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पाण्डव
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( १९३ )
अध्यायतक ) | भगवान् श्रीकृष्णकी द्वारकायात्रा और पाण्डवोंका उन्हें पहुँचाना ( सभा० २ अध्याय ) । पाण्डवों का मयनिर्मित सभाभवन में प्रवेश और निवास ( समा० ४ अध्याय ) । नारदजीका पाण्डवोंसे मिलने के लिये आना और पाण्डवोंद्वारा उनकी पूजा ( सभा० ५ । १२ - १६ ) । पाण्डवों पर विजय प्राप्त करनेके लिये शकुनि और दुर्योधनकी बातचीत ( सभा० ४८ अध्याय ) । पाण्डवोंकी हस्तिनापुरयात्रा ( सभा० ५८ । १९(३८ ) । जू में पाण्डवोंकी पराजय ( सभा० ६५ अध्याय ) | द्रौपदीद्वारा पाण्डवोंकी दास्यभावसे मुक्ति ( सभा० ७१ । २८-३३ ) । धृतराष्ट्रका पाण्डवोंको सारा धन लौटाकर विदा करना ( सभा० ७३ अध्याय ) | दुर्योधनका पुनः द्यूतक्रीड़ाके लिये पाण्डवोंको बुलाने का अनुरोध और धृतराष्ट्रद्वारा उसकी स्वीकृति ( सभा० ७४ अध्याय ) । दुःशासनद्वारा पाण्डवोंका उपहास ( सभा० . ७७ । २ - १४ ) । वनगमन के समय पाण्डवोंकी चेष्टा के विषय में धृतराष्ट्र और विदुरका संवाद ( सभा० ८० । १--१८ ) । पाण्डवोंका वनगमन, पुरवासियोंद्वारा उनका अनुगमन और पाण्डवोंका प्रमाणकोटितीर्थ में रात्रिवास ( वन० १ अध्याय ) । पाण्डवों का काम्यकवनमें प्रवेश, विदुरजीका वहाँ जाकर उनसे मिलना और उनसे बातचीत करना ( वन० ५ अध्याय ) । पाण्डवोंका वध करनेके लिये दुर्योधन आदिकी वनमें जाने की तैयारी और व्यासजीका आकर उनको रोकना ( वन० अध्याय ७ से ८ तक ) । व्यासजी की पाण्डवों के प्रति दयाका कारण चन० ९ । २०-२३ ) । मैत्रेयजीका धृतराष्ट्र और दुर्योधनसे पाण्डवोंके प्रति सद्भाव करनेका अनुरोध ( वन० १० ११-२८ ) । भोज, वृष्णि और अन्धकवंशके वीरों सहित श्रीकृष्णका पाञ्चालराजकुमार धृष्टद्युम्नका, चेदिराज धृष्टकेतुका तथा केकय राजकुमारोंका पाण्डवोंसे मिलने के लिये वन में आना और इन सबकी बातचीत ( वन० अध्याय १२ से २२ तक ) । पाण्डवोंका द्वैतवनमें जानेके लिये उद्यत होना और प्रजावर्गका उनके लिये व्याकुल होना ( वन० २३ अध्याय ) । पाण्डवोंका द्वैतवनमें जाना ( वन० २४ अध्याय ) | महर्षि मार्कण्डेयका पाण्डवोंको धर्माचरणका आदेश देना ( वन० २५ अध्याय ) | दल्भ्यपुत्र बकका पाण्डवों को ब्राह्मणों की महिमा बताना (वन० २६ अध्याय ) | द्रौपदीसहित पाण्डवोंका परस्पर संवाद तथा उनका पुनः काम्यकवन में जाना ( वन० अध्याय २७ से ३६ तक ) । बृहदश्वका पाण्डवोंको नलोपाख्यान सुनाकर युधिष्ठिरको द्यूतविद्या और अश्वविद्याका रहस्य बताना ( वन० अध्याय ५२ से ७९ तक ) | अर्जुन के लिये द्रौपदीसहित पाण्डवोंकी चिन्ता
