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पाश्चाली
( १९२ )
पाण्डव
पाश्चाली-राजा द्रुपदकी पुत्री, जो अग्निकुण्डसे उत्पन्न
हुई थी (आदि. १६६।४४)। (देखिये--द्रौपदी)। पाञ्चाल्य-उत्तराखण्डका एक तीर्थभूत आश्रम (वन०९०।
११-१२)। पाटलावती-भारतवर्षकी एक प्रमुख नदी, जिसका जल
भारतके लोग पीते हैं ( भीष्म० ९ । २२)। पाणिकूर्च-स्कन्दका एक सैनिक (शल्य० ४५ । ७६)। पाणिखात-कुरुक्षेत्रकी सीमा में स्थित एक तीर्थ, जहाँ स्नान करके देवता-पितरोंका तर्पण करनेसे अग्निष्टोम, अतिरात्र
और राजसूय यज्ञोका फल मिलता है (वन००३ । ८९)। पाणिमान्-एक नाग, जो वरुणकी सभामें उपस्थित हो उनकी
उपासना करता है ( सभा० ९ । १०)। पाणीतक-पूषाद्वारा स्कन्दको दिये गये दो पार्षदोंमेंसे एक।
दूसरेका नाम कालिक था ( शल्य० ४५ । ४३)। पाण्डर-ऐरावतकुलमें उत्पन्न हुआ एक नाग, जो जनमेजय
के सर्पसत्रमें जल मरा था ( आदि० ५७ । ११)। पाण्डव-पाण्डुके पुत्र | युधिष्ठिर, भीम, अर्जुन, नकुल
तथा सहदेव-ये पाँचों पाण्डव कहलाते थे । शतशृङ्गनिवासी ऋषियोंद्वारा पाण्डवोंके नामकरण संस्कार (आदि. १२३ । १९-२२)। वसुदेवके पुरोहित काश्यपके द्वारा इनके उपनयनादि संस्कार और राजर्षि शुकद्वारा इनका विविध विद्याओंमें पारङ्गत होना (आदि० १२३ । ३१ के बाद, पृष्ट ३६९)। पाण्डुके निधनपर इनका विलाप (आदि० १२४ । १७ के बाद दाक्षिणात्य पाठ, पृष्ठ ३७२)। शतशृङ्गनिवासी ऋषियोंद्वारा इनको हस्तिनापुर पहुँचाकर भीष्म आदि कौरवोंको इनके जन्मोंका वृत्तान्त सुनाना (आदि० १२५ । २२-२८)। कृपाचार्यसे इनका अध्ययन (आदि. १२९ । २३)। द्रोणाचार्यसे इनका अध्ययन (आदि. १३१ । १)। एकलव्यकी धनुर्विद्यासे इनका विस्मित होना (आदि० १३१ । ४१)। दुपदपर इनका आक्रमण और विजय (आदि. १३७ । ३६-६३)। धृतराष्ट्र के आदेशसे पाण्डवोंका वारणावत जाना (आदि० १४२ । ६-१९)। विदुरद्वारा इनको कौरवोंके कुचक्रसे बचनेका संकेत (आदि. १४४ । १९२६) । वारणावतनिवासियोंद्वारा इनका स्वागत (आदि. १४५।१-५) । सुरंगद्वारा लाक्षागृइसे निकलकर इनका पलायन (आदि० १४७ । ११-१८) । विदुरजीके भेजे हुए नाविकके द्वारा इनका गङ्गापार होना (आदि. १४८ । १३)। इनको व्यासजीका आश्वासन तथा एक मासतक एकचक्रा नगरीमें ठहरनेका आदेश
