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दाक्षायणी
( १४० )
दाशार्णक
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स्थाणुके पुत्र ( आदि० ६६ । ३)। (२) अंशद्वारा इसके सिवा उद्योगपर्वके ८३, ८४, १३१, १३७ स्कन्दको दिये गये पाँच पार्षदों से एक (शल्य.
अध्यायोंमें; द्रोणपर्वके ८२, ११२ अध्यायोंमें; कर्णपर्वके ४५ । ३४ )।
७२ अध्यायमें, शान्तिपर्वके ४६, ५३ अध्यायोंमें और दाक्षायणी-दक्षकी कन्या । राजधर्माने अपनी माता सुरभिको आश्वमेधिकके ५२ अध्यायमें भी दारुकका नाम आया दाक्षायणी कहा है (शान्ति० १७०।२)। दाक्षायणी है। श्रीकृष्णद्वारा समयपर रथ लाने के लिये आदेश सुरभिने अपने मुखके फेनको राजधर्माकी चितापर गिराया,
मिलनेपर उसे स्वीकार करना (द्रोण० ७९ । ४३जिससे वह जी उठा ( शान्ति० १७३ । ३)। ( इसी ४४)। भगवान्की शङ्खध्वनि सुनकर उनके संदेशका तरह अदिति, दिति, दनु आदि सभी दक्ष-कन्याओंको
स्मरण करके दारुकका जयद्रथ-वधके पश्चात् रथ लेकर दाक्षायणी समझना चाहिये)।
श्रीकृष्णके पास जाना (द्रोण० १४७ । ४५-४६)। दाक्षिणात्य-दक्षिण भारतके निवासी दाक्षिणात्य कहलाते सात्यकिके उस रथपर चढ़कर कर्णके साथ युद्ध करते समय हैं। राजा भीष्मक दाक्षिणात्योंके अधिपति थे (उद्योग. इसकी रथ-संचालनकी कुशलता (द्रोण०१४७१५४-५५)। १५८।२)।
भगवान्के रथको दारुकके देखते-देखते दिव्य घोड़े दानभारि-एक भारतीय जनपद (भीष्म० ५० । ५२)।
आकाशमें उड़ा ले गये (मौसल० ३ । ५)। दारुकको दान्त-विदर्भनरेश भीमके पुत्र और दमयन्तीके भाई भगवान् श्रीकृष्णका अर्जुनको यादव-संहारकी बात (वन० ५३ । ९)।
बताने और उन्हें बुलानेके लिये जानेका आदेश देना तथा दान्ता-अलकापुरीकी एक अप्सरा, जिसने अन्य अप्सराओंके दारुकका प्रस्थित होना ( मौसल. ४ । २-३ )।
साथ अष्टावक्रके स्वागतके लिये नृत्य किया था ( अनु० दारुकका कुन्तीपुत्रोंसे मिलकर उनसे यदुवंश-विनाशका १९ । ४५)।
समाचार सुनाना और अर्जुनको साथ लेकर द्वारका लौटना दामचन्द्र-युधिष्ठिरमें अनुराग रखनेवाला उनका एक
(मौसल० ५। १-५)। अर्जुनका दारुकके प्रति सम्बन्धी और सहायक राजा, जो बड़ा पराक्रमी था वृष्णिवंशी वीरोंके मन्त्रियोंसे मिलनेकी इच्छा प्रकट करना (द्रोण. १५८।४.)।
(मौसल. ७।६)। दामा-स्कन्दकी अनुचरी मातृका (शल्य० ४६ । ५)। दारुण-गरुड़की प्रमुख संतानों से एक ( उद्योग. दामोदर-भगवान् श्रीकृष्णका एक नाम, इस नामकी व्युत्पत्ति ( उद्योग० ७०1८)।
दार्व-दर्वदेशीय अथवा दर्व-जातिमें उत्पन्न क्षत्रिय नरेश दामोष्णी-युधिष्ठिरकी सभामें विराजमान होनेवाले एक
(सभा० २७ । १८)। महर्षि (सभा० ४।१३)। इन्होंने हस्तिनापुर जाते दावोतिसार-एक म्लेच्छ जाति (द्रोण० ९३ । ४४)। हुए श्रीकृष्णसे मार्गमें भेंट की थी ( उद्योग० ८३ । ६४ दावीं-एक भारतीय जनपद ( भीष्म० ९ । ५४)। के बाद दा० पाठ)।
दाल्भ्य-(१) एक महर्षि, जो युधिष्ठिरकी सभामें विराजदारद-एक भारतीय जनपद (शल्य. ५० । ५०)। मान होते थे ( सभा० ४।११)।(२) उत्तरादारुक-भगवान् श्रीकृष्णका सारथि, भगवान् श्रीकृष्णके खण्डका एक तीर्थभूत आश्रम (वन० ९० । १२)।
द्वारका जाते समय युधिष्ठिरने दारुकको हटाकर थोड़ी (३) एक ऋषि, जिन्होंने सत्यवान्के जीवित होनेका देर स्वयं सारथ्य किया (सभा०२।१६)। वे दारुकके विश्वास दिलाकर राजा द्युमत्सेनको आश्वासन दिया था साथ द्वारका पहुँचे (सभा० २ । ३०)। इसके द्वारा (वन० २९८ । १.)। जोतकर लाये हुए गरुडध्वज रथपर आरूढ़ हो भगवान् दाल्भ्यघोष-उत्तराखण्डका एक तीर्थभूत आश्रम (वन० श्रीकृष्ण द्वारकापुरीकी ओर प्रस्थित हुए (सभा०४५। ९०। १२)। ६०)। दारुकके पुत्रने प्रद्युम्नके रथका संचालन किया दाशराज-सत्यवतीका पालक पिता निषादराज ( उच्चैः(बन० १८ । ३, १२, १५, ३०, ३३ वन०१९। श्रवा ), जिसकी आज्ञासे सत्यवती धर्मार्थ नाव चलाया ६, १०, १३ )। शाल्वके बाणोंसे दारुकका पीड़ित करती थी ( आदि. १००। ४८ )। सत्यवतीके होना (वन० २१ । ५)। शाल्वका वध करनेके लिये विवाहके लिये शान्तनुसे इसकी शर्त (आदि० १००। इसका श्रीकृष्णको उत्साहित करना ( वन० २२॥ ५६)। अपनी पुत्रीके विवाहके सम्बन्धमें भीष्मके प्रति २१-२६)। उत्तरने सारथ्य कर्ममें अपनी उपमा इसका वक्तव्य (आदि.१००। ७७-८४ )। श्रीकृष्णके सारथि दाहकसे दी (विराट. ४५।१६)। दाशार्णक-दशार्ण देशके निवासी (भीष्म० ५०।१७)।
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