म० ना० २५
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पाण्डव
( वन ८० अध्याय ) । नारदजीका पाण्डवोंको तीर्थयात्रा - की महिमा बताना और पुलस्त्यवर्णित तीर्थयात्राका प्रसङ्ग सुनाना ( वन० अध्याय ८१ से ८५ तक ) । धौम्यद्वारा पाण्डवों के प्रति विभिन्न दिशाओंके तीर्थोंका वर्णन ( बन० अध्याय ८६ से ९० तक ) | महर्षि लोमशका स्वर्गसे आकर पाण्डवोंको अर्जुनके समाचार बताना और इन्द्रका संदेश सुनाना ( वन० ९१ अध्याय ) । पाण्डवोंका अपने अधिक साथियोंको विदा करके लोमशजी के साथ तीर्थयात्रा के लिये प्रस्थान करना
वन० अध्याय ९२ से ९३ तक ) । पाण्डवोंका विभिन्न तीथों में जाना और लोमशजीसे उनके माहात्म्य सुनना वन० अध्याय ९४ से १३८ तक | पाण्डवोंकी उत्तराखण्डयात्रा ( वन० अध्याय १३९ से १४२ तक ) । गन्धमादनकी यात्रा के समय पाण्डवोंका आँधी-पानीसे सामना और घटोत्कचकी सहायता से इनका गन्धमादनपर पहुँचना ( वन० अध्याय १४३ से १४५ तक ) । पाण्डवोंका गन्धमादनमें निवास, सौगन्धिकसरोवर एवं कदलीवन के दर्शन, भीमकी हनुमानूजीसे भेंट, जटासुरवध वृषपर्वाके यहाँ होते हुए इनका राजर्षि आर्ष्टिषेणके आश्रमपर जाना, कुबेरसे इनकी भेंट तथा धौम्यका इन्हें मेरुपर्वत के शिखरोंपर स्थित ब्रह्मा, विष्णु आदिके स्थानोंका लक्ष्य कराना ( वन० अध्याय १४६ । से १६३ तक ) । पाण्डaint अर्जुनके लिये उत्कण्ठा और अर्जुनका गन्धमादनपर आकर अपने भाइयोंसे मिलना ( वन० अध्याय १६४ से १६५ तक ) । इन्द्रका पाण्डवोंके पास आना और युधिष्ठिरको सान्त्वना देकर लौटना ( वन० १६६ अध्याय ) । पाण्डवोंका अर्जुनके मुख से उनकी यात्राका वृत्तान्त सुनना ( वन० अध्याय १६७ से १७३ तक ) । पाण्डवोंका गन्धमादनसे प्रस्थान और द्वैतवन में प्रवेश ( वन० अध्याय १७४ १७७ तक ) । पाण्डवोंका पुनः द्वैतवनसे काम्यकवन में प्रवेश और वहाँ इनके पास भगवान् श्रीकृष्ण, मुनिवर मार्कण्डेय तथा नारदजी का आगमन ( वन० अध्याय १८२ से १८३
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क) | पाण्डवों का मार्कण्डेयजीके मुखसे नाना प्रकारके आख्यान और उपदेश सुनना ( वन० अध्याय १८४ से २३२ तक ) । पाण्डवोंका गन्धर्वोको परास्त करके दुर्योधन आदिको उनकी कैद से छुड़ाना ( वन० अध्याय २४४ से २४५ तक ) । पाण्डवोंका आश्रमपर आकर द्रौपदीहरणका समाचार सुन जयद्रथका पीछा करना ( वन० २६९ अध्याय ) । द्रौपदीका पाण्डवोंका पराक्रम वर्णन करना ( वन० २७० अध्याय ) । पाण्डवोंद्वारा जयद्रथकी सेनाका संहार ( वन० २७१ अध्याय ) | मार्कण्डेयजीका पाण्डवको श्रीराम और सावित्रीका