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दुर्योधन
( १४५ )
पाण्डवको आधा राज्य देनेके लिये इसे भीष्मकी सम्मति ( आदि ० २०२ । ५ - १९ ) । इसका युधिष्ठिरके राजसूय यज्ञमें भाइयों सहित आना ( सभा० ३४ । ६)। युधिष्ठिरके लिये आयी हुई भेंट- सामग्रीको ग्रहण करना और सँभाल कर रखना ( सभा० ३५ । ९ ) । सबके विदा हो जानेपर भी युधिष्ठिरकी दिव्यसभा में दुर्योधन और शकुनि कुछ कालतक ठहरे रहे ( सभा० ४५ । ३८ ) । दुर्योधनामयनिर्मित सभाभवनको देखना और पगपगपर भ्रमके कारण उपहासका पात्र बनना तथा युधिष्ठिरके वैभव को देखकर इसका चिन्तित होना ( सभा० ४७ अध्याय ) | पाण्डवोंपर विजय प्राप्त करनेके लिये इसका शकुनिसे वार्तालाप ( सभा० ४८ अध्याय ) । इसका धृतराष्ट्र से अपनी चिन्ताका कारण बताना तथा जुएके लिये अनुरोध करना ( सभा० ४९ | १२ - ३६, ४२; सभा० ५० अध्याय ) । इसके द्वारा राजसूययज्ञमें युधिष्ठिर के लिये विभिन्न देशोंसे आयी हुई भेंटोंका धृतराष्ट्रके प्रति वर्णन ( सभा० अध्याय ५१ से ५२ तक ) । इसके द्वारा युधिष्ठिरके अभिषेकका अपने पिता के प्रति वर्णन ( सभा० १३ अध्याय) | इसका धृतराष्ट्रको उभाड़ना (सभा० अध्याय ५५ से ५६ तक ) । जुएके अवसरपर विदुरर्ज को इसकी फटकार तथा विदुरजीका इसे चेतावनी देना ( सभा ० ६४ अध्याय ) । द्रौपदीको पकड़कर सभाभवनमें लाने के लिये इसका विदुरको आदेश ( सभा० ६६ । १ ) । विदुरका इसे पुनः फटकारना ( सभा० ६६ । २- १२ ) । द्रौपदीको सभाभवनमें लाने के लिये इसका प्रातिकामीको आदेश ( सभा० ६७ । २ ) । द्रौपदीके प्रति इसके छल-कपटयुक्त वचन ( सभा० ७० । ३-६६ * सभा० ७१ । २० ) । इसके द्वारा अर्जुनकी वीरताका वर्णन ( सभा० ७४ । ६ के बाद ) । धृतराष्ट्रसे पुनः जुए के लिये इसका अनुरोध ( सभा० ७४ । ७-२३ )। पुरवासियोंद्वारा इसकी निन्दा ( वन० १ । १३-१७ ) । विदुर काम्यकवनसे लौट आनेपर इसकी चिन्ता ( वन० ७ । २ - ६) | इसे मैत्रेय ऋषिका शाप ( वन ० १० । ३४ ) । इसके द्वारा द्वैतवनको यात्राविषयक कर्णशकुनिकी मन्त्रणा स्वीकार करना ( वन० २३८ । २-१६ ) | घोषयात्राके लिये प्रस्थान ( वन० २३९ । २३) । गौओंकी देख-भाल करना और इसके सैनिकों का गन्धके साथ संवाद ( वन० २४० अध्याय ) | दुर्योधन आदि कौरवोंका गन्धर्वोके साथ युद्ध ( वन ० २४१ अध्याय ) । चित्रसेन आदि गन्धर्वोद्वारा दुर्योधन आदिकी पराजय तथा चित्रसेनका दुर्योधनको बंदी बनाना ( वन० २४२ । ६ ) | गन्धव के हाथसे छुड़ाने के लिये पाण्डवों के प्रति इसकी पुकार ( वन० २४३ । ११ के बाद
म० ना० १९
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दुर्योधन
