________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
नन्दक
( १७४ )
नन्दिनी
दो मृदङ्गोंमेंसे एकका नाम, दूसरे मृदङ्गका नाम प्रतिदिन वहाँ तेज हवा चलती और रोज रोज मेघ वर्षा उपनन्दक यः (वन० २७० । ७)। (५) स्कन्दका करता था । सबेरे-शाम उस पर्वतपर अग्निदेव प्रज्वलित एक सैनिक (शल्य ४५। ६४)। (६) स्कन्दका दिखायी देते थे । वहाँ मक्खियाँ ले गोंको डंक मारती थीं। एक सैनिक (शल्य०४५। ६५)। (७) भगवान् यह सब ऋषभ नामक प्राचीन तपस्वी ऋषिके आदेशसे विष्णुका एक नाम ( अनु० १४९ । ६९)।
होता है..ऐसा लोमशजीने बताया । नन्दाके तटपर पहले
देवतालोग आये थे। उस समय उनके दर्शन की इच्छासे नन्दक-(१) एक कश्यपवंशी नाग (उद्योग० १०३ ।
मनुष्य सहसा वहाँ आ पहुँचे । देवता यह नहीं चाहते थे; ११)।(२)(नन्द-)धृतराष्ट्रका एक पुत्र, जो द्रौपदीके
अतः उन्होंने उस पर्वतीय प्रदेशको जनसाधारणके लिये स्वयंवर में गया था (आदि० १८५।३)। इसे भीमसेनने गहरी चोट पहुँचायी थी (भीष्म० ६४ । १५)
दुर्गम बना दिया । तबसे साधारण मनुष्योंके लिये इस
ऋषभकूट या हेमकूट पर्वतपर चढ़ना तो दूर रहा, इसे ( देखिये नन्द नं०१) । (३) भगवान् श्रीकृष्णका
देखना भी कठिन हो गया । जिसने तपस्या नहीं की है। खड्ग (अनु. १४७ । १५)।
वह इस महान् पर्वतका दर्शन नहीं कर सकता । यहाँ नन्दन-(१) स्वर्गका एक दिव्य वन, जो अप्सराओंसे
___ अब भी देवता ऋषि निवास करते हैं। इसीलिये सायंसेषित है (वन० ४३ । ३)। नन्दनवनमें जानेके अधि
प्रातः अग्नि प्रज्वलित होती है । यहाँ नन्दामें गोता काग-जो सब प्रकारकी हिमाका त्याग करके जितेन्द्रिय
लगानेसे मनुष्योंका सारा पाप तत्काल नष्ट हो जाता है । भावसे आवर्तनन्दा और महानन्दा तीर्थका सेवन करता
युधिष्ठिरने वहाँ स्नान करके कौशिकी ( कोसी) तीर्थकी है, उसकी स्वर्गस्थ नन्दनवनमें अप्सराएँ सेवा करती हैं
यात्रा की थी (वन० ११०।१-२१)। इस तीर्थमें (अनु० २५ । ४५)। जो लोग नृत्य और गीतमै । मृत्युने तपस्या की थी (द्रोण. ४५। २०-२१)। निपुण हैं, कभी किसीसे याचना नहीं करते तथा सजनोंके
नन्दाश्रम-एक तीर्थ, जहाँ काशिराजकी कन्या अम्बाने साथ विचरण करते हैं ऐसे लोगोंके लिये ही यह नन्दनवन
कठोर व्रतका आश्रय ले स्नान किया था ( उद्योग. है (अनु.१०२। २४) । (२) अश्विनीकुमारों
१८६ । २६)। द्वारा स्कन्दको दिये गये दो पार्षदों से एक । दूसरेका नाम वर्धन था (शल्य. ४५। ३८)। (३) स्कन्दका नन्दि-एक देवगन्धर्व, जो अर्जुनके जन्मकालिक महोत्सवमें एक सैनिक (शल्य. ४५। ६८) । (४) भगवान् साम्मालत हुए थे (आदि. १२२ । ५६)। शिवका एक नाम ( अनु० १७ । ७६ )। (५) नन्दिकुण्ड-यहाँ स्नानसे भ्रूणहत्या-जैसे पाप भी निवृत्त हो
भगवान् विष्णुका एक नाम (अनु. १४९ । ६१)। जाते हैं (अनु. २५ । ६०)। नन्दा-(१) धर्मके तीसरे पुत्र हर्षकी पत्नी (आदि०६६। नन्दिग्राम-अयोध्या (फैजाबाद ) से लगभग चौदह मील ३३ ) । (२) ( अनुमानतः ) नैमिवारण्यके दक्षेणका एक ग्राम, जो भरतकुण्डके समीप है । भरतजी आसपास वहाँसे पूर्व दिशामें स्थित एक नदी, इसके पास यही चरणपादुकाका सेवन करते हुए चोदह वर्षोंतक ठहरे ही अपरनन्दा भी है । अर्जुन पूर्व दिशाके तीर्थोंमें भ्रमण रहे ( वन० २७७ । ३९)। करते हुए नन्दा और आरनन्दाके तटपर आये थे (आदि० नन्दिनी-(१) कश्यपके द्वारा देवी सुरभिके गर्भसे उत्पन्न २१४ । ६७) । धौम्यने पूर्व दिशाके तीर्थोके वर्णनके एक गौ, जो नन्दिनीके नामसे विख्यात थी ( आदि. प्रसङ्गमें युधिष्ठिरके समक्ष इसका उल्लेख इस प्रकार किया ९९ । ८)। यह गौ समस्त जगत्पर अनुग्रह करनेके है--कुण्डोद नामक रमणीक पर्वत बहुत फल-मूल और लिये प्रकट हुई थी और सम्पूर्ण कामनाओंको देनेवालों में जलसे सम्पन्न है । जहाँ प्यासे हुए निषधनरेश नलको जल श्रेष्ठ थी। वरुणपुत्र धर्मात्मा वसिष्ठने इसे अपनी होम
और शान्ति उपलब्ध हुई थी, वहीं तपस्वीजनोंसे सुशोभित धेनुके रूपमें प्राप्त किया था (आदि. ९९ । ९)। पवित्र देववन नामक क्षेत्र है। जहाँ पर्वतके शिखरपर बाहुदा मुनियोंद्वारा सेवित पवित्र एवं रमणीय तापस वनमें यह गौ और नन्दा नदियाँ बहती हैं (वन०८७॥ २५-२७)। निर्भय होकर चरती रहती थी। इस नन्दिनी नामक गायभाइयोसहित युधिष्ठिरने लोमशजीके साथ नन्दा और अपर- की शील समत्ति देखकर एक वसुपत्नी आश्चर्यचकित हो नन्दाकी यात्रा की । वे हेमकूट पर्वतपर आये और वहाँ उठी (मादि०९९ । १०-१४)। वसुपत्नीने आने अद्भुत बातें देखीं । वहाँ हवाके बिना भी बादल उत्पन्न पतिको वह गौ दिखायी । वसुने अपनी पत्नीसे उसके होते और अपने आप हजारों ओले गिरने लगते थे। गुणोंका वर्णन करते हुए कहा-'यह उत्तम गौ दिव्य है । खिन्न मनुष्य उस पर्वतपर चढ़ नहीं सकते थे । प्रायः यह उन्हीं महर्षि वशिष्ठकी धेनु है, जिनका यह तपोवन :
For Private And Personal Use Only