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परमेष्ठी
( १८८ )
परावसु
परमेष्ठी-महाराज अजमीढ़के द्वारा नीलीके गर्भसे उत्पन्न वर्णन ( उद्योग. १७९ । ३-४)। भीष्मके साथ युद्धाद्वितीय पुत्र, इनके सभी पुत्र पाञ्चाल कहलाये (आदि. रम्भ ( उद्योग. १७९ । १९ से १८५ अध्याय तक)। ९४ । ३२-३३)।
देवता, पितर और गङ्गाके आग्रहसे इनका युद्ध बंद करके परशुराम-महर्षि जमदग्निके पुत्र, माताका नाम रेणुका, भष्मपर सतुष्ट होना (उद्योग० १८५ । ३६) । अम्बाइनके द्वारा समन्तपञ्चक क्षेत्रका निर्माण ( आदि से अपनी असमर्थता प्रकट करते हुए जाने के लिये ४) । क्षत्रियोंके रुधिरसे पितरोंका तर्पण तथा पितरों- कहना ( उद्योग० १८६ । ३)। संजयको समझाते हुए द्वारा इनको वरदान (आदि० २ । ५-७)। इन्होंने नारदजीद्वारा इनके चरित्रका वर्णन (द्रोण. ७० इक्कीस बार इस पृथ्वीको क्षत्रियोंसे शून्य किया और अन्तमें अध्याय)। शिवसे वरदान पाना और दानवोंका वध महेन्द्र पर्वतपर उत्तम तपस्या की (आदि०६४।४)। इनके करना (कर्ण० ३४ । १४९-१५५) । ब्राह्मणरूपधारी द्वारा महर्षि कश्यपको समस्त पृथ्वीका दान (आदि. कर्णका रहस्य खुल जानेपर इनके द्वारा उसको शाप-दान १२९ । ६२ ) । द्रोणको सम्पूर्ण अस्त्रोंकी शिक्षा
(कर्ण० ४।९)। इनके देखनेमात्रसे दंशनामक राक्षस(आदि. १२९ । ६६)। द्रोणको ब्रह्मास्त्रका दान
का कीट-योनिसे उद्धार ( शान्ति० ३ । १४)। कर्णको (आदि. १६५। १३)। ये यमसभामें उपस्थित होते हैं शाप (शान्ति०३ । ३०-३२)। इनके जन्मका प्रसंग (सभा०८ । १९)। इनके द्वारा जम्भासुरके मस्तकका (शान्ति.१९ । ३१-३२) । तपस्याद्वारा महादेवजीसे भेदन और शतदुन्दुभि नामक दैत्यका विनाश । इनके
कुठार प्राप्त करना (शान्ति. ४९ । ३३)। हैहयराज द्वारा इक्कीस बार क्षत्रियोंका विनाश हुआ और सहस्र
अर्जुनकी भुजाओंका छेदन (शान्ति० ४९ । ४८)। बाहु अर्जुन मारा गया। शाल्वके साथ इनका भयानक
कार्तवीर्यके वंशका संहार (शान्ति० ४९ । ५२-५३)। युद्ध, शाल्वके सौभवमानको नष्ट न कर सकनेके
यज्ञान्तमें सारी पृथ्वी दक्षिणारूपमें कश्यपको दान (शान्ति. सम्बन्ध इनके प्रति नग्निका कुमारिकाओंके वचन (सभा० ३८ । २९ के बाद, पृष्ठ ७९२ से ७९५ तक )। ये
४९ । ६३-६४)। शूर्पारक क्षेत्रमें निवास (शान्ति० युधिष्ठिरके राजसूय यज्ञमें गये थे और इनके सहित ऋषिोंने
४९ । ६६-६७)। मुचुकुन्दको कपोत और बहेलियेकी युधिष्ठिरका अभिषेक किया ( सभा० ५३ । ११)।
कथा सुनाना (शान्ति० अध्याय १४३ से १४९ तक)। परशुरामजीने भृगुतुङ्ग पर्वतपर युधिष्ठिरको उपदेश दिया
इनके द्वारा ब्राह्मणको पृथ्वी-दान (शान्ति. २३४ । था (सभा० ७८ । १५)। लोमशजीद्वारा युधिष्ठिरके
२६)। शिव-महिमाके विषयमें युधिष्ठिरको अपना अनुप्रति इनके चरित्रका वर्णन (वन. ९९। ४०-७१)। भव सुनाना (अनु. १८ । १२-१५)। वशिष्ठ आदि पिताकी आज्ञासे इनका अपनी माताका वध करना
ऋषियोंसे अपनी शुद्धिका उपाय पूछना (अनु० ८४ । ( वन० ११६ । ११)। इनको पिताका वरदान ३९-४०)। इनके द्वारा भूमिदान (अनु. १३७ । (वन०११६ । १८)। इनके द्वारा कार्तवीर्य अर्जनका १२)। कार्तवीर्य अर्जुनका वध (आश्व० २९।११)। वध ( वन० ११६ । २५) । कुपित हुए इनका
इक्कीस बार क्षत्रियोंका संहार (आश्व० २९ । १८)। इक्कीस बार पृथ्वीको क्षत्रियोंसे सूनी करना (वन.
पितरोंके समझानेसे युद्धसे विरत होना और तपस्याद्वारा ११७ । ९)। इनका यज्ञ और कश्यप आदि ब्राह्मणों- परमसिद्धिकी प्राप्ति (आश्व० १० अध्याय)। को भूमिदान ( वन० ११७ । ११)। ये कर्णके परशुरामकुण्ड-कुरुक्षेत्रकी सीमामें स्थित और परशुरामगुरु थे ( वन० ३०२।९)। हस्तिनापुर जाते समय द्वारा स्थापित पाँच कुण्ड, जो सुप्रसिद्ध तीर्थ हैं। इनकी मार्गमें इनका श्रीकृष्णसे मिलना और वार्तालाप करना उत्पत्ति और महत्ता (वन० ८३ | २६-३८)। (उद्योग० ८३ । ६४ के बादसे ७२ तक)। कौरव
परशुवन-एक नरक (शान्ति० ३२१ । ३२ )। सभामें दम्भोद्भवका उदाहरण देते हुए नर-नारायणस्वरूप
परहा एक प्राचीन राजा (आदि० १ । २३०)। श्रीकृष्ण और अर्जुनकी महिमाका वर्णन ( उद्योग. ९६ अध्याय)। अम्बाका कार्य करने के लिये उसे सान्त्वना
परान्त-एक भारतीय जनपद ( भीष्म० ९ । ४७)। देना ( उद्योग. १७७ । ३२-३१) । अम्बाके साथ परावसु-एक ऋषि, जो रेभ्य मुनिके पुत्र और अर्वावसुके हस्तिनापुर जाकर भीष्मसे उसे ग्रहण करनेको कहना बड़े भाई थे । हिंसक पशुके धोखेमें इनके द्वारा पिताका (उद्योग. १७८ । ३०)। भीष्मके अस्वीकार करनेपर वध और उनका अन्त्येष्टि-संस्कार ( वन० १३८ । उन्हें मार डालनेकी धमकी देना ( उद्योग. १७८। २-७)। इनका अपने छोटे भाई अर्वावसुको अपनी ३५-३६)। भीष्मके साथ युद्धके लिये कुरुक्षेत्रमें जाना की हुई ब्रह्महत्याके निवारणके लिये व्रत करनेकी आज्ञा (उद्योग० १७८ । ६६)। इनके संकल्पमय रथका देना और उनका भाईकी आजाको स्वीकार करना (वन.
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