सभा० ११ । १९)। इनके द्वारा भीष्मसे विभिन्न तीर्थों का फलादेशपूर्वक वर्णन ( वन० अध्याय ८२ से ८५ । ११॥ तक)। इनकी पत्नीका नाम गौ था। उनके गर्भसे इनके द्वारा वैश्रवण (कुबेर ) का जन्म हुआ था (वन० २७४ । १२)। इन्होंने अपने आधे शरीरसे विश्रवा नामक पुत्र उत्पन्न किया था (आदि० २७४ । १३.१४)। स्कन्दके जन्ममहोत्सवके अवसरपर ये भी पधारे थे (शल्य. ४५ । ९) । शरशय्यापर पड़े हुए भीष्मके पास आये हुए ऋषियोंमें ये भी थे (शान्ति० ४७ । १०) । इक्कीस प्रजापतियोंमें भी इनका नाम है (शान्ति० ३३४ । ३५) । चित्रशिखण्डी नामवाले सात ऋषियोंमें एक ये भी हैं ( शान्ति. ३३५ । २९) । ये आठ प्रकृतियों से एक हैं (शान्ति० ३४० । ३४-३५)। प्रयाणके समय भीष्मजीके पास ये भी आये थे ( अनु० २६ । ४)। (महाभारतमें इनके ब्रह्मर्षि, ब्रह्मयोनि और विप्रर्षि आदि नामोंका भी उल्लेख मिलता है।) पुलह-ये ब्रह्माजीके मानस पुत्र हैं (आदि० ६५ । १०; वन० २७४ । १२)। छः शक्तिशाली महर्षियोंमें इनका भी नाम है ( आदि० ६६ । ४)। पुलहके शरभ, सिंह, किम्पुरुष, व्याघ्र, रोछ, ईहामृग (भेड़िया) जातिके पुत्र हुए (आदि० ६६ । ८)। ये अर्जुनके जन्मसमय पधारे थे (आदि० १२२ । ५२)। पराशरजीके राक्षससत्रमें महर्षियोंके साथ इनका आगमन (आदि० १८०।९)। ये इन्द्र की सभामें विराजते हैं (सभा०७।१७)। ब्रह्माजीकी सभामें रहकर ये उनकी उपासना करते हैं ( सभा० ११ । १८) । अलकनन्दा गङ्गाके तटपर ये जप और स्वाध्याय करते हैं (वन० १६२।६)। स्कन्दके जन्ममहोत्सवमें ये भी पधारे थे (शल्य० ४५ । ९)। इक्कीस प्रजापतियोंमें एक ये भी हैं (शान्ति० ३३४ । ३५)। चित्रशिखण्डी नामक सात ऋषियोंमें भी इनका नाम है (शान्ति० ३३५ । २९)। आठ प्रकृतियोंमें इनका नाम है (शान्ति० ३४० । ३४-३५)। प्रयाणके समय For Private And Personal Use Only

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