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परिघ
( १९० )
उत्तेजित करना ( आदि० ४० । २७-३२)। शृङ्गी. परिवह-छठा वायुतत्त्व, इसके स्वरूप और शक्तिका वर्णन ऋषिका कृशसे राजा परीक्षित्के दुर्व्यवहारकी बात जानकर (शान्ति०३२८ । ४८ )। उन्हें शाप देना और शमीकका अपने पुत्रको शान्त करते परिख्याध-पश्चिम दिशामें रहनेवाले एक महर्षि (शान्ति. हुए शापको अनुचित बताना (आदि० ४१ अध्याय)। २०८।३०)। शमीकमुनिके भेजे हुए गौरमुखका राजा परीक्षित्के पास आना और शृङ्गीऋषिके दिये हुए शापकी बात बताकर
परिश्रुत-(१)स्कन्दका एक सैनिक (शल्य.४५ । उनसे आत्मरक्षाके लिये प्रयत्न करनेको कहना ( आदि० ६०)(२) स्कन्दका एक सैनिक ( शल्य० ४५ । ६१) ४२ । १३–२२)। राजा परीक्षित्का पश्चात्ताप करना, पर्जन्य-एक देवगन्धर्व, जो कश्यपद्वारा मुनिके गर्भसे उत्पन्न मन्त्रियोंकी सलाहसे एक ही खंभेका ऊँचा महल बनवाना हुए थे ( आदि०६५। ४४)। ये अर्जुनके जन्मो.
और रक्षाके लिये मन्त्र, औषध आदिकी आवश्यक त्सवमें पधारे थे (आदि० १२२१५६ )। व्यवस्था करना (आदि. ४२ | २३-३२)। परीक्षित्की रक्षाके लिये आते हए काश्यपको लौटाकर तक्षकका पर्णशाला-यामुनपर्वतकी तलहटीमें बसा हुआ ब्राह्मणोंका एक छलसे परीक्षितके पास पहुँचकर उन्हें डंस लेना ( आदि गाँव, जहाँ शर्मी नामक विद्वान् ब्राह्मण रहते थे ( अनु. ४३ अध्याय)। इनकी मृत्युसे दुखी हुए मन्त्रियोंका ६८ । ४-६ )। रोदन और इनके अल्पवयस्क पुत्र जनमेजयका राज्या- पर्णाद-(१) एक प्राचीन ऋषि, जो युधिष्ठिरकी सभामें भिषेक ( आदि० ४४ । १-६) । जनमेजयके विराजते थे ( सभा० ४ । १३)। हस्तिनापुर जाते पूछनेपर मन्त्रियोंद्वारा इनके धर्ममय आचार समय मार्गमें श्रीकृष्णसे इनकी भेंट (उद्योग०८३ । तथा उत्तम गुणोंका वर्णन (आदि० ४९ । ३-१८)। ६४ के बाद दा० पाठ ) । (२)एक विदर्भनिवासी तक्षकद्वारा इनकी मृत्यु होनेका पुनः वर्णन (आदि. ब्राह्मण । इनका बाहुक नामधारी राजा नलका समाचार अध्याय ४९ से ५० तक)। व्यासजीकी कृपासे जनमेजय- दमयन्तीसे कहना (वन० ७० । २-१३)। इन्हें को अपने परलोकवासी पिता परीक्षित् का दर्शन । उनका दमयन्तीद्वारा पुरस्कार-दान (वन० ७० । १९)।
अपने पिताको अवभृथ-स्नान कराना । तत्पश्चात् परीक्षित्- (३) विदर्भनिवासी सत्य नामक ब्राह्मणके यशमें होताका • का अदृश्य हो जाना (आश्रम० ३५। ६-९)। काम करनेवाले ऋषि ( शान्ति० २७३ । ८)। महाभारतमें आये हुए परीक्षित्के नाम-अभिमन्युसुत,
पर्णाशा-पश्चिमोत्तर भारतकी एक नदी, जो वरुणकी सभामें अभिमन्युज, भरतश्रेष्ठ, किरीटितनयात्मज, कुरुश्रेष्ठ,
उपस्थित होती है ( सभा० ९ । २१)। ( कोई-कोई कुरु-नन्दन, कुरुराज, कुरुवर्धन, पाण्डवेय आदि ।
इसे राजपूतानेके अन्तर्गत 'बनास नदी' मानते हैं, जो (४) अयोध्याके एक इक्ष्वाकुवंशी नरेश (वन. १९२३)।
चर्मण्वती या चम्बलकी सहायक है।) यह उन प्रमुख इनका मण्डूकराजकी कन्या सुशोभनासे विवाह (वन.
नदियोंमेंसे है, जिनका जल भारतवासी पीते हैं ( भीष्म १९२ । १२) । इनके द्वारा सुशोभनाके बावड़ीमें
९ । ३१)। इसने वरुणद्वारा श्रुतायुध नामक पुत्रको डूब जानेपर मण्डूकों को मार डालनेका आदेश (वन०
जन्म दिया और वरुणसे प्रार्थना की कि मेरा यह पुत्र १९२ । २२ -२४) । मण्डूकराजद्वारा पुनः इन्हें
शत्रुओंके लिये अवध्य हो।' तब वरुणने कहा कि 'मैं सुशोभनाकी प्राप्ति (वन. १९२ । ३५) । सुशोभनाके
इसके लिये हितकारक वरके रूपमें यह दिव्यास्त्र प्रदान गर्भसे इन्हें पुत्रकी प्राप्ति और इनका वनगमन (वन०
करता हूँ, जिसके द्वारा तुम्हारा यह पुत्र अवध्य होगा' १९२ । ३८)। (५) एक प्राचीन नरेश, जो कुरु
(द्रोण । ९२ | ४४-४६ )। वंशी अभिमन्युपुत्र परीक्षित्से भिन्न थे। इन्द्रोत मुनिद्वारा इनके पुत्र जनमेजयकी ब्रह्महत्याका निवारण पर्वण-राक्षसों और पिशाचोंके दल (वन. २८५ । (शान्ति० अध्याय १५० से १५१ तक)। परिघ-(१) अंशद्वारा स्कन्दको दिये गये पाँच पार्षदों- पर्वत-प्राचीन ऋषि या देवर्षि, जो जनमेजयके सर्पसत्र में मेंसे एक । चारके नाम इस प्रकार हैं-वट, भीम, दहति सदस्य बने थे (आदि० ५३ । ८)।(ये और
और दहन । (२) विडालोपाख्यानमें वर्णित व्याधका नारद अनेक स्थलोंपर साथ-साथ वर्णित हुए हैं। इन नाम ( शान्ति० १३८ । ११७ )।
दोनोंको गन्धर्व भी माना जाता है और देवर्षि भी।) पर्वत परिबर्ह-रुडकी प्रमुख संतानोंमेंसे एक (उद्योग और नारद द्रौपदीके स्वयंवरके अवसरपर आकाशमें दर्शक १०१ । १३)।
बनकर उपस्थित थे ( आदि. १८६ । ७)। ये
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