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चातुर्वर्ण्य
(११३ )
चित्रचाप
चातुर्वर्ण्य-ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र-इन चारों बदरिकाश्रममें इसकी तपस्याका वर्णन (शान्ति. वर्णोको ही चातुर्वर्ण्य कहते हैं, साक्षात् भगवान्ने ही ३९ । ३)। इसका ब्रह्माजीसे अपने लिये किसी भी गुणकर्मविभागपूर्वक चातुर्वर्ण्यकी सृष्टि की है (भीष्म० प्राणीसे भय न होनेका वर माँगना और ब्रह्माजीका कुछ २८ । १३, शान्ति० २०७ ॥ ३०-३३)।
संशोधनके साथ उसको वर-प्रदान करना ( शान्ति. चान्द्रमसी-बृहस्पतिकी यशस्विनी पत्नी तारा, जो कभी
३९। ४-५) ब्राह्मणोंद्वारा इसका वध (शान्ति०३८।३५)। चन्द्रमाके सम्पर्क में आ जानेके कारण चान्द्रमसी, चाषवक्त्र-स्कन्द का एक सैनिक या पार्षद, जो ब्राह्मणोंका कहलाती थी। इसने छः अग्निस्वरूप पुत्रों और एक प्रेमी है (शल्य०४५। ७६ )। 'स्वाहा' नामक पुत्रीको जन्म दिया था (वन.२१९।१)। चिकुर-नागराज आर्यकके पुत्र एवं सुमुखके पिता, जिन्हें
व गरुड़ने अपना ग्रास बना लिया था ( उद्योग चान्द्रवत-रूप-सौन्दर्य, सौभाग्य तथा लोकप्रियताकी प्राप्ति
१०३ । २४)। करानेवाला एक व्रत, जो मार्गशीर्ष मासकी शुक्ल प्रतिपदाको मूल नक्षत्रसे चन्द्रमाका योग होनेपर आरम्भ
चित्र-(१) धृतराष्ट्र के सौ पुत्रों से एक (मादि० ६७ । किया जाता है, इसका विशेष विधान (अनु. ११०
९५, आदि. ११६।४)। भीमसेनद्वारा इसका वध
(द्रोण. १३६ । २०-२२) । (२) एक गजराज, अध्याय)।
जिसके साथ स्कन्दने शैशवकालमें क्रीड़ा की थी (वन. चाम्पेय-विश्वामित्रके ब्रह्मवादी पुत्रों से एक
२२५ । २३) । (३) कौरव-पक्षका एक योद्धा, (अनु० ४ । ५०)।
प्रतिविन्ध्यद्वारा वध (कर्ण०१४ । ३२-३३)। (४) चारु ( चारुचित्र)-धृतराष्ट्रके सौ पुत्रों से एक (आदि.
चेदिदेशीय पाण्डवपक्षका योद्धा, कर्णद्वारा वध ( कर्ण० ६७ । ९५, आदि. ११६। ४)। भीमसेनद्वारा वध
५६ । ४९)। (द्रोण. १३६ । २०-२२)।
चित्रक ( नामान्तर चित्र एवं चित्रयाण)-धृतराष्ट्रके चारुदेष्ण-भगवान् श्रीकृष्णद्वारा रुक्मिणीके गर्भसे प्रकट
सौ पुत्रोंमेसे एक (आदि०६७ । १०५)। चित्र नामसे (अनु० १४ । २९) । द्रौपदीके स्वयंवरमें इनका
इसका भीमसेनद्वारा वध (द्रोण. १३७ । ३०)। आगमन ( आदि. १८५। १७) | इनके द्वारा
चित्रकुण्डल (दीर्घलोचन)-धृतराष्ट्रके सौ पुत्रोंसे एक विविन्ध्यका वध (वन०१६ । २६)।
(आदि. ११६ । ६) । भीमसेनद्वारा इसका वध चारुनेत्रा-कुबेरकी सभामें उपस्थित हो भगवान् धनदकी
(भीष्मः ९६ । २७)। ( चित्रकुण्डलकी जगह सेवा करनेवाली एक अप्सरा (सभा०१०।१०)।
दीर्घलोचन पाठभेद मिलता है।) चारुमत्स्य-विश्वामित्रके ब्रह्मवादी पुत्रोमेसे एक ( अनु० चित्रकट-सर्वपापनाशिनी मन्दाकिनीके तटपर अवस्थित एक ४ । ५९)।
श्रेष्ठ पर्वत । वहाँ मन्दाकिनीमें स्नान और देवता-पितरोंकी चारुयशा-श्रीकृष्ण और रुक्मिणीके पुत्र ( अनु० १४ ।
पूजा करनेसे अश्वमेध-यज्ञका फल मिलता है (वन० ८५।
५८)। वनवासके समय भगवान् श्रीरामने चित्रकूट चारुवक्त्र-स्कन्दका सैनिक या पार्षद, जो ब्राह्मणोंका प्रेमी पर्वतपर निवास किया था (वन० २७७ । ३८)। जो है (शल्य०४५। ७१)।
चित्रकूट पर्वतपर मन्दाकिनीके जलमें स्नान करके उपवास चारुवेष-श्रीकृष्ण और रुक्मिणीके पुत्र (अनु. १४ । करता है, वह पुरुष राजलक्ष्मीसे सेवित होता है ( अनु० ३३-३४)।
२५ । २९ ) । ( यह स्थान उत्तरप्रदेशके बाँदा चारुशीर्ष-एक आलम्बगोत्रीय ऋषि, जो इन्द्र के प्रिय सखा जिलेमें है)।
थे; शिव-महिमाके विषयमें युधिष्ठिरसे इनका अनुभव चित्रकेतु-(१) गरुड़की प्रमुख संतानों से एक (उद्योग सुनाना (अनु. १८ । ५-७)।
१०१। १२) । (२) पाण्डव-पक्षका एक योद्धा । चारुश्रवा-श्रीकृष्ण और रुक्मिणीके पुत्र ( अनु० १४। पाञ्चालराजकुमार (भीष्म० ९५ । ४१)। ३३-३४)।
चित्रगुप्त-धर्मराजके मन्त्री । इनके द्वारा धर्मके रहस्यका चार्वाक-दुर्योधनका मित्र एक राक्षस, जिसने युधिष्ठिरके वर्णन ( अनु० १३० । १८-३३)।
नगर-प्रवेशके समय संन्यासी वेषमें आकर उनके प्रति चित्रचाप ( चित्रशरासन या शरासन )-धृतराष्ट्र के दुर्वचन कहे थे (शान्ति० ३८ । २२-२७)। सौ पुत्रों से एक (आदि०६७।९८आदि० ११६।६)।
म० ना० १५
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