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पङ्कजित्
पथिकृत
पङ्कजित्-गरुडकी प्रमुख संतानोंमेंसे एक ( उद्योग० करके महान् पुण्यसे युक्त हो मनुष्य सत्पुरुषोंके लोकमें १०१।१०)।
प्रतिष्ठित होता है (वन०८३ । १६२)। पङ्कदिग्धाङ्ग-स्कन्दका एक सैनिक ( शल्य० ४५ । ६८)। पञ्चवीर्य-एक सनातन विश्वेदेव ( अनु० ९१ । ३६ )। पञ्चक-इन्द्रद्वारा स्कन्दको दिये गये दो पार्षदोंमेंसे एक । पञ्चशिख-एक प्राचीन ऋषि, जो कपिलाके पुत्र और
दूसरेका नाम उत्क्रोश था (शल्य० ४५। ३५)। आसुरिके शिष्य थे ( शान्ति० २१८ । ६)। इनका पञ्चकर्पट-एक पश्चिम भारतीय जनपद, जिसे नकुलने पञ्चशिख नाम पड़नेका कारण ( शान्ति० २१८ । जीता था (सभा० ३२ । ७)।
११-१२) । मिथिलानरेश जनदेवको इनका उपदेश पञ्चगङ्गा-एक तीर्थ, जहाँ मृत्युने तपस्या की थी (द्रोण.
(शान्ति० २१८। २२ से २१९ । ५२ तक)।
जरा-मृत्युकी निवृत्तिके विषयमें जनकको इनका उपदेश ५४ । २३)।
(शान्ति. ३१९ । ६-१५)। पश्चगण-उत्तर दिशाका एक जनपद, जिसे अर्जुनने जीता
पश्चाल-एक भारतीय जनपद ( भीष्म. ९ । ४१; था (सभा० २७ । १२)।
भीष्म०९।४७)। पञ्चचूड़ा-पाँच जूडोवाली एक अप्सरा (वन० १३४ । १२)। जो शुकदेवजीको परमपदकी प्राप्तिके लिये पटच्चर-एक भारतीय जनपद और वहाँके निवासी राजा ऊपर की ओर जाते देख आश्चर्यचकित हो उठी थी
एवं राजकुमार आदि; इस देशके लोग जरासंधके भयसे (शान्ति. ३३२ । १९-२०)। इसने नारदजीके समक्ष
दक्षिणको भाग गये थे ( सभा० १४ । २६)। नारी-स्वभावका वर्णन किया था (अनु० ३८।११-३०)।
सहदेवने इन्हें दक्षिणदिग्विजयके समय जीता था
(सभा० ३१ । ४)। ये लोग युधिष्ठिरके पक्षमें लड़ने पञ्चजन-पञ्चजन' नामसे प्रसिद्ध पाँच असुर, जो
आये थे और उन्हीं के साथ क्रौञ्चव्यूहके पृष्ठभागमें खड़े नरकासुरके अनुयायी थे । भगवान् श्रीकृष्णने इनका
थे (भीष्म० ५० । ४८)। वध किया था ( सभा० ३८ । २९ के बाद दा. पाठ, पृष्ठ ७९८)।
पटवासक-धृतराष्ट्रकुलमें उत्पन्न एक नाग, जो जनमेजयके
सर्पसत्रमें जल मरा था ( आदि० ५७ । १८)। पञ्चनद-पश्चिमोत्तर भारतका एक प्रदेश, जिसे आजकल पंजाब कहते हैं। इसे पश्चिम-दिग्विजयके समय नकलने पटुश-एक राक्षस, जिसने श्रीरामसेनाके पनस नामक जीता था ( सभा० ३२ । ११)। इस प्रान्तमें पाँच वानरके साथ युद्ध किया था ( वन० २८५ । ९)। प्रसिद्ध नदियाँ विपाशा (व्यास ), शतद्रू (सतलज), पण्डितक ( या पण्डित)-धृतराष्ट्रके सौ पुत्रोंमेंसे एक इरावती ( रावी), चन्द्रभागा (चनाब ) और वितस्ता ( आदि. ६७ । १०१)। भीमसेनद्वारा इसका वध ( झेलम ) बहती हैं। इसलिये इसे पञ्चनद या पञ्चाब (भीष्म ८८ । २४-२५)। कहा गया है ।
पतत्रि-कौरवपक्षका एक योद्धा, इसका भीमसेनद्वारा पञ्चनद-(१) एक तीर्थ, जहाँ स्नान करनेसे मनुष्य रथहीन होना ( कर्ण ४८।३०)। पञ्चमहायज्ञोंका फल पाता है ( वन० ८२ ॥ ८३)।
पतन-राक्षसों और पिशाचोंके दल (वन० २८५ । १-२)। (२) कुरुक्षेत्रकी सीमामें स्थित एक तीर्थ, जहाँ कोटि
पताकी-कौरवदलका एक योद्धा, जिसे साथ लेकर अर्जुनपर तीर्थमें स्नान करनेसे अश्वमेध यज्ञका फल प्राप्त होता है
आक्रमण करनेके लिये दुर्योधनका शकुनिको आदेश (वन० ८३ । १६-१७)।
(द्रोण० १५६ । १२२)। पश्चमी-एक प्रमुख नदी, जिसका जल भारतवासी पीते हैं
पतिव्रतामाहात्म्यपर्व-वनपर्वका एक अवान्तर पर्व (अध्याय (भीष्म० ९ । २६)।
२९३ से २९९ तक)। पञ्चयज्ञा-एक प्राचीन तीर्थ, जहाँकी यात्रा करनेसे मनुष्य
पत्ति-सेनाका परिमाणविशेष (आदि० २। १९)। स्वर्गलोकमें प्रतिष्ठित होता है (वन० ८४ । १०-११)।
पत्तोर्ण-एक क्षत्रियनरेश, जो युधिष्ठिरके राजसूययज्ञमें भेंट पञ्चरात्र-एक आगम या शास्त्र, जिसके विशेषज्ञ पञ्चशिख
लेकर आये थे (सभा० ५२ । १८)। मुनि बताये गये हैं (शान्ति. २१८।११-१२)।
पथिकृत-एक अग्नि; यदि दर्श और पूर्णमास याग बीचमें पञ्चवक्त्र-स्कन्दका एक सैनिक ( शल्य० ४५ । ७६)। ही बंद हो जाय तो इनके लिये अष्टाकपाल पुरोडाश पञ्चवटी-कुरुक्षेत्रकी सीमामें स्थित एक तीर्थ, जिसकी यात्रा देनेका विधान है (वन० २२१॥३०)।
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