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द्रोण
( १५८ )
दाणा
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१६)। सत्यजित्का वध (द्रोण. २१ ।२१)। ६८-७१)। भीमसेनद्वारा इनकी पराजय (द्रोण. शतानीकका वध (द्रोण. २१ । २८)। दृढ़सेनका १२७ । ५३-५४)। भीमसेनद्वारा आठ बार रथसहित वध (द्रोण. २१ । ५२)। क्षेमका वध (द्रोण० इनका फेंका जाना (द्रोण. १२८ । १८-२१)। २१ । ५३)। इनके द्वारा वसुदानका वध (द्रोण. दुर्योधनको द्युतका परिणाम दिखाते हुए युद्ध के लिये २१ । ५५)। क्षत्रदेवका वध (द्रोण० २१ । ५६)। भेजना (द्रोण. १३० । १३-२४) । दुर्योधनके पाण्डवसेनाको क्षुभित करके धृष्टद्युम्नके साथ युद्ध (द्रोण. उपालम्भ देनेपर उसे उत्तर देना ( द्रोण० १५१ ३१ । ८-१८ )। इनके द्वारा पाण्डवसेनाका संहार अध्याय)। पाण्डवसेनापर आक्रमण और उसका संहार (द्रोण. ३२ । ४१-४३)। दुर्योधनसे पाण्डवपक्षके (द्रोण. १५४ अध्याय )। इनके द्वारा केकयों, किसी महारथीको मारनेकी प्रतिज्ञा (द्रोण. ३३ । धृष्टद्युम्नके सभी पुत्री तथा सारथिसहित राजा शिविका १०-१५)। इनके द्वारा चक्रव्यूहका निर्माण (द्रोण. वध (द्रोण० १५५ । १४-१९)। युधिष्ठिरके साथ ३४ । १३-२५) । अभिमन्युके पराक्रमकी प्रशंसा युद्ध में पराजित होना (द्रोण० १५७ । २८-४३)। करना (द्रोण० ३९ । ११-१३)। कर्णके पूछनेपर अर्जुन और भीमसेनके साथ युद्ध (द्रोण० १६१ अभिमन्युकी प्रशंसा करते हुए उसके वधका उपाय अध्याय ) । युधिष्ठिरके साथ युद्धमें मूर्छित होना बतलाना (द्रोण० ४८। १९-३१)। इनके द्वारा (द्रोण. १६२ ४९)। धृष्टद्युम्नके साथ युद्ध (द्रोण. अभिमन्युके तलवारका काटा जाना (द्रोण. ४८। ७० । २-११)। दुर्योधनको अर्जुनकी प्रशंसासे गर्भित ३७-३८)। अर्जुनके भयसे भीत जयद्रथको आश्वासन उत्तर (द्रोण०१८५।१०-२०)। दुर्योधनको व्यङ्गयपूर्ण देना (द्रोण. ७४ । २५-३३)। जयद्रथको आश्वासन उत्तर : द्रोण० १८५। २४-३७)। इनके द्वारा द्रुपदके (द्रोण० ८७ । १५)। इनके द्वारा चक्रशकटव्युहका तीन पौत्र, द्रुपद और विराटका वध (द्रोण० १८६।३३निर्माण करके जयद्रथकी रक्षाकी व्यवस्था (द्रोण. ८७ । ४३)। इनका अर्जुनके साथ घोर युद (द्रोण० १८८ । २२)। अर्जुनके साथ युद्ध (द्रोण. ९१।