नगरीमें इनकी भिक्षावृत्ति (आदि. १५६ । ४)। इनके प्रति एक ब्राह्मणद्वारा द्रोण तथा द्रुपदके पारस्परिक विरोधकाः धृष्टद्युम्न एवं द्रौपदीके जन्म और उनके स्वयंवरका वर्णन (आदि० अध्याय १६४ से १६६ तक)। इनके विषयमें द्रुपदका शोक ( आदि. १६६ । ५६ के बाद) । द्रौपदीके पूर्वजन्मका वृत्तान्त सुनाकर इनको पञ्चाल देश जाने के लिये व्यासजीकी आज्ञा ( आदि. १६८ । ६--१५)। चित्ररथ गन्धर्वद्वारा इनको दिव्य अश्वोंकी प्राप्ति (आदि. १६९ । ४८)। इनका धौम्यके आश्रममें जाना और इनके द्वारा उनका पुरोहितके रूपमें वरण (आदि. १८२ । ६) । इनकी पञ्चालयात्रा (आदि० १८३ अध्याय) द्रुपदके नगरमें इनका कुम्भकारके घरमें निवास (आदि० १८४ । ६)। ब्राह्मणवेशमें इनका द्रौपदीके स्वयंवरमें प्रवेश (आदि. १८४ । २७)। स्वयंवरमें श्रीकृष्णद्वारा इनका पहचाना जाना ( आदि। १८५। ९) । द्रौपदीरुप भिक्षाका मिलकर उपभोग करनेके लिये इनको माताका आदेश (आदि० १९० । २)। इनसे मिलने के लिये बलरामसहित श्रीकृष्णका कुम्भकारके घरमें आगमन ( आदि० १९० । १८)। धृष्टद्युम्नद्वारा गुप्तरूपसे इनके व्यवहारोंका निरीक्षण (आदि० १९१ । १-२) । द्रुपदद्वारा इनके शील. स्वभावकी परीक्षा ( आदि० १९३ । ४-१०)। व्यासद्वारा इनके पूर्वजन्मके दिव्य वृत्तान्तका द्रुपदके प्रति वर्णन ( आदि. १९६ अध्याय ) । धौम्यमुनिद्वारा इनका क्रमशः द्रौपदीके साथ विधिपूर्वक विवाह ( आदि० १९७ अध्याय)। द्रौपदोंके विवाहोपलक्षमें इनको श्रीकृष्णद्वारा बहुमूल्य वस्तुओंकी भेंट (आदि० १९८ । १३)। पाण्डवोंके विवाहसे दुर्योधन आदिकी चिन्ता, धृतराष्ट्रका पाण्डवोंके प्रति प्रेमका दिखावा और दुर्योधनकी कुमन्त्रणा (आदि० १९९ अध्याय)। पाण्डवोंको पराक्रमसे दबानेके लिये कर्णकी सम्मति (आदि० २०१ अध्याय)। भीष्मकी दुर्योधनसे पाण्डवोको आधा राज्य देनेकी सलाह(आदि० २०२ अध्याय) द्रोणाचार्यकी पाण्डवौंको उपहार भेजने और उन्हें बुलानेकी सम्मति (आदि० २०३ । १-१२) । धृतराष्ट्रकी आज्ञासे विदुरका द्रुपदके यहाँ जाकर पाण्डवोंको भेंट देना और उन्हें हस्तिनापुर भेजनेके लिये द्रुपदसे प्रस्ताव करना (आदि० २०५ अध्याय) पाण्डवोंका हस्तिनापुर आनाऔर आधा राज्य पाकर इन्द्रप्रस्थ नगरका निर्माण करना (आदि० २०६।१-५१)। पाण्डवोंके यहाँ नारदजीका आगमन और द्रौपदीको लेकर उनमें फूट न होइसके लिये कुछ नियम बनानेकी प्रेरणा देकर सुन्द और उपसुन्दकी कथाको प्रस्तावित करना तथा पाण्डवोका द्रौपदीके विषयमें नियमनिर्धारण (आदि० अध्याय १०७ से २११
ब्राह्मणके घरमें निवास (आदि. १५६ । २)। उस
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