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(१७७ )
नवतन्तु
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(वन० ५३ । १९ )। आप मुझे छोड़ दें । मैं (वन० ७१ । १६)। इनकी अश्वसंचालनकी कला आपका प्रिय करूँगा। दमयन्तीके समक्ष आपके गुण (वन० ७१।२३)। इन्हें ऋतुपर्णद्वारा युतविद्याकी बताऊँगा, जिससे वह आपके सिवा दूसरेका वरण नहीं प्राप्ति (वन० ७२ । २९)। इनके शरीरसे कलियुगका करेगी। इसके ऐसा कहनेपर नलका उसे छोड़ देना (वन० निष्क्रमण (वन० ७२ । ३०) । इनका दमयन्तीकी ५३ । २०-२२)। हमका दमयन्तीके समक्ष नलके दासी केशिनीसे वार्तालाप (वन० ७४ अध्याय)। गुणोंका वर्णन और उसका नलके प्रति अनुराग (वन० दमयन्तीके आदेशसे केशिनीद्वारा बाहुककी परीक्षा, ५३ । २७-३२, वन. ५४ । १-४) । स्वयंवरका इनकी अपने पुत्र-पुत्रीसे भेंट और उनके प्रति वात्सल्य समाचार सुनकर दमयन्तीमें अनुरक्त हुए राजा नलका (वन० ७५ अध्याय) । इनका बाहुकरूपसे दमयन्तीके विदर्भ देशको प्रस्थान ( वन० ५४ । २७)। इन्द्र महलमें जाकर उससे वार्तालाप करना तथा पुनः नलरूपमें आदि लोकपालोद्वारा दूत बननेके लिये इनसे अनुरोध प्रकट होना (वन० ७६ । ६-४२) । इनका दमयन्तीसे ( वन० ५४ । ३१)। इनका दूत बनकर दमयन्तीके मिलन (वन०७६ । ४६)। इनका ऋतुपर्णके साथ महलमें जाना और दमयन्तीको देवताओंका वरण करनेके वार्तालाप तथा उन्हें अश्वविद्याका दान (वन० ७७ । लिये समझाना ( वन० ५५ । "-२५, वन० ५६ । १०-१७)। इनका पुष्करको जूएमें हराना (वन० ७८। १-१२ ) । दमयन्तीका नलको ही वरण १९)। इनके द्वारा पुष्करको सान्त्वना ( बन० ७८ । करनेका निश्चय प्रकट करना और नलका २०--२६)। इनके आख्यानके कीर्तनका महत्त्व दूतत्व करके लौटकर दमयन्तीका संदेश लोकपालोको (वन० ७९ । १०, १५-१७ )। ये यमसभामें सुनाना (वन० ५६ । १५-३०)। स्वयंवरमें दमयन्ती- उपस्थित हो सूर्यपुत्र यमकी उपासना करते है (सभा० द्वारा नलका पतिरूपमें वरण और लोकपालोदारा नलको । ११)। ये देवराज इन्द्रके विमानमें बैठकर अर्जुन वरकी प्राप्ति ( वन० ५७ । १-३८)। दमयन्तीके तथा कौरवोंमें होनेवाले युद्धको देखनेके लिये आये थे साथ विवाह-संस्कार ( वन० ५७ । ४१)। नलका (विराट० ५६ । १०)। गोदान-महिमाके विषयमें इनका नगरको लौटना प्रजापालन, यज्ञ तथा दमयन्तीके साथ नाम निर्देश ( अनु० ७६ । २५)। विहार करना, दमयन्तीके गर्भसे इन्हें इन्द्रसेन नामक महाभारतमें आये हए नलके नाम-नैषध, निषधाधिप, पुत्र और इन्द्रसेना नामवाली कन्याकी प्राप्ति (वन० निषधाधिपति, निषधराजेन्द्र, निषधेश्वर, पुण्यश्लोक, ५७ । ४२-४६)। देवताओद्वारा नलके गुणोंका गान वीरसेनसुत आदि। तथा इनपर कलियुगका कोप (वन० ५८ अध्याय)। (३) एक वानरसेनापति, जो देव शिल्पी विश्व नलमें कलिका प्रवेश और इनका पुष्करके साथ जूआ कर्माका पुत्र था (वन० २८३ । ४१) । इसके खेलना ( वन० ५९ अध्याय)। इनका जूएमें हारकर द्वारा समुद्रपर सौ योजन लंबे और दस योजन दमयन्तीके साथ वनको प्रस्थान (वन०६१।६)। चौड़े सेतु का निर्माण (वन० २८२ । ४३-४४)। हनका पक्षियों को पकड़ने के लिये उनके ऊपर वस्त्र फेंकना इसका तुण्ड नामक राक्षसमे युद्ध (वन० २८५।५)। (वन०६१।१४) । इनका सोती हुई दमयन्तीके नलकबर-धनाध्यक्ष कुबेरके पुत्र, जो कुबेरकी सभामें आधे वस्त्रको फाड़कर पहनना, उसे वनमें अकेली छोड़कर उपस्थित होते हैं (सभा० १० । १९)। ( इनके जाना और पुनः लौटकर विलाप करना (वन० ६२ । भाईका नाम मणिग्रीव था) इन्हें ने अपनी प्रेयसी रम्भापर १८-२४)। नलका दमयन्तीको सोती छोड़कर बार
बलात्कार करने के कारण रावणको यह शाप दिया था कि बार जाना और लौटना तथा कलिसे आकर्षित हो करुण तू न चाहनेवाली किसी स्त्रीका स्पर्श नहीं कर सकेगा' विलाप करके चल देना (वन० १२ । २६-२९)। (वन० २८० । ५९-६०)। इनके द्वारा कर्कोटक नागकी दावानलसे रक्षा (वन. नलसेतु-नलद्वारा बनाया हुआ सेतु (वन०२८३ । ६६ । ९)। कर्कोटकका नलको इँसकर उनके रूपको ४५)। बदल देना और इन्हें आश्वासन देना एवं पहलेके रूपकी नलिनी-गङ्गाकी सात धाराओंमेंसे एक धारा (भीष्म०६। प्राप्तिके लिये एक वस्त्र प्रदान करना (वन० ६६ । ११ ४८)। --२६ )। इनकी अयोध्यानरेश ऋतुपर्णके यहाँ बाहुक नलोपाख्यानपर्व-वनपर्वका एक अवान्तर पर्व (अध्याय नामसे अश्वाध्यक्ष-पदपर नियुक्ति, इनकी दमयन्तीके लिये ५२ से ७९ तक)। चिन्ता तथा जीवलसे वार्ता (वन० ६७ अध्याय)। नवतन्तु-विश्वामित्रके ब्रह्मवादी पुत्रों से एक (अनु. ४। इनके द्वारा ऋतुपर्णको अच्छे अश्वका परिचय देना ५०)।
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