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धमधमा
( १६४ )
धर्मव्याध
उत्पन्न हुए और ब्रह्माके वरसे काशीके राजा हुए लिया था (द्रोण. २०१। ५७ )। इन्होंने अपनी पत्नी (हिंदी-शब्द-सागरसे)। ( पुराणान्तरोंके कथनानुसार श्री' के गर्भसे अर्थ नामक पुत्र उत्पन्न किया (शान्ति. ये भगवान्के अवतार हैं।) समुद्र-मन्थनके समय ये ५९ । १३२-१३३)। ये तनु नामक मुनिके रूपमें अमृतका कलश हाथमें लेकर प्रकट हुए थे ( आदि०१८ । उत्पन्न हुए थे (शान्ति० १२८ । २२-२३)। जापक ३८)। वलिवैश्वदेवके समय ईशानकोणमें इन्हें बलि ब्राह्मणके साथ इनका संवाद (शान्ति. १९९ । २०देनी चाहिये (अनु० ९७ । १०-१२)।
२८)। मृगरूपसे सत्य नामक ब्राह्मणकी परीक्षा ली धमधमा-स्कन्दकी अनचरी मातृका (शल्य० ४६ । २०)।
(शान्ति० २७२ । १७)। ब्राह्मणरूप धारण करके धर-(१) धर्मद्वारा धूम्राके गर्भसे उत्पन्न प्रथम वसु
सुदर्शनकी परीक्षा ली (अनु०२।७९)। भैसेके रूपसे (आदि.६६ । १९)। (२) युधिष्ठिरका सम्बन्धी
महर्षि वत्सनाभकी वर्षासे रक्षा करना (अनु. १२ और सहायक राजा (द्रोण० १५८ । ३९)।
अध्याय दाक्षिणात्य पाठ ) । इनके द्वारा धर्मके रहस्यका धर्म-सम्पूर्ण लोकोको सुख देनेवाले एक देवता, जो ब्रह्मा
वर्णन ( अनु. १२६ । २४ --२८ ) । ब्राह्मणरूपमें
राजा जनकसे इनका संवाद और अन्तमें प्रसन्न होकर जीके दाहिने स्तनसे उत्पन्न हुए थे (आदि० ६६ ।
इनका अपना परिचय देना तथा राजाकी प्रशंसा करना ३.)। ये भगवान् सूर्यके भी पुत्र कहे गये हैं (आदि.
(आश्व० ३२ अध्याय ) । ब्राह्मणरूप धारण करके ६७ । ८६ )। दक्ष-प्रजापतिकी कीर्ति आदि दस पुत्रियाँ
इन्होंने ब्राह्मणपरिवारकी परीक्षा ली ( आश्व० ९० इनकी पत्नी थीं (आदि० ६६ । १३-१५)। आठौं
अध्याय)। क्रोधरूपमें जमदग्निकी परीक्षा ली ( आश्व० वसु इनके पुत्र थे ( आदि० ६६ । १७)। इनके तीन
९१ । ४२-५२)। माण्डव्यके शापसे धर्म ही विदुर श्रेष्ठ पुत्र हैं--शम, काम और हर्ष (आदि० ६६ ।
हुए थे (आश्रम० २८ । १२) । धर्म, विदुर और ३२ ) । शूद्रयोनिमें जन्म लेनेके लिये इनको
युधिष्ठिरकी एकता ( आश्रम २८ । २१)। पाण्डवोंके अणीमाण्डव्यका शाप ( आदि० ६३ । ९५-९६ )।
महाप्रस्थानके समय कुत्तेका रूप धारण करके उनके पीछेइन्हींके अंश विदुर और युधिष्ठिर थे (आदि०
पीछे गये (महाप्रस्था० ३ । १७)। विदुर और युधिष्ठिर ६७ । ८६, ११०)। इनके द्वारा कुन्तीके गर्भसे युधिष्ठिरका जन्म ( आदि. १२२ । ७) । जब द्रौपदी
__ मृत्युके पश्चात् धर्ममें ही विलीन हुए थे ( स्वर्गा० ५। का वस्त्र खींचा जा रहा था, उस समय धर्मस्वरूप
२२)। श्रीकृष्णने अव्यक्त रूपसे उसके वस्त्र में प्रवेश करके भाँति- महाभारतमें आये हुए धर्मके नाम-धर्मराज, वृष, यम भातिके सुन्दर वस्त्रोद्वारा द्रौपदीको आच्छादित कर लिया आदि। (सभा०६८। ४६) । धर्मतीर्थमें इन्होंने तपस्या की धर्मतीर्थ--(१) धर्मकी तपस्याका स्थानभूत एक तीर्थ, थी (वन० ८४ । १)। ये धर्मप्रस्थमें सदा निवास करते हैं जहा स्नान करनेसे मनुष्य धर्मशील और एकाग्रचित्त होता (वन० ८४ । ९९)। वैतरणीके तटपर इन्होंने यज्ञ है तथा अपने कुलकी सातवीं पीढ़ीतकके लोगोंको पवित्र किया था ( वन० ११४ । ४ )। इनका मृगरूपसे ___ कर देता है (वन० ८४ । १)। (२) एक परम ब्राह्मणका अरणि-काष्ठ लेकर भागना ( वन० ३११ । पवित्र ब्रह्मसेवित तीर्थ, जहाँ जाकर स्नान करनेवाला ९)। यक्ष-रूपसे नकुल, सहदेव, अर्जुन और भीमसेनको वाजपेय यज्ञका फल पाता है और विमानपर बैठकर पूजित मूञ्छित करना (वन० ३१२ अध्याय) । युधिष्ठिरके
होता है (वन.८४ । १६२)। साथ प्रश्नोत्तर ( वन० ३१३ । ४५–१३२ )। धर्मद--स्कन्दका एक सैनिक ( शल्य० ४५। ७२)। युधिष्ठिरके उत्तरसे प्रसन्न होकर इनके द्वारा चारों धर्मनेत्र--पूरवंशीय महाराज कुरुके प्रपौत्र एवं धृतराष्ट्रके पाण्डवोंको जीवनदान (वन० ३१३ । १३३) । धर्मके
र पुत्र (आदि० ९४ । ६०)। पास पहुँचनेके द्वार-अहिंसा, समता, शान्ति, दया और अमत्सर ( वन० ३१४ । ८)। धर्मरूपमें प्रकट होकर धर्मप्रस्थ-एक तीर्थ, जहाँ धर्मराजका नित्य निवास है। वहाँ इनका युधिष्ठिरको वरदान देना (वन० ३१४ । १२-- कूपजलसे देवता-पितरोंका तर्पण करनेसे मनुष्य पापमुक्त २५) । वसिष्ठका रूप धारण करके विश्वामित्रकी परीक्षा हो स्वर्गलोकको जाता है (वन० ८४ । ९९ )। लेना ( उद्योग. १०६ । ४.-१७ ) । ब्रह्माजीकी धर्मव्याध-मिथिलापुरीमें रहनेवाला एक धर्मपरायण व्याध । आमासे धर्मने दैत्यों और दानवोंको अपने पाशमें बाँधकर इसके द्वारा वर्णधर्मका वर्णन (वन०२०७।२०-२८)। वरुणके अधिकारमें दे दिया ( उद्योग० १२८ । ४५- शिष्टाचारका वर्णन (वन० २०७ । ६२-९८)। हिंसा ४६)। भगवान् नारायणने धर्मके पुत्ररूपसे अवतार और अहिंसाका विवेचन ( वन० २०८ अध्याय)।
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