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पर्व संग्रहपर्व
युधिष्ठिरकी सभा में विराजते थे ( सभा ४ । १५ ) । ये इन्द्रसभा में भी रहते हैं (सभा ० ७ । १०) । गन्धर्वरूपसे कुबेरकी सभा में भी विराजते हैं (सभा० १० | २६ ) | ये नारदजीके साथ इन्द्रलोक में गये थे ( वन० ५४ । १४ ) । काम्यकवनमें पाण्डवोंके पास जाकर इन्होंने उन्हें शुद्धभावसे तीर्थयात्रा करनेके लिये आज्ञा दी थी वन० ९३ | १८-२० ) । राजा संजयकी कन्याको देखकर उसे प्राप्त करनेकी इच्छा करना ( द्रोण० ५५ । ९ - १० ) । उस कन्याका नारदजीद्वारा वरण हो जानेसे कुपित हुए इनके द्वारा नारदजीको शाप (द्रोण०५५ १४) । इनका रात्रियुद्ध में कौरव-पाण्डव सेनाओंमें दीपकका प्रकाश करना ( द्रोण० १६३ । १५ ) । ये नारदजीके भानजे थे- इन दोनों मुनियोंके उपाख्यानका श्रीकृष्णद्वारा वर्णन (शान्ति० ३० अध्याय ) । इनका राजा संजयको पुत्रप्रासिका वर देना ( शान्ति० ३१ । १६-१९ ) । अगस्त्यजीके कमलोंकी चोरी होनेपर शपथ खाना ( अनु० ९४ । ३४ ) । पर्वसंग्रह पर्व - आदिपर्वका एक अवान्तर पर्व ( अध्याय २ ) ।
पलाला - सात शिशु-माताओंमेंसे एक ( वन० २२८ । १०)।
पलाशवन - एक तीर्थभूत वन, जहाँ जमदग्निने यज्ञ किया
था । उस यज्ञमें श्रेष्ठ नदियाँ मूर्तिमती हो अपना अपना जल लेकर उन मुनिश्रेष्ठ के पास आयी थीं । उन्होंने वहाँ मधुसे ब्राह्मणोंको तृप्त किया था ( वन० ९४ । १६१९)। पलित-विडालोपाख्यानमें वर्णित एक चूहेका नाम (शान्ति ० १३८ । २१ ) । इसका लोमश नामक बिलावके साथ संवाद ( शान्ति० १३८ । ३४ - १९८ ) । पवनहद - कुरुक्षेत्र की सीमा में स्थित एक मरुद्गणतीर्थं । वहाँ स्नान करनेसे मनुष्य विष्णुलोक में प्रतिष्ठित होता है ( वन० ८३ । १०५ ) ।
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पवित्रपाणि- एक ऋषि, जो युधिष्ठिरकी सभा में विराजते थे ( सभा० ४ 1 ये इन्द्र-सभाके भी सभासद हैं ( सभा० ७ । १२ ) । पवित्रा भारतवर्षकी एक प्रमुख नदी, जिसका जल यहाँके वासी पीते हैं ( भीष्म० ९ । २१ ) ।
पशु - एक भारतीय जनपद ( भीष्म० ९ । ३७ ) । पशुदा - स्कन्दकी अनुचरी मातृका ( शल्य० ४६ । २८ ) ।
पशु भूमि - पशुपतिनाथका निकटवर्ती स्थान ( नेपाल ) । इस देशपर भीमसेनकी विजय ( सभा० ३० । ९ ) ।
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पाञ्चाल
पशुसख - सप्तर्षियों का सेवक एक शूद्र, जिसकी स्त्रीका नाम गाथा (अनु० ९३ । २२ ) । इसका वृषादर्भिसे प्रतिग्रहके दोष बताना (अनु० ९३ । ४७ ) । यातुधानी से अपने नामकी व्याख्या करना ( अनु० ९३ । १०० ) । मृणालकी चोरी के विषयमें शपथ खाना (अनु०९३ । १३१ ) । पश्चिम दिशा- चार दिशाओंमेंसे एक, इसका विशेष वर्णन ( उद्योग० ११० अध्याय) |
पह्नव - ( १ ) एक पश्चिम भारतीय जनपद ( भीष्म ०९ । ६८) । ( २ ) एक म्लेच्छ जाति, जो नन्दिनी नामक गौकी पूँछसे प्रकट हुई थी ( आदि० १७४ । ३६ ) । नकुलने इस देश और जातिके लोगोंको जीता था ( सभा० ३२ । १७ ) | ये लोग युधिष्ठिर के राजसूययज्ञमें उपहार लाये थे ( सभा० ५२ । १५ ) । ये मान्धाताके राज्य में निवास करते थे ( शान्ति० ६५ । १३-१४ )। पांशु - एक प्राचीन देश, जहाँसे राजा वसुदानने छन्बीस हाथी, दो हजार घोड़े और अन्य भेंट-सामग्री पाण्डवको समर्पित की थी ( सभा० ५२ । २७-२८ ) ।
पाक- एक असुर, जिसे इन्द्रने मारा था ( शान्ति० ९८ । ५०)।
पाखण्ड - एक दक्षिण भारतीय जनपद, जिसे सहदेवने दूतोंद्वारा ही वशमें कर लिया ( सभा० ३१।७० ) । पाञ्चजन्य- (१) रैवतक पर्वतका समीपवर्ती वन, जिसकी बड़ी शोभा होती है ( सभा० ३८ | २९ के बाद दा० पाठ पृष्ठ ८१३) । ( २ ) भगवान् श्रीकृष्णका शङ्ख ( सभा० ३८ | २९ के बाद दा० पाठ पृष्ठ ८१८ ) । शाल्वके साथ युद्ध करते समय श्रीकृष्णद्वारा पाञ्च जन्य शङ्खका बजाया जाना ( वन० २० । १३ ) । कुरुक्षेत्र समराङ्गणमें भगवान् श्रीकृष्णने अपना पाचजन्य नामक शङ्ख बजाया था ( भीष्म० २५ । १५ ) । (३) पाँच ऋषियोंके अंश से उत्पन्न एक अग्नि । इसका दूसरा नाम तप था ( वन० २२० । ५, ११ ) । पाञ्चरात्र - एक उत्तम शास्त्र, जिसके जाननेवाले महर्षि राजा
उपरिचर वसुके यहाँ रहते थे । इसकी उत्पत्तिका प्रसंग ( शान्ति० ३३५ । २५-५५ ) ।
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पाञ्चाल - ( १ ) एक प्राचीन देश । द्रुपद यहीं के राजा थे । द्रौपदीको प्राप्त करने के बाद पाण्डवोंने यहाँ सालभर तक निवास किया था ( आदि० ६१ । ३१ ) । ( विशेष देखिये पञ्चाल ) (२) एक प्राचीन ऋषि, जिन्होंने वामदेवके बताये हुए ध्यानमार्ग से भगवान् की आराधना करके उन्हींके कृपाप्रसादसे वेदका क्रमविभाग प्राप्त किया था ( शान्ति० ३४२ । १०२-१०३ ) ।