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नारद
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नारद
दिया था ( वन० ३ । ७८ )। इनका शाल्बको मारनेके वर्णन (द्रोण० ५७ अध्याय ) । शिबिके यज्ञ और दान लिये उद्यत प्रद्युम्नके पास आकर देवताओंका संदेश की महत्ताका वर्णन (द्रोण ५८ अध्याय) । श्रीरामके सुनाना ( बन० १९ । २२-२४ ) । इन्द्रलोकमें चरित्रका वर्णन (दोण. ५९ अध्याय)। राजा भगीअर्जुनके स्वागतमें अन्य गन्धोंके साथ ये भी पधारे थे। रथके चरित्रका वर्णन (दोण० ६० अध्याय)। महा (वन० ४३ । १४)। इनके द्वारा इन्द्र के प्रति दमयन्ती- राज दिलीपके उत्कर्षका वर्णन (द्रोण० ६१ अध्याय)। स्वयंवरकी सूचना (वन० ५४ । २०-२४) । इनका मान्धाताकी महत्ताका वर्णन (द्रोण० ६२ अध्याय )। युधिष्ठिरको तीर्थयात्राका प्रसङ्ग सुनाकर अन्तर्धान होना महाराज ययातिका वर्णन (द्रोण. ६३ अध्याय)। ( वन०1१।१२ से ८५ अध्यायतक)। राजा सगरको राजा अम्बरीषके चरित्रका वर्णन (द्रोण०६४ अध्याय)। उनके पुत्रोंकी मृत्युका समाचार सुनाना (वन० १०७।। राजा शशविन्दुके दानका वर्णन (द्रोण० ६५ अध्याय)। ३३ ) । अर्जुनको दिव्यास्त्र-प्रदर्शनसे रोकना (वन. राजा गयके चरित्रका वर्णन (द्रोण० ६६ अध्याय)। १७५ । १८-२३ )। काम्यकवनमें पाण्डवोंके पास राजा रन्तिदेवके अतिथिसत्कारका वर्णन (द्रोण० ६७ इनका आगमन और मार्कण्डेय मुनिसे कथा सुननेका अध्याय) । राजा भरतके चरित्रका वर्णन (द्रोण०६८ अनुमोदन करना ( वन० १८३ । ४७-४९)। सुहोत्र अध्याय) । राजा पृथुके चरित्रका वर्णन (दोण ६९
और शिबिमें इनका शिबिको ही बढ़कर बताना ( वन० अध्याय)! परशुरामजीका चरित्र सुनाना (द्रोण. ७० १९४ । ३-७)। राजा अश्वपतिसे सत्यवान्के गुण-दोषका अध्याय)। संजयके मरे हुए पुत्रको जीवित करके उन्हें देना वर्णन करके उनके साथ सावित्रीके विवाहके लिये सम्मति (बोण०७१ । ८)। रणक्षेत्रमें अर्जुनद्वारा बाणोंके देकर विदा होना ( वन० २९४ । ११-३२)। प्रहारसे प्रकट किये हुए सरोवरको देखनेके लिये नारदजी शान्ति-दूत बनकर हस्तिनापुर जाते हुए श्रीकृष्णकी वहाँ पधारे थे (द्रोण० ९९ । ६१)। रात्रियुद्ध में कौरवपरिक्रमा करना ( उद्योग. ८३ । २७ ) । पाण्डव-सेनाओंमें दीपकका प्रकाश करना (द्रोण. १६३ । पुत्रीके लिये वरकी खोजमें जाते समय मातलिको वरुण- १५)। वृद्धकन्याको विवाह करनेके लिये प्रेरित करना लोकमें ले जाना और वहाँ आश्चर्यजनक वस्तुएँ दिखाना (शल्य ५२ । १२.१३)। बलरामजीसे कौरवोंके विनाश( उद्योग. ९८ अध्याय) । मातलिको पाताल-लोकमें का समाचार बताना (शल्य० ५४ । २५-३४)। ले जाना (उद्योग. ९९ अध्याय)। मातलिसे हिरण्यपुर- अश्वत्थामा और अर्जुनके ब्रह्मास्त्रको शान्त करनेके लिये का वर्णन और दिग्दर्शन (उद्योग० १०० अध्याय)। प्रकट होना (सौप्तिक० १४ । ११)। युद्धके पश्चात् मातलिको गरुडलोकमें ले जाना ( उद्योग० १.१ युधिष्ठिरके पास आकर उनसे कुशल-समाचार पूछना अध्याय)। मातलिसे संतानसहित सुरभि तथा रसातलका (शान्ति० ।। १०-१२) । युधिष्ठिरसे कर्णको वर्णन (उद्योग० १०२ अध्याय)। मातलिसे नागलोकका शाप प्राप्त होनेका प्रसंग सुनाना (शान्ति. अध्याय वर्णन (उद्योग. १०३ अध्याय)। आर्यकके सम्मुख २ से ३ तक ) । कर्णके पराक्रमका वर्णन मातलिकी कन्याके विवाहका प्रस्ताव (उद्योग० १०४।। (शान्ति. अध्याय ४ से ५ तक)। इनके द्वारा -७) । दुर्योधनको समझाते हए धर्मराजद्वारा विश्वामित्र- संजयके प्रति कहे हुए षोडश-राजकीयोपाख्यानका की परीक्षा और विश्वामित्रको गुरुदक्षिणा देनेके लिये श्रीकृष्णद्वारा युधिष्ठिरके समक्ष वर्णन (शान्ति. २९ गालवके हठका वर्णन ( उद्योग. १०६ अध्यायसे १२३- अध्याय)। श्रीकृष्णद्वारा पर्वत ऋषिके साथ इनके विचरने २२ तक)। भीष्मको परशुरामजीके ऊपर प्रस्वापनास्त्रके और परस्पर शाप आदिका वर्णन ( शान्ति० ३० प्रयोगसे मना करना ( उद्योग० १८५ । ३-४)। पुत्र- अध्याय)। इनका युधिष्ठिरको सुंजयपुत्र सुवर्णष्ठीवीका शोकसे दुखी अकम्पनको इनके द्वारा सान्त्वना (द्रोण. वृत्तान्त सुनाना (शान्ति० ३१ अध्याय)। शरशय्यापर ५२ । ३७ से द्रोण० ५४ । ४४-५० तक)। राजा पड़े हुए भीष्मको देखनेके लिये अन्य ऋषियोंके साथ सुंजयसे उनकी कन्याको माँगना (द्रोण. ५५ । १२)। इनका भी जाना (शान्ति. ४७ । ५) । युधिष्टिर महर्षि पर्वतके शापके बदले उन्हें शाप देना (द्रोण. आदिको भीष्मजीसे धर्मविषयक प्रश्नके लिये प्रेरणा देना ५५ । १७) । राजा संजयको पुत्र-प्राप्तिका वर देना (शान्ति० ५४ । ८-१०)। जाति-भाइयोंमें फूट न (द्रोण. ५५ । २३ के बाद)। पुत्रशोकसे दुखी सुंजय- पड़नेके विषयमें श्रीकृष्णके प्रश्नोंका उत्तर (शान्ति. को मरुत्तका चरित्र सुनाकर समझाना (द्रोण. ५५ । ८१ अध्याय)। सेमलवृक्षकी प्रशंसा ( शान्ति. ३६-५०)। राजा सुहोत्रकी दानशीलताका वर्णन १५४ । १०-३१) । सेमलवृक्षका अहंकार देखकर उसे करना (द्रोण. ५६ अध्याय)। पौरवकी दानशीलताका फटकारना (शान्ति. १५५ । ९-१८)। वायुदेवके
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