११-२९)। २४-५३)। अश्वत्थामाकी मृत्यु सुनकर जीवनसे निराश दुर्योधनका उपालम्भ सुनकर उसे ही अर्जुनके साथ होना (द्रोण. १९० । ५७-५९)। धृष्टद्युम्नके साथ युद्ध करनेके लिये भेजना (द्रोण. ९४ । १९-२६)। भयंकर युद्ध (द्रोण. १९१ अध्याय)। अस्त्र त्यागकर दिव्य कवचकी उत्पत्तिका प्रसंग बताकर दुर्योधनके योगधारणाद्वारा इनका ब्रह्मलोकगमन (द्रोण० १९२ । शरीरमें कवच बांधना (द्रोण. ९४ । ३९-६८)। ४३-५३)। धृष्टद्युम्नद्वारा इनके सिरका काटा जाना धृष्टद्युम्न के साथ घोर युद्ध (द्रोण अध्याय ९५से ९७ तक)। (द्रोण०१९२ । १२-६३)। अश्वत्थामाके जन्मकालमै सात्यकिके साथ घोर संग्राम (द्रोण ९८ अध्याय)। इनके द्वारा ब्राहाणों के लिये एक हजार गौओंका दान किये इनका युधिष्ठिरके साथ युद्ध और उन्हें पराजित करना
जानेकी चर्चा (द्रोण. १९६ । २९-३०)। महाराज (द्रोण० १०६ । १८-४७)। इनके द्वारा पाण्डवसेना- पृषदश्वसे इन्हें खड्ग की प्राप्तिका प्रसंग (शान्ति. १६६ । का संहार और सात्यकिका घायल होना (द्रोण.११०।
८१)। इनके लिये श्राद्धकर्मका सम्पादन (शान्ति. १-३५)। सात्यकिके साथ युद्ध (द्रोण. ११३ । ४२ । ३)। ये इन्द्रियसंयम और तपसे ही वेदोंके विद्वान् २१-३३)। सात्यकिद्वारा इनकी पराजय (द्रोण.
एवं समाजमें प्रतिष्ठित हुए । तपस्याके द्वारा ही ये अपनी ११७ । ३०)। सात्यकिसे पराजित होकर भागे हुए
प्रकृतिको प्राप्त हुए (शान्ति. २९६ । १५-१६)। दुःशासनको फटकारना (द्रोण. १२२१२-२७)।
व्यासजीके आवाहन करनेपर परलोकवासी कौरव-पाण्डव इनके द्वारा वीरकेतुका वध (द्रोण. १२२ । ४१)।
वीरोंके साथ ये भी गङ्गाजलसे प्रकट हुए थे (आश्रम० ३२ । चित्रकेतु, सुधन्वा, चित्रवर्मा और चित्ररथका वध ७)। ये मृत्युके पश्चात् स्वर्गमें गये, बृहस्पतिके समीप ( द्रोण. १२२ । ४८-४९ ) । धृष्टद्युम्नके प्रहारसे देखे गये और वहाँ कुछ कालके पश्चात् बृहस्पतिके अंशमें मूछित होना (द्रोण. १२२ । ५६ ) । धृष्टद्युम्नपर मिल गये ( स्वर्गा० ४ । २१, स्वर्गा० ५। १२ )। इनकी विजय ( द्रोण० १२२ । ७१-७२ )। इनके महाभारतमें आये हुए द्रोणाचार्यके नाम-आचार्य, द्वारा बृहत्क्षत्रका वध (द्रोण. १२५। २२)। पुत्र- आचार्यमुख्य, भारद्वाज, भरद्वाजसुत. भरद्वाजात्मज, सहित धृष्टकेतुका वध (द्रोण० १२५ । ३९-४१)। भारताचार्य, शोणाश्व, शोणाश्ववाह, शोणहय, गुरु, रुक्मरथ जरासंधकुमार सहदेवका वध (द्रोण० १२५। १५)। आदि । (२) मन्दपालऋषिके द्वारा जरिता (पक्षिणी) के धृष्टद्युम्नकुमार क्षत्रधर्माका वध (द्रोण. १२५ । गर्भसे उत्पन्न चार पुत्रों में से एक (आदि० २२८ । ६६ )। चेकितानकी पराजय (द्रोण. १२५। १७)। द्रोण ब्रह्मवेत्ताओंमें श्रेष्ठ होगा—ऐसा पिताका
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