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दीर्घजित
( १४२ )
दुःशासन
दीर्घजिह्व-महर्षि कश्यपद्वारा दनुके गर्भसे उत्पन्न एक
दानव (आदि०६५। ३०)। दीर्घजिला-स्कन्दकी अनुचरी मातृका (शल्य० ४६।२३)। दीर्घतमा-एक मुनि, जो देवराज इन्द्रकी सभामें रहकर
उन बज्रधारी देवेन्द्रकी उपासना करते हैं (सभा० ७।१)। ये पश्चिम दिशाका आश्रय लेकर रहनेवाले
ऋषि हैं (अनु. १६५। ४२)। दीर्घप्रश-एक क्षत्रिय नरेश, जो वृषपर्वा नामक प्रसिद्ध
देत्यके अंशसे प्रकट हुआ था (आदि०६७।१६)। पाण्डवोंकी ओरसे इसे रण-निमन्त्रण भेजना निश्चित हुआ था ( उद्योग० ४ । १२)।
योगः । १२)। दीर्घबाहु-धृतराष्ट्र के सौ पुत्रोंसे एक (आदि०६७।१०५)।
भीमसेनके द्वारा इसका वध ( भीष्म० ९६ । २६)। दीर्घयश-अयोध्याके एक राजा, जिन्हें पूर्व-दिग्विजयके समय भीमसेनने कोमलतापूर्ण बर्तावसे ही अपने वशमें
कर लिया (सभा० ३०।२)। दीर्घरोमा-( दीर्घलोचन ) धृतराष्ट्र के सौ पुत्रोंमेंसे एक, (आदि० ११६ । १३)। भीमसेनद्वारा इसका वध
(मोण. १२७ । ६०)। दीर्घलोचन-(१) धृतराष्ट्र के सौ पुत्रों से एक (आदि.
६७ । १०४)। भीमसेनद्वारा इसका वध (भीष्म ९६ । २६-२७ ) । (२) (दीर्घरोमा) धृतराष्ट्रके सौ पुत्रोंमेंसे एक ( दि. ११६। १३)।भीमसेनद्वारा इसका वध (द्रोण. १२७ । ६०)। दीर्घसत्र-एक तीर्थ, जहाँकी यात्रा करनेमात्रसे मनुष्य राजसूय और अश्वमेध यज्ञोंके समान फल पाता है (वन०
८२ । १०४-११०)। दीर्घायु-कलिङ्गराज श्रुतायुका भाई, जो अर्जुनद्वारा मारा
गया (द्रोण० ९४ । २९)। दुःशल-धृतराष्ट्रके सौ पुत्रोंसे एक (आदि० ६७ ॥१३)।
भीमसेनद्वारा इसकी मृत्यु (द्रोण. १२९ । ३९ के
बाद दाक्षिणात्य पाठ)। दुःशला-धृतराष्ट्र और गान्धारीकी पुत्री तथा दुर्योधन
आदि सौ भाइयोंकी बहिन (आदि० ६७ । १०५)। सिंधुराज जयद्रथकी पत्नी (आदि०६७।१०९)। इसके जन्मकी कथा ( आदि० ११५ अध्याय )। पिताद्वारा जयद्रथके साथ इसका विवाह ( आदि० ११६ । १८)। दुःशलाका विचार करके युधिष्ठिरने द्रौपदीहरणके समय भाइयोको जयद्रथका वध न करनेकी आज्ञा दी थी (वन० २७१ । ४३)। अश्वमेधीय अश्वकी रक्षाके लिये त्रिगर्तदेशमें गये हुए अर्जुनके द्वारा
त्रिगर्तवीरोंको कष्ट पाते देख दुःशलाका युद्ध बंद करानेके लिये रणभूमिमें अपने शिशु पौत्र सुरथकुमारको लेकर आना और अर्जुनके पूछनेपर उनसे सुरथकी मृत्युका हाल बताना, विलाप करना और पार्थसे शान्ति एवं कृपाकी याचना करना ( आश्व० ७८ । २२-४१)। युधिष्ठिरका दुःशलाकी प्रसन्नताके लिये उसके बालक पौत्रको सिंधुदेशके राज्यपर अभिषिक्त करना ( आश्व.
८९ । ३५ )। दुःशासन-धृतराष्ट्रका एक महारथी पुत्र ( आदि. ६३ । ११९ )। यह पुलस्त्यकुलके राक्षसके अंशसे उत्पन्न हुआ था ( आदि० ६७ । ८९-९०, ९१॥ आदि० ११६ । २)। धृतराष्ट्र के चार प्रधान पुत्रोंमें इसे द्वितीय स्थान प्राप्त था (आदि० ९५ । ५.)। यह भाइयोंके साथ द्रौपदीके स्वयंवरमें गया था (आदि० १८५। १) युधिष्ठिरके राजसूय यज्ञमें यह भोजनकी देखभाल और परोसनेकी व्यवस्थामें नियुक्त था (सभा० ३५ । ५)। इसका द्रौपदीके केश पकड़कर उन्हें बलपूर्वक सभाभवनमें ले आना (सभा०६७।३१)। इसके द्वारा द्रौपदीका चीरहरण (सभा०६८।०)। द्रौपदीके वस्त्र खींचते समय राजाओंद्वारा इसपर विकारोंकी बौछार ( सभा० ६८ । ५६ )। इसके द्वारा पाण्डवोंका उपहास (सभा० ७७ । ३-१४) दैतवनमें गन्धर्वोद्वारा बंदी बनाया जाना (वन० २४२ । ७)। दुर्योधनद्वारा राजा बननेके आदेशपर उसे अस्वीकार करते हुए इसका भाईके दोनों पैर पकड़कर रोना (वन. २४९ । २९-३५)। दुर्योधनके वैष्णव यज्ञमें आनेके लिये पाण्डवोंके पास निमन्त्रण भेजना (वन० २५६ १८)। गुप्तचरोंको भेजकर पुनः पाण्डवों का पता लगानेके लिये सलाह देना ( विराट० २६ । १४-१८ )। विराटनगरके निकट अर्जुनके साथ युद्ध और पराजित होकर उसका भागना (विराट० ६१ । ३६-४०)। कौरव-सभामें दुर्योधनसे इसका अपने आपके, दुर्योधनके और कर्णके कैद होनेकी सम्भावना बताना (उद्योग. १२८ । २३-२४)। प्रथम दिनके संग्राममें नकुलके साथ इसका द्वन्द्वयुद्ध (भीष्म० ४५ । २२-२४)। अर्जुनके साथ द्वन्द्वयुद्ध और उनसे पराजित होना ( भीष्म ११०। २४-४६, भीष्म० १११। ५७-५८)। अर्जुनके साथ युद्ध में इसका घोर पराक्रम प्रकट करना (भीष्म०११७। १२-१९)। दुर्योधनसे अभिमन्युको मार डालनेकी प्रतिज्ञा करके युद्ध प्रारम्भ करना (द्रोण. ३९ । २४३१)। अभिमन्युद्वारा इसका मूञ्छित किया जाना (द्रोण० ४० । १३-१४) । अर्जुनके साथ युद्ध करके उनसे पराजित होकर भागना (द्रोण. ९० अध्याय)।
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