दा० पाठ ) । इसका कर्णसे अपनी पराजयका समाचार बताना (वन० २४८ अध्याय) । कर्ण से अपनी ग्लानिका वर्णन करते हुए दुःशासनको राजा बननेका आदेश (चन० २४९ । १- २७ ) । इसका आमरण अनशनके लिये बैठना ( वन० २५१ । १९-२० ) । कृत्याद्वारा इसका रसातलमें पहुँचाया जाना ( वन० २५१ । २९ ) । दानवों तथा कर्णके द्वारा समझाये जानेपर इसका अनशन त्यागकर हस्तिनापुरको प्रस्थान ( वन० २५२ अध्याय ) । इसके वैष्णव यशका आरम्भ और समाप्ति ( वन० अध्याय २५५ से २५६ तक ) । इसका महर्षि दुर्वासको प्रसन्न करके युधिष्ठिरके आश्रमपर जानेके लिये वर माँगना ( वन० २६२ । १९-२३ ) | गुप्तचरोंद्वारा पाण्डवोंका पता न मिलनेपर मन्त्रियोंसे इसका परामर्श करना
( विराट० २६ । २-७ ) । मत्स्यदेशपर चढ़ाई करनेका निश्चय ( विराट० २९ । १४ के बाद दा० पाठ ) । मत्स्यदेशपर आक्रमण करने के लिये दुःशासनको आदेश देना ( विराट० ३० | २० - २४ ) | अपने सैनिकों को उभाड़ते हुए इसका अर्जुनसे युद्ध करनेका ही निश्चय ( विराट० ४७।२-१९ ) । कर्णकी बातोंसे कुपित हुए आचार्य वर्ग से इसका क्षमा माँगना ( विराट० ९१ । १६ ) | अर्जुन के साथ युद्ध और उनसे हारकर भागना ( विराट० ६५ अध्याय ) । श्रीकृष्ण से सहायता के रूपमें नारायणी सेना प्राप्त करना ( उद्योग ० ७।२३-२५)। इसका बलरामजी के पास सहायता मांगने के लिये जाना ( उद्योग ० ७ । २५ ) । कृतवर्मा के पास सहायता माँगने के लिये जाना ( उद्योग० ७ । ३२ ) । मार्ग में शल्यका सत्कार करके उनके प्रसन्न होनेपर अपने पक्षमें आनेके लिये उनसे प्रार्थना ( उद्योग० ८ । १८ ) । इसके पास ग्यारह अक्षौहिणी सेनाओं का संग्रह ( उद्योग० १९ । २७ । धृतराष्ट्रसे अपने पक्ष के वीरोंका वर्णन करते हुए अपना उत्कर्ष तथा पाण्डवोंका अपकर्ष बतलाना ( उद्योग० ५५ अध्याय ) । संजयसे पाण्डवोंके रथ तथा घोड़ों के विषय में प्रश्न ( उद्योग० ५६ । ६) । धृतराष्ट्र से अपनी प्रबलताका प्रतिपादन ( उद्योग० ५७।३६-४२) । युद्धको यज्ञका रूप देकर युद्ध करनेका ही निश्चय करना ( उद्योग० ५८ । १०- १८ ) । धृतराष्ट्रको ढाढ़स बँधानेके लिये आत्मप्रशंसा करना ( उद्योग० ६१ अध्याय ) । भीष्मजी से अपने पक्षकी प्रबलता बताना ( उद्योग० ६३ । १-८ ) । श्रीकृष्णके सत्कार के लिये मार्ग में विश्राम स्थान बनवाना ( उद्योग० ८५ । १२१७ ) | श्रीकृष्णको कैद करनेका विचार प्रकट करना ( उद्योग० ८८ । १३ ) । अपना निमन्त्रण अस्वीकार कर देनेवर श्रीकृष्णसे उसका कारण पूछना ( उद्योग